गुरुवार, 11 जून 2020

क्या ‘‘कोरोना’’ ने ‘‘अरविंद केजरीवाल’’ के दिमाग को ‘‘ठीक’’ कर दिया है?



वैसे तो इस कोरोना काल में इस कोरोना वायरस ने एक से एक व्यवस्थाएँ, प्रणालियाँ और हस्तियों को संक्रमित कर नेस्ताबूद कर दिया है। लेकिन लगता है, अरविंद केजरीवाल इस कोरोना के भी ‘बाप’ निकले। उनका कोरोना टेस्ट रिपोर्ट अभी आई है, जो निगेटिव निकली। ईश्वर का धन्यवाद। वे पूर्णता स्वस्थ रहें और दिल्ली की जनता की अनवरत सेवा करते रहें। कोरोना ने जहां मानव को संक्रमित बनाने का अपना प्राकृतिक कार्य ही किया है, वहां ऐसा लगता है कि केजरीवाल के मामले में कोरोना ने अपने कार्य की प्रकृति (ध्वंसत्मक) के विपरीत उनके दिमाग को दुरुस्त कर ‘सुधार‘ दिया है। 
आज का अरविंद केजरीवाल का मीडिया के द्वारा जनता को संबोधन। इस संबोधन में उन्होंने समस्त राजनीतिक मतभेदों को भुलाकर एकजुटता से कोरोना से लड़ने का आह्वान किया है। केंद्र सरकार द्वारा प्रदेश के बाहर के नागरिकों के इलाज से संबंधित जारी किए गए दो आदेशों को, लेफ्टिनेंट गवर्नर के माध्यम से निरस्त करने के आदेश को भी उन्होंने एक ‘‘खिलाड़ी भावना’’ के रूप में लिया है। केन्द्रीय सरकार के निर्णय को मानकर उपराज्यपाल के आदेश को पूरी क्षमता के साथ लागू करेगें, यह आश्वासन भी उन्होंने दिया है। मीडिया द्वारा उनकी सरकार की कमियाँं खासकर विभिन्न अस्पतालों में खाली बिस्तरों के संबंध में बनाए गए ‘ऐप‘ की आलोचना को भी उन्होंने हृदय से गले लगाया है। साथ ही भविष्य में इसी तरह की कमियों को दर्शाने व सामने लाने का अनुरोध भी किया है, ताकि स्थिति को सुधारा जा सके। कोई व्यवस्था पूर्ण नहीं है तथा दिल्ली सरकार में भी कमियाँ है, यह स्वीकार कर उन्होंने अपने (छुपे हुये?) बड़प्पन को ही दर्शित किया है।  
प्रश्न यही है कि, क्या ये वही अरविंद केजरीवाल हैं जिन्होंने अपने पहले दिल्ली के आम चुनाव के समय प्रधानमंत्री मोदी से लेकर कांग्रेस को खूब पानी पी पी कर कोसा था। आलोचना इस सीमा तक पहुंच गई थी कि, दिल्ली की रोड, गलियां नालियां आदि कोई भी समस्या के लिए भी लेफ्टिनेंट गवर्नर के माध्यम से नरेंद्र मोदी को जिम्मेदार ठहराने में उन्होंने कोई कोताई नहीं बरती थी। दिल्ली के दूसरे आम चुनाव के समय में आलोचना करते-करते (खासकर नरेंद्र मोदी के प्रति) उन्हें यह बात समझ में आ गई थी कि, दिल्ली के चुनाव को किसी भी हालत में नरेंद्र मोदी विरुद्ध अरविंद केजरीवाल न होने दें। इसलिए उस चुनाव में उन्होंने नरेंद्र मोदी का कहीं भी न तो नाम लिया और न ही किसी भी रूप में उनकी आलोचना की। लेकिन भाजपा से लेकर कांग्रेस और उनके नेताओं की वे व उनके साथी गण बराबर आलोचना करते रहे। वास्तव में यह कोरोना काल की देश की और दिल्ली के लिए ‘बदले हुए केजरीवाल‘ के रूप में एक उपलब्धि है। लेकिन क्या  केजरीवाल की उक्त भावना वास्तव में  धरातल पर उतर पायेगी? यह देखना दिलचस्प होगा?  टेलीविजन बहसों में ‘‘आप’’ के प्रवक्ता जिस तरह से भाजपा व कांग्रेस पर आरोप लगाते है, क्या यह केजरीवाल की मौन सहमति के बिना संभव है? क्योंकि प्रवक्ता तो पार्टी की तय नीति के तहत ही निर्देशित रूप से बहस करते है? वैसे कुछ लोग इसे केजरीवाल की (बचाव के साथ भविष्य के आक्रमण की) नई राजनैतिक कार्य प्रणाली भी मान सकते है। कोरोना काल में कोरोना से बचने के लिये सावधानी के कदमों को अपनाने से कोरोना ने व्यक्तिगत व सार्वजनिक जीवन में बीमारी के साथ कुछ अच्छा होने के परिणाम भी दिये है, जिनके साथ-साथ यह भी (केजरीवाल) एक उपलब्धि माना जाना चाहिए। 

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