बुधवार, 19 जनवरी 2011

लाचार-सरकार, लाचार-मंत्री और लाचार जनता, क्या यही स्वर्णिम भारत है?


 बहुत पहले भारत के जिस ‘‘भारत कुमार’’ (मनोज कुमारने सत्तर के दशक में भारत की बेजा महंगाई पर गाना ‘‘उपर से महंगाई मार गई’’ बहुत हिट हुआ था। उसके बाद अभी हाल ही में आमिर खान की ‘‘पीपली लाईव’’ मंे महगांई पर ‘महगांई डायन’ गाना बड़ा प्रसिद्ध हुआ। कहने का मतलब यह है कि महंगाई की समस्या आज की नहीं है बल्कि यह पहले से चली  रही है। लेकिन मुद्दे की बात है कि महंगाई का सामना करने के लिये आज जिस तरह से केंद्रीय सरकार कदम उठा रही हैबयानबाजी कर रही है ऐसी असहाय की स्थिति पूर्व में कभी नहीं देखी गई। यह सत्य कि महंगाईजीवन का एक अंग बन चुकी है। सामान्य महंगाई को सामान्य जनता भी सामान्य रूप से स्वीकार कर अपने जीवन में अंगीकृत कर रही है। पर आज यदि महंगाई पर हल्ला मच रहा है तो इसका मतलब साफ है कि यह महंगाई सामान्य नहीं है। निश्चित रूप से पिछले एक वर्ष के भीतर महंगाई में वृद्धि के कारण खाद्य पदार्थ से लेकर पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स इत्यादि रोजमर्रा की अनेक वस्तुए लगभग 80 से 100 फीसदी मंहगी हो गई।  केवल निम्न बल्कि मध्यमवर्गीय तबका भी इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ। सुरसा के मुह के समान बढ़ी यह महंगाई असहनीय हो गई। जिससे देश की जनता हलाहल है।
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एक सफल अर्थशास्त्री जो आर.बी.आईके गवर्नर से लेकर भारत सरकार के वित्त मंत्री तक रह चुके है जिनका प्रमुख कार्य ही देश की वित्तीय संरचना को सुदृढ़ता प्रदान करना रहा है। ऐसे अनुभवी अर्थशास्त्री के ‘सौभाग्य’ से देश के सर्वाेच्च पद पर बैठे होने के बावजूद तेजी से महंगाई बढ़ी है  बढ़ रही हैइससे यह सिद्ध होता है कि या तो सरकार की आर्थिक नीतियां कही  कही मूल रूप से गलत है या प्रधानमंत्री अपनी क्षमता और विवेक के अनुसार निर्णय लेने में स्वतंत्र नहीं है या फिर प्रधानमंत्री में वह क्षमता ही नहीं है या उनकी राजनैतिक मजबूरिया ऐसी है जिसके कारण वे कोई भी सार्थक  सफल कदम महंगाई रोकने के लिए नहीं उठा पा रहे है।
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उधर महंगाई को लेकर कांग्रेस के महासचिव राहुल गांधी का यह बयान कि हम महंगाई नहीं रोक पा रहे है क्योंकि गठबंधन धर्म की मजबूरी होने के कारण हम मजबूर है। अर्थात महंगाई कोई आर्थिक नीति में कमीफसल या मौसम की खराबीबाढ़सूखा के कारण नहीं है बल्कि सरकार में शामिल गठबंधन दलों द्वारा व्यापारियों  उद्योगपतियों को आर्थिक लाभ पहुंचाने की गरज से उनके अनुसार नीति निर्धारित कर कार्य करने की मजबूरी है। यह सर्वविदित है कि राहुल गांधी मौजूदा हालातों में नीति निर्धारको की पहली पंक्ति में शुमार है। इतना ही नहीं कृषि मंत्री शरद पवार के बार-बार महगांई पर जो बयान आये है वह  सिर्फ उनकी असहाय स्थिति को ही स्पष्ट करते है। बल्कि उससे यही सिद्ध होता है कि मंहगांई  तो उनके लिए एक चेतावनी का प्रश्न (अलार्मिंग इस्यूहै और  ही उनमें अपने मंत्री पद की जिम्मेदारिया निभाने की योग्यता एवं क्षमता है। निष्कर्ष यह निकलता है कि पूरी सरकार ही असहाय और पंगु सी दिखती है। इसलिए प्रधानमंत्री जी से लेकर मंत्रीजी तक पूरी सरकार  केवल राजनैतिक मुद्दे पर लाचार बल्कि आर्थिक मुद्दे पर भी लाचार सरकार है।
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गठबंधन धर्म की क्या-क्या मजबूरिया है यह देखना भी जरूरी है। महंगाई गठबंधन धर्म की मजबूरी है। 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाला गठबंधन धर्म की ‘‘शक्ति‘‘ है। फिर चाहे ‘‘केग’’ की नियुक्ति का मामला ही क्यो  हो। ऐसी अनेक घटनाओं  कार्यो का उल्लेख किया जा सकता है जिन्हे गठबंधन धर्म की मजबूरिया बताया जा। कर जनता के साथ छलावा किया जा रहा है। ये सब घटनाएं देश को निरंतर पतन की ओर ले जा रही है तो उसे गठबंधन धर्म के नाम पर क्यों स्वीकार किया जा रहा है। गठबंधन सरकार बनाते समय आपने देश की जनता से यह वायदा किया था कि आप देश को एक स्वच्छ जनापेक्षि परोपकारी  जनता के हित में जनता  देश की विकास के हित में लेने वाली मजबूत सरकार प्रदान करेंगे। क्या आपका कोई राष्ट्र धर्म नहीं है सिर्फ गठबंधन धर्म का मानना ही मजबूरी हैक्या आपका विवेक आपको इस बात के लिए नहीं धिक्कारता है कि महंगाई के लिये जिम्मेदार गठबंधन धर्म (स्वयं के अनुसारको स्वीकार करने के बजाय ‘राष्ट्रहित‘ में राष्ट्रधर्म अपना कर महंगाई को आम लोगों की पहुंच तक करने के लिए ठोस सार्थक  सफल कदम उठाये क्योंकि आम जनता में यह समझ चुकी है कि वह महंगाई से मुक्त-विमुक्त नहीं हो सकती लेकिन उसकी क्रय शक्ति की सीमा तक वह उसे स्वीकार करने को तैयार  मजबूर है। लेकिन आपका उद्वेश्य मात्र किसी भी प्रकार सत्ता में बने रहने का है तो शेष अवधि के लिए आप गठबंधन धर्म के नाम पर अलोकप्रीय निर्णय लेते रहे और तब जनता स्वंय आपके इस गठबंधन की विवशता का जवाब आगामी चुनाव में देगी।
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अब जनता की लाचारी की स्थिति भी देख ली जाय। जे.पीक्रांति से लेकर इमरजेंसी के विरोध में उठे जन आंदोलन के बाद श्रीराम जन्मभूंमि के लिए हुआ पूरे देश में आंदोलन के पश्चात इस देश की जमूरियत को  जाने क्या हो गया है कि देश की जनता को किसी भी क्षेत्र में चाहे कितने ही अत्याचार परेशानी और संकट का सामना झेलना पड़ रहा हो। लेकिन सामान्य जनता उसका प्रतिकार करने के लिए वह प्रतिक्रया नहीं व्यक्त कर रही है जैसी होनी चाहिए। इसलिए देश की जनता पर मंहगाई की मार जैसे कई अत्याचार होरहे है। आईये आज समय इस बात का है कि हम जनता पर हो रहे इस अत्याचार का प्रतिरोध करने केे लिए जनता को जागृत कर उनके मन में वह जज्बात पैदा करने की मुहिम चलाये जिससे वह तुरंत अतिचार को समाप्त कर सके ताकि तब कोई नेता गलत निर्णय कार्य  परिणाम के लिए गठबंधन धर्म की मजबूरी का सहारा  ले सके। क्योंकि परिस्थितियों को देखते हुए भविष्य गठबंधन सरकार का ही दिखता है।

बुधवार, 12 जनवरी 2011

राजनैतिक भ्रष्टाचार के मुद्दे पर ज्वाइंट पार्लियामेंट कमेटी की मांग जायज व उचित है?

फोटो सौजन्य से:  http://hastalavictoriasiambre.blogspot.com/
2 जी स्पेक्ट्रम काण्ड में जहां 1 लाख 76 हजार करोड़ से भी अधिक का गबन का आरोप लगाया जा रहा है। जो कामनवेल्थ घोटाले से भी बड़ा मामला है। विपक्ष ने 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले के मसले पर सी.बी.आई. जांच न की मांग नहीं करके जे.पी.सी. की मांग संसद में जोर शोर से उठाई गई। विपक्ष की इस मांग को यू.पी.ए. सरकार ने अस्वीकार कर दिया। जेपीसी की मांग पर अड़े विपक्ष की जिद के चलते संसद की कार्यवाही कई दिनों तक ठप्प रही।

                              इसमें कोई शक नहीं यह अब तक देश का सबसे बड़ा घोटाला है। जहां भ्रष्टाचार करोड़ो अरबो में नहीं बल्कि खरबों में है और इसलिए इनके मुख्य आरोपी ए.राजा को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा, लेकिन अभी तक न तो उनके खिलाफ एफ.आई.आर. दर्ज की गई, और न ही मामले को सी.बी.आई या अन्य कोई जांच एजेंसी को जांच के लिए दिया गया है। अभी तक जो कुछ हुआ है वह कंट्रोलर एवं आडिटर जनरल (केग) की रिपोर्ट के आधार पर ही कार्यवाही हुई है। जिससे उक्त घोटाला उजागर हुआ है। जिसकी रिपोर्ट पब्लिक एकांउंट्स कमेटी के अध्यक्ष मुरलीमनोहर जोशी के पास है।

                                हमें इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि उक्त घोटाला, घपला, गड़बड़ी में मात्र तत्कालीन दूरसंचार मंत्री ए.राजा ही शामिल नहीं है, बल्कि एक पूरी राजनैतिक जमात से लेकर अफसरशाही भी शामिल है। जिसकी आंच प्रधानमंत्री तक भी पहुंच रही है। जिस जेपीसी के गठन की बात की जा रही है उनके समस्त सदस्य राजनैतिक पार्टी के होकर संसद के किसी न किसी सदन के सदस्य है। जिन्हे न्यायाधीश के रूप में उक्त कमेटी के सदस्य की हैसियत से काम करके जांच रिपोर्ट देकर अपराधियों के विरूद्ध कार्यवाही करना होगा। सांसदो का ‘चरित्र’ पिछले कुछ समय से जनता के सामने आया है वह विदित है। कई स्टिंग आपरेशन के चलते कई सांसद गैर कानूनी कार्यवाही, अनैतिक कार्यो में लिप्त पाये गये। कई सांसद तो गंभीर अपराधों के प्रकरणों के चलते भी संसद के लिए चुने गये है। क्या ऐसे सांसदों के बीच में से राजनैतिक पार्टी की समस्या के आधार पर पार्लियामेंट जांच कमेटी का गठन किया जाकर क्या न्याय की उम्मीद की जा सकती है? जेपीसी के गठन के लिए ऐसी कोई नीति नहीं है कि दागदार सांसदों को कमेटी का सदस्य नहीं बनाया जाय। जब राजनेताओं को न्याय देने का अधिकार दिया जाये तो यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि वह व्यक्ति ईमानदार है। इतना ही नहीं वह क्षमतावान व एक न्यायाधीश के समान व्यवहार करते हुए कार्य करने में सक्षम होना चाहिए। न्याय का यह सिद्धांत है कि न्याय होना ही नहीं चाहिए बल्कि यह दिखना भी चाहिए कि न्याय हो रहा है। (श्रनेजपबम ेीवनसक दवज इम कमसपअमतमक इनज पज ेममउे जींज पज पे कमसपअमतमकण्द्ध

                                इसके पहले कई बड़े घोटालों को लेकर जेपीसी की मांग की गई। इनका क्या हश्र हुआ यह देश की जनता भलीभांति जानती है। यहां प्रश्न सिर्फ यह नहीं है कि जेपीसी का गठन होना चाहिए या नहीं बल्कि सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि देश की भोली भाली जनता की इतनी बड़ी रकम को हड़पने के दोषी लोगो के खिलाफ क्या कार्यवाही हुई। प्रश्न यह भी है कि दुनिया के इस सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में आजादी के बाद से अब तक करीब एक सौ पच्चीस लाख करोड़ रूपये भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गये लेकिन दोषियों का बाल बांका भी नहीं हुआ। कुछ एक मामलों को छोड़ दिया जाये तो ज्यादातर में लीपापोती के अलावा कुछ विशेष कार्यवाही होती नहीं दिखी। विपक्ष को चाहिए कि वह संसद में हंगामा करने के अलावा सड़कों पर उतरकर उस जनता से न्याय मांगे जो देश की असली मालिक कही जाती है। चूंकि हम एक लोकतांत्रिक देश में रह रहे है। अतः यहां संविधान के परिपालन के अनुसार राजनेताओं के भाग्य की विधाता कहीं जाने वाली देश की जनता ही यह बेहतर बता सकती है कि उसकी नजर में सही क्या है गलत क्या है। हमें आपातकाल का वह दौर हमेंशा याद रखना चाहिए जब लोकतंत्र की अवहेलना कर तानाशाही चरम पर थी। इसके बाद हुए चुनाव में देश की जनता ने सत्ता पर काबिज पार्टी और तानाशाहों को सिरे से बेदखल करने का क्रांतिकारी निर्णय दिया था। मौजूदा हालात भी लगभग वैसे ही है। सिर्फ 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला ही नहीं बल्कि कुछ ही महिनों में कई अन्य बड़े घोटाले भी उजागर हुए है। राजनेताओं को अब सीधे जनता की अदालत में दस्तक देना चाहिए जिससे दूध का दूध और पानी का पानी हो जाए।

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