विजयपुर उपचुनाव ! दल बदलू को सबक l
छह बार से कांग्रेस से जीतते रहे चंबल-ग्वालियर क्षेत्र के कद्दावर नेता तथा प्रदेश कांग्रेस के पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष रामनिवास रावत की विजयपुर उपचुनाव में वन मंत्री भाजपा प्रत्याशी के रूप में हार निश्चित रूप से कई संकेतो को इंगित करती है l प्रथम पिछले कुछ समय से राजनीति में यह प्रवृति हो गई है कि राजनेता यह मानकर समझ कर ही चलते हैं कि हम जब चाहे जिस पार्टी से चुनकर, फिर इस्तीफा देकर, फिर पुनः जनता के बीच चुनाव में जाकर जीत कर विधायक बनकर सत्ता की मलाई खा सकते हैं, उनके लिए यह एक झटका है l इसी मध्य प्रदेश में वर्ष 2018 के विधानसभा के चुनाव के लगभग 15 महीनों बाद लगभग 22 कांग्रेस के विधायकों ने लगभग एकसाथ विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल होकर सरकार गिरा कर तत्पश्चात फिर हुए उपचुनावों में भाजपा की टिकट पर जीतकर भाजपा की सरकार बनाई थी l उस समय भी इस्तीफा देने वाले कुछ विधायक फिर से चुनकर नहीं आ पाए थे l परंतु जनता के इस आंशिक सबक को नेताओं ने अंगीकार नहीं किया कि "अच्छी जीन से ही कोई घोड़ा अच्छा नहीं हो जाता है" l विजयपुर उपचुनाव की हार यह उक्त वृत्ति पर कुछ रोक अवश्य लगाती है l यह परिणाम कम से कम ऐसे नेताओं को सावधान तो जरूर करता है कि हम हमेशा जनता को यह मानकर नहीं चल सकते हैं (टेक इट ग्रांटेड) की जनता उन्हें हमेशा ऐसी स्थितियों में गले लगाएगी ही l हम देख रहे हैं पिछले काफी समय से किसी पार्टी से एक व्यक्ति चुनकर विधायक बनता है और सत्ता की लोभ में अपनी पार्टी से इस्तीफा देकर सत्ताधारी पार्टी में चला जाता है और वहां से उप चुनाव लडकर फिर जीत कर आ जाता है l सिद्धांत व पार्टी निष्ठा तो एक तरह से खत्म ही हो गई है l लेकिन "न ख़ुदा ही मिला न विसाले सनम" की उक्ति को चरितार्थ करते हुए इस परिणाम के द्वारा जनता ने इस बढ़ते हुए महारोग पर कुछ रोक जरूर लगाई है l याद कीजिए! कमलनाथ की पत्नी सांसद अलका नाथ द्वारा दिए गए स्टीव के कारण हुए छिंदवाड़ा लोकसभा का वह उप चुनाव जब कमलनाथ की टिकट "जैन डायरी हवाला कांड" में नाम आने पर कटने पर उन्होंने अपनी पत्नी अलका नाथ को टिकट दिलाई, जिनके चुनाव जीतने के कुछ समय बाद ही जैन हवाला कांड का मामला ठंडा होने पर उनसे इस्तीफा दिला कर खुद उप चुनाव लड़ा, जहां उन्हें पहली बार जनता ने पटकनी दी और यह सबक सिखाया कि आप क्षेत्र की जनता को अपने ऑफिस का कर्मचारी नहीं समझ सकते हैं कि जब आपके मन में आया हटा दिया और जब मनमर्जी हुई वापिस ले आए l
तोमर व शिवराज सिंह की कमजोर होती स्थिति ?
इसका दूसरा संकेत पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री व प्रदेश के सबसे बड़े कद्दावर नेता विधानसभा के स्पीकर नरेंद्र सिंह तोमर की राजनीतिक स्थिति पर कुछ प्रभाव पड़ सकता है l रामनिवास रावत कांग्रेस की राजनीति में ज्योतिरादित्य सिंधिया के खासम खास हुआ करते थे, बावजूद इसके वे ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ भाजपा में शामिल नहीं हुए थे l नरेंद्र सिंह तोमर ने अपने प्रभाव क्षेत्र को सिंधिया के मुकाबले बढ़ाने के लिए ही रामनिवास रावत को पार्टी में शामिल करवा कर मंत्री बनवाकर चुनाव लड़वाया था l शायद इसी कारण से सिंधिया इस चुनाव में स्टार प्रचारक होने के बावजूद प्रचार करने नहीं गए l इस चुनाव परिणाम ने नरेंद्र सिंह तोमर के इस प्रयास को धक्का लगाया l अर्थात "अंधे अंधा ठेलिया दोनों कूप पड़ंत"।
भविष्य में मुख्यमंत्री को चुनौती देने वाले दावेदारों की स्थिति कमजोर हुई l
मुख्यमंत्री मोहन यादव की दृष्टि से इस परिणाम के राजनीतिक नफा नुकसान को देखना दिलचस्प होगा l क्योंकि इन दोनों उप चुनावों की टिकटें मुख्यमंत्री मोहन यादव ने नहीं दिलाई थी l विजयपुर की टिकट उनके एक प्रतिद्वंद्वी नरेंद्र सिंह तोमर व दूसरी टिकट दूसरे प्रतिद्वंद्वी शिवराज सिंह चौहान के कोटे से आई थी l इसलिए पार्टी के "अंदर खाने" की राजनीति में तो डा. मोहन यादव को इसका फायदा हो सकता है l परन्तु सार्वजनिक राजनीति में इन परिणामों से उनकी सरकार की कार्य क्षमता पर एक प्रश्नवाचक चिह्न जरूर लगता है? बुधनी की "फीकी जीत" (पिछले चुनाव की तुलना में लगभग 90 हजार जीत का अंतर कम हो गया) से भी उनके जिताऊ नेतृत्व क्षमता पर उंगली जरूर उठेगी l झारखंड में भाजपा की बुरी हार से भी शिवराज सिंह की स्थिति कमजोर हुई है l
आदिवासी वर्ग का भाजपा से छिटकना l
विजयपुर विधानसभा की एक प्रमुख बात यह भी है कि कांग्रेस के उम्मीदवार मुकेश मल्होत्रा आरक्षित आदिवासी वर्ग से आते हैं, जो पिछले चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में लड़े थे l जबकि भाजपा के उम्मीदवार रामनिवास रावत मीना रावत समाज से आते हैं l विजयपुर आदिवासी आरक्षित विधानसभा क्षेत्र नहीं है l अतः इस सीट पर 6 बार रामनिवास रावत के रूप में कांग्रेस की जीत से यह बात स्पष्ट रूप से सिद्ध होती है कि इस क्षेत्र का आदिवासी वर्ग रावत के कांग्रेस छोड़ने के बावजूद कांग्रेस के साथ जुड़ा हुआ है, जो भाजपा नेतृत्व के लिए चिंता का सबब होना चाहिए l एक दिलचस्प बात यह भी है की भाजपा प्रत्याशी रामनिवास रावत की कुल घोषित संपत्ति 9 करोड़ 83 लाख रुपए की है, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी मुकेश मल्होत्रा की कुल संपत्ति मात्र 83 लाख रुपए है l एक बात और, एक ही समय दो बार शपथ ले कर "ढाई दिन की बादशाहत" का ऐतिहासिक रिकॉर्ड बनाने वाले राम निवास रावत इस चुनाव में सातवीं बार जीत का रिकॉर्ड नहीं बना पाए l यह रावत की 2018 की विधानसभा की व 2019 की लोकसभा चुनाव की हार के बाद तीसरी हार है l यदि वन मंत्री रहे विजय कुमार शाह को छोड़ दिया जाए तो वन मंत्री के रूप में हार का सिलसिला डॉ गौरीशंकर शेजवार से लेकर रावत तक बदस्तूर जारी है l
क्या कांग्रेस के लिए यह परिणाम "बूस्टर" हो पाएगा?
विधानसभा और लोकसभा चुनाव में बुरी तरह से हारी कांग्रेस के लिए विजयपुर उपचुनाव की जीत और बुदनी उपचुनाव की भाजपा की जीत की मार्जिन में भारी कमी कहीं न कहीं एक "बूस्टर" का काम कर सकती है ? यदि कांग्रेस नेतृत्व इस संदेश को कार्यकर्ताओं के माध्यम से पूरे प्रदेश में पहुंचने का प्रयास करें तो? जो वर्तमान प्रदेश कांग्रेस नेतृत्व वह खस्ता संगठन हालत को देखते हुए संभव लगता नहीं है l क्योंकि इस जीत में स्थानीय कांग्रेस नेतृत्व की प्रमुख भागीदारी रही है न की प्रादेशिक नेताओं की l प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी की राजनीतिक सोच की हालत यह है कि वह विजयपुर की जीत पर तो उसे लोकतंत्र की रक्षा बताते हैं l तब फिर बुदनी की "हार" क्या कहलाएगी ? यदि उनका तर्क रूबरू वैसा ही मान लिया जाए तो? जीत और हार तो स्वस्थ लोकतंत्र की निशानी है। "अकल और हेकड़ी एक साथ नहीं चल सकती", पटवारी जी! यह लोकतंत्र का अभिन्न भाग है l एक पक्ष जीतेगा और दूसरा पक्ष हारेगा ही l हां यदि बुधनी उपचुनाव संवैधानिक प्रक्रियाओं का उल्लंघन और धांधली करके धन बाहुबली के दुरुपयोग से जीता गया है, तब जरूर लोकतंत्र पर प्रश्न लगता है l तथापि ऐसा कोई आरोप जीतू पटवारी का नहीं है और न ही वस्तु स्थिति है l
अंत में दोनों जीते हुए उम्मीदवार को हार्दिक बधाइयां l