राहुल गांधी क्या ‘‘पप्पू’’ से ‘‘पपलू’’ बन गये है या बना दिये गए हैं?
आंदोलन
समाज के उठते द्वंद्व पर अंतर्मन में उठते विचार
मंगलवार, 21 मार्च 2023
स्थगित देशद्रोह के निरापराध के लिए हंगामा क्यों बरपा?
बुधवार, 15 मार्च 2023
पत्रकारिता के एक " *भीष्म "युग पितामह" का देहावसान! नमन श्रद्धांजलि व कुछ मधुर लम्हे!
17 मई 2018 को बैतूल में आयोतिज समारोह
पत्रकार जगत के " धूमकेतु" डॉक्टर वेद प्रताप वैदिक का अचानक हृदयाघात से स्वर्गवास हो जाने से प्रिंट मीडिया में गहरे अवसाद के साथ में एक बड़ा शून्य और रिक्तता उनके बड़े व्यक्तित्व के न रहने के कारण आ गई है, जो स्वाभाविक ही हैं, जिसकी परिपूर्ति उसी तरह की होना शायद संभव नहीं हो पाएगी। "सरल, गंभीर शब्दों और कठोर तर्कों के धनी" डाॅ. वेद प्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है, जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलाने के लिये सतत संघर्ष और त्याग किया। "हा, अनतिक्रमणीयो हि विधिः" मतलब डॉ वेद प्रताप वैदिक इस संसार से देह छोड़कर ईश्वर के पास अवसान (देह-अवसान) के लिए चले जाने के बावजूद विश्व पटल पर अपने लिखे गए लेखों के माध्यम से पाठक जन-जन में हमेशा अपनी उपस्थिति का एहसास कराते रहेंगे। प्रायः दो-चार दिनों की आड़ में अपनी कलम से दो-चार होकर देसी कलम से विदेशी जानकारी, खासकर भारत के पड़ोसी देशों के साथ राजनयिक संबंधों के संबंध में उनकी विचारोत्तेजक टिप्पणियां देश के शासकों के लिए हमेशा एक चुनौतीपूर्ण रास्ता दिखाने वाली होती थी। इसी कारण से वे लंबे समय से "भारतीय विदेश नीति परिषद" के अध्यक्ष चले आ रहे थे। कदापि इसका मतलब यह नहीं है कि वे देश की आंतरिक स्थिति पर नज़र रखे हुए नहीं थे। बल्कि देश में पल-पल पर घटित हो रही घटनाओं पर एक "सजग प्रहरी की भांति" प्रायः अपनी तीक्ष्ण, तीव्र नजर से देखकर भेद कर अपनी पैनी कलम से राष्ट्रहित जनहित में लिखकर शासकों को हमेशा सजग रहने के लिए समालोचक उत्प्रेरक का कार्य करते रहे।
ऐसा भी नहीं है की विवादित विषयों से उनका कभी भी नाता-पाला ही न पड़ा हो या सामना न हुआ हो। उदाहरणार्थ देश का दुश्मन नंबर एक खूंखार पाकिस्तानी आतंकी हाफिज सईद से उनकी मुलाकात व इंटरव्यू (साक्षात्कार) बड़ा विवाद का कारण बना। यद्यपि जैसी कि उक्ति है कि "अप्रियस्य च अपथ्यस्य श्रोता वक्ता च दुर्लभ:", तथापि यह उनके व्यक्तित्व का ही अद्भुत विलक्षण प्रभाव था कि उन विवादित विषयों पर भी उनके आशय को दुराशय ठहराने का दुस्साहस/ साहस कोई आलोचक नहीं कर पाया। मतलब पत्रकारिता को पूर्ण रूप से जीने वाले जीवट व्यक्ति का हमारे बीच से चला जाना अपूरणीय क्षति है। कबीर के शब्दों में
"दास कबीर जतन से ओढ़ी, ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया"
मेरे लिए तो व्यक्तिगत रूप से यह वज्राघात समान ही एक बहुत बड़ी क्षति है। मुझे उनके साथ बीते हुए वे पल आज लेख लिखते हुए याद आ जाते हैं, जो वर्तमान "द सूत्र " के सूत्रधार मूलतः बैतूल के वरिष्ठ पत्रकार मेरे छोटे भाई आनंद पांडे के माध्यम से मेरे प्रकाशित लेखों के संकलन की किताब "कुछ सवाल जो देश पूछ रहा है आज" के लोकार्पण कार्यक्रम में तत्कालीन केंद्रीय मंत्री व मुझे हमेशा से आशीर्वाद देने वाली दीदी सुश्री उमा भारती जी के साथ वे बैतूल आए थे। जब मैंने उन्हें बताया कि दीदी कार्यक्रम में आ रही है, तब वे बोले-"अच्छा! उमा आ रही है आ है"। इससे उनकी बेहद सुगमता, सरलता, सहजता और अधिकार पूर्ण आत्मीय संबंध प्रकट होते हैं, जो मैंने उनके बैतूल प्रवास के दौरान उनके साथ गुजारे एक दिन के समय में महसूस किए थे। लोकार्पण कार्यक्रम में उन्होंने "गागर में सागर भरते हुए" जो उदगार व्यक्त किए थे, वे दिलो-दिमाग में आज भी उतने ही ताजे है। व्यक्तिगत चर्चा में उन्होंने मुझसे कहा था कि राजीव जब मैं बैतूल आ रहा था, तो ट्रेन में आपकी किताब को पढ़ रहा था। "उसमें कुछ विषय व उनके विस्तार ऐसे थे जो मेरी भी सोच से आगे होकर थे, जिसकी मुझे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी की बैतूल में भी कोई इस तरह से घटनाओं पर त्वरित टिप्पणी लिख सकता है"। उनके द्वारा कथनों के रूप में दिया गया यह सम्मान मेरी जीवन की अनमोल धरोहर है। बहुत समय के बाद हाल में ही कुछ दिनों पूर्व जब फोनअनेकानेक पर बातचीत हुई थी, तब उन्हें बैतूल की उस विमोचन कार्यक्रम की पुनः याद आई और मुझसे उन्होंने पूछा कि वे पांडे जी कैसे हैं, जो कार्यक्रम के बाद मुझे अपने घर ले गए और शाल श्रीफल से सम्मानित किए थे। तब मैंने उनकी आनंद पांडे से बात भी कराई थी। उनका यह निष्कपट, निशंक अपनापन व अपनत्व ही उनकी जीवन की धरोहर थी।
इंदौर में जन्मे मध्य प्रदेश का गौरव बढ़ाते हुए देश के हृदय स्थल मध्य प्रदेश से गुड़गांव रहने चले गए थे। परंतु उनका हृदय (दिल) इंदौरी ही होकर घूमता रहता था। हिंदी प्रदेश से होने के कारण राष्ट्रभाषा हिंदी को उसका उचित स्थान और सम्मान दिलाने के लिए जो अविरत, अथक और सार्थक प्रयास उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं अंतरराष्ट्रीय पटल पर किए हैं, वह शायद ही किसी अन्य हिंदी के पत्रकार ने उतने किए होंगे। तथापि वे अंग्रेजी, रूसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के भी प्रकांड जानकार थे। राष्ट्रभाषा हिंदी व भारतीय भाषाओं के उत्थान के लिए यदि डॉ वेद प्रताप वैदिक को सर्वकालीन सामयिक सबसे बड़ा ब्रांड एंबेसडर कहा जाए तो बिल्कुल भी अनुचित नहीं होगा। अभी हाल में ही फरवरी 2023 में फिजी में संपन्न हुए विश्व हिंदी सम्मेलन के बाद आए लेख में हिंदी भाषा की स्थिति को लेकर उनके विचार बड़े विचारोत्तेजक थे। उनका यह मानना था कि हमारे देश में हिंदी भाषा को जो स्थान मिलना चाहिए था, वह अभी भी नहीं मिल पाया है। इसके लिए वे सिर्फ शासक-शासन-प्रशासन को ही नहीं वरन नागरिकों को भी जागृत करते रहते थे। "दरबार से दूर, चौकी से दूर" डाॅ. वैदिक अनेक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों-सम्मानों न केवल विभूषित हुए, बल्कि अपने 60 वर्ष के लेखन जीवन में उन्होंने हजारों लेख, भाषण लिखे, दिए और विभिन्न पदों पर काम करते रहे। प्रथम हिंदी समाचार एजेंसी भाषा के संस्थापक संपादक रहे। हिंदी के घोर प्रेमी होने के बावजूद अंग्रेजी भाषा में भी उनकी एक पुस्तक का प्रकाशन होना उनके उदार व बहुआयामी व्यक्तित्व को ही झलकाता है ।
डॉक्टर वैदिक की अनेकानेक उपलब्धियों के बावजूद भी एक दो बातें मन को अवश्य कचोटती हैं। प्रथम उन्हें पद्म पुरस्कारों से नवाजा न जाना और दूसरा राज्यसभा के लिए नामांकित सदस्य के रूप में नियुक्ति न करना। विज्ञान, कला, साहित्य क्षेत्रों व समाज सेवा में विशिष्ट रूप से सेवा कार्य करने वाले 12 व्यक्तियों को प्रत्येक राज्यसभा की 6 वर्ष की अवधि के लिए केंद्र सरकार की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा नामांकन का प्रावधान संविधान सभा ने इसलिए ही किया था कि ऐसे व्यक्ति जो राजनीतिक न होकर संसद में चुनकर नहीं जा पाते हैं की उल्लेखित क्षेत्र में की गई सेवाओं अनुभव और ज्ञान का लाभ "संसद के प्रभावशाली माध्यम" से राष्ट्र को मिल सके। शायद इसीलिए राज्यसभा में सर्वप्रथम 12 नामांकित किए गए व्यक्तियों में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और हिंदी भाषा की बड़ी सेवा करने के कारण ही प्रसिद्ध गांधीवादी लेखक चिंतक दत्तात्रेय बालकृष्ण उर्फ काका साहेब कालेलकर शामिल किए गए थे। हिंदी भाषा की जो सेवा वैदिक जी ने की, निश्चित रूप से संविधान द्वारा प्राविधिक उन 12 सीटों में से एक के नामांकन के वे हकदार अधिकारी अवश्य थे। पद्म भूषण भले ही उन्हें न मिला हो लेकिन साहित्य भूषण पुरस्कार से अवश्य सम्मिलित हुए। पद्म पुरस्कारों की लंबी चौड़ी फेहरिस्त देखें तो उससे भी स्पष्ट रूप से यही सिद्ध होता है कि दोनों स्थितियों में डॉक्टर वैदिक पुरस्कृत और नामांकित नहीं किया गए, तो उसका एक कारण शायद वैदिक जी का स्वयं को सरकार की अनुकूलता की उस सीमा तक ढाल न पाना हो सकता है, जिसकी आवश्यकता ऐसे नामांकन के लिए आजकल शायद जरूरी हो गई है। वस्तुतः ठकुर सुहाती" उनका स्वभाव-गत लक्षण ही नहीं था । "कहि रहीम कैसे निभै, बेर केर को संग" ख़ैर! इससे डॉ. वैदिक के व्यक्तित्व या सम्मान पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता है। बल्कि उलट इसके ऐसे तंत्रों की उपयोगिता विश्वसनीयता और औचित्य पर ही औचित्य पर ही शैन: - शैन: प्रश्नचिन्ह लग सकते हैं। डाॅ. वैदिक का व्यक्तित्व तो इन दो पंक्तियों में निहित है :--
दुनिया में हूं दुनिया का तलबगार नहीं हूं,
बाज़ार से निकला हूँ ख़रीदार नहीं हूं।
आज ऐसे व्यक्तित्व का व्यक्ति हमारे बीच नहीं रहे। उनको ह्रदय की गहराइयों से शत-शत नमन, श्रद्धांजलि। वे भारत के पत्रकारिता पटल पर "दिन और रात के मध्य, संध्याकाल के समान शोभायमान हैं"। ईश्वर से यही प्रार्थना है कि उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें, उन्हें अपने पास जगह दे और भारत ही नहीं विश्व में उनकी कलम से घटनाओं को जानने और समझने वाले दुखी मानव समुदाय को सांत्वना दे।
सोमवार, 6 मार्च 2023
केजरीवाल की झूठी ‘‘कट्टर ईमानदारी’’ को ‘‘कट्टर बेईमानी’’ सिद्ध करने वाली भाजपा क्या मेघालय में ‘‘सत्ता’’ के लिए ‘‘कट्टर अनैतिकता’’ को अपनाएगी?
देश के तीन उत्तर पूर्वी प्रदेशों के विधानसभा चुनाव परिणाम आ गए हैं। दो प्रदेश त्रिपुरा व नागालैंड में भाजपा की गठबंधन सरकार को स्पष्ट बहुमत मिला है। मेघालय में नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) 26 सीटों पर जीत कर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है। एनपीपी व उसके नेता कोनराड संगमा को भाजपा ने चुनाव प्रचार के दौरान भ्रष्टतम नेता व पार्टी निरूपित किया था। एनपीपी के साथ पूर्व में भाजपा ने गठबंधन सरकार बनाई थी। परन्तु चुनाव के एनवक्त पहले भाजपा ने ‘‘छब्बे बनने के चक्कर’’ में गठबंधन तोड़ दिया था। लेकिन परिणाम आने पर ‘‘दुबे भी नहीं रह पाए’’। परिणाम आने के दौरान ही भाजपा ने एनपीपी के साथ पुनः सरकार बनाये जाने के जो प्रारंभिक संकेत दिए थे, वे अब फलीभूत होने जा रहे हैं। भ्रष्टतम राजनीति की बिसात तो देखिये! भ्रष्टतम व्यक्ति निरूपित किये गये मुख्यमंत्री कोनराड संगमा ने किस बेशर्मी से देश के उस गृहमंत्री से सरकार बनाने के लिये समर्थन व आशीर्वाद मांग लिया जिसने ही चुनाव प्रचार के दौरान उसे भ्रष्टतम करार किया था। चूंकि ‘‘घायल की गति घायल जाने’’ अतः बेशर्मी का जवाब आज की राजनीतिक बेशर्मी ही हो सकती है। अतः कोनराड संगमा के प्रस्ताव को अमित शाह ने बेशर्मी से स्वीकार कर लिया। गोया कि ‘‘सर सलामत तो पगड़ी हजार’’! क्या आप भूल गये (बेशर्मी) दो माइनस ;.द्ध ;.द्धत्ऱ (सत्ता) होती है। चुनाव परिणामों की चर्चा करने के पूर्व कुछ बातें ‘‘कट्टरता’’ के संबंध में भी कर ले, जिसका संदर्भ आगे चुनाव परिणाम के विश्लेषण में किया गया हैै।
‘‘एमपी अजब- गजब’’! ‘‘अजब’’ प्रदेश के ‘‘गजब’’ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के जन्म दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
5 मार्च को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के जन्म दिवस पर विशेष लेख!
5 मार्च को प्रदेश के जन-जन के दिलों में (शिव-राज) राज करने वाले ‘‘शिव’’ के सेवक ‘‘मत चूके चौहान’’ का पालन करने वाले शिवराज सिंह चौहान का आज जन्म दिवस है। निश्चित रूप से जन्मदिन के अवसर पर व्यक्ति की उपलब्धियों को गिनना एक शिष्टाचार होता है। ‘‘कभी घी घना, कभी मुट्ठी भर चना’’ को समान भाव से ग्रहण करने वाले शिवराज सिंह के नाम अनेकानेक उपलब्धियां है। या यह कहें कि उपलब्धियों का भंडार है, तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। ‘‘हाथ कंगन को आरसी क्या’’, इनमें से कुछ उपलब्धियां तो देश में सबसे पहले सबसे, आगे व सबसे तेज प्रारंभ करने का श्रेय शिवराज को जाता है। तो कुछ योजनाएं भूतो न भविष्यति की श्रेणी में आती है। ‘‘अपनी करनी पार उतरनी’’ पर विश्वास रखने वाले शिवराज सिंह की कुछ उपलब्धियां ऐसी भी है, जो उन्हें सिर्फ-सिर्फ (एक्सक्लूसिव) उनके द्वारा ही प्रारंभ की गई है।
शिवराज सिंह की देश में बिलकुल, अनन्य, नई उपलब्धियां आगे रेखांकित की जा रही है। देश के वे शायद एकमात्र ऐसे मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण करने के तुरंत-फुरंत नहीं बल्कि एक महीने बाद मात्र पांच सहयोगी मंत्री बनाएं व जिन्हे विभागों का प्रभार देने के पहले भौगोलिक स्थिति के अनुसार संभागीय प्रभार दिये गये। देश की प्रथम गौ कैबिनेट बनी (वर्ष 2020)। समरस गांव सम्मान योजना (अपराध कम करने के लिये तीन साल में एक भी रिपोर्ट थाने में न पहुंचने पर), समस्त गांवों का जन्म दिवस योजना साल में एक दिन तय कर गांव का जन्मदिन मनाकर विकास की योजना बनाना देश में एक बिल्कुल नया प्रयोग है। ‘‘तेल देख, तेल की धार देख’’ का अनुसरण करते हुए लाड़ली बहना योजना के तहत मध्य प्रदेश सरकार बहनों को 1000 महीना देने जा रही हैं, यह योजना 8 मार्च से शुरू हो रही है।
यद्यपि शिवराज की नीति है कि ‘‘माल कैसा भी हो, हांक हमेशा ऊंची लगनी चाहिये’’, लेकिन देश की विभिन्न योजनाएं में मध्यप्रदेश को अव्वल (प्रथम) स्थान रखने वाली कुछ उपलब्धियां भी है, जो यह दिखाती हैं कि शिवराज ‘‘हथेली पर सरसों जमाने वाले’’ मुख्यमंत्री नहीं है। केंद्र की प्रधानमंत्री स्वनिधि योजना (शहरी पथ विक्रेताओं के लिए) स्कॉच ग्रुप ने गुजरात के साथ-साथ मध्य प्रदेश को सुशासन के लिये सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार से नवाजा है। कृषि क्षेत्र में सिंचाई के साधन में कई गुना वृद्धि होने के परिणाम स्वरूप ही प्रदेश को पिछले पाँच वर्षो से लगातार ‘‘कृषि कर्मण’’ पुरस्कार मिला है। अब वे ‘‘पांव-पांव’’ के साथ ‘‘गांव-गांव’’ वाले भैया भी कहलाने लगे हैं। स्वच्छता के मामले में इंदौर पिछले लगातार पांच सालों से देश में सर्वप्रथम रहकर प्रदेश को गौरवान्वित किया है। इस प्रकार स्वच्छता के लिए ‘इंदौर मॉडल’ को देश के अनेक प्रदेश अपनाने का प्रयास कर रहे है। इंदौर देश का प्रथम ‘‘वाटर प्लस’’ सिटी (2021 में) बना। स्वच्छ सर्वेक्षण में भी प्रथम। कोविड-19 संक्रमण काल में ओमिक्रॉन के बढ़ते फैलाव को देखते हुए देश में सर्वप्रथम मध्यप्रदेश में नाइट कफर््यू लगाया गया। ऑक्सीजन की कमी होने के कारण ऑक्सीजन के उपयोग के लिए ऑक्सीजन ऑडिट की बिल्कुल नई धारणा देकर स्थिति पर नियंत्रण किया। केंद्र की प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा 2022, स्वनिधी योजना, प्रधानमंत्री मातृत्व वंदना व सुकन्या समृद्धि योजना में मध्यप्रदेश प्रथम हैं। उपभोक्ता निराकरण मामले में, निःशक्त विद्यार्थी को शिक्षा देने में अव्वल (वर्ष 2015)। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस 21 जून 2021 को एक दिन में सबसे ज्यादा कोविड वैक्सीन 16.91 लाख (1691967) लगाने का वल्र्ड रिकॉर्ड व देश के देश में सबसे ज्यादा 3 करोड़ से ऊपर वैक्सीन लगाने का रिकॉर्ड भी मध्यप्रदेश ने ही बनाया। युवाओं (15 से 18 वर्ष) को वैक्सीन लगाने के मामले में देश में प्रथम दिवस पर मध्यप्रदेश प्रथम स्थान पर रहा (लगभग 7.5 लाख)। अभी 18 फरवरी 2023 (विक्रम संवत 2079) को महाकाल की नगरी अवंतिका उज्जयिनी में ‘‘शिव ज्योति अर्पण’’ कार्यक्रम में जन सहयोग 1882229 दिए (दीपक) से शिवराज सिंह ने प्रज्वलित करवाएं।
‘‘मेरी सुरक्षा मेरा मास्क’’ जन-जागरूकता अभियान चलाया। आंवला उत्पादन में प्रथम (देश का 33 प्रतिशत)। 19 फरवरी 2021 को नर्मदा जयंती के अवसर पर अमरकंटक में पौधा लगाकर 1 वर्ष तक प्रतिदिन एक पौधा लगाने का न केवल संकल्प शिवराज सिंह ने लिया, बल्कि उसको प्रतिदिन लागू कर एक नहीं 2 वर्ष से भी ज्यादा समय व्यतीत होकर प्रतिदिन एक या अधिक पौधे लगाए हैं। वृक्षाय नमामि। जनता से भी ऐसी ही अपील की जाकर ‘‘अंकुर कार्यक्रम’’ प्रारंभ कर अभी तक 17 लाख से ज्यादा पौधे लगाए जा चुके हैं। अस्पताल की तर्ज पर किसानों के लिए ‘‘कृषि ओपीडी’’ के रूप में पायलट प्रोजेक्ट की शुरुआत सर्वप्रथम 2020 में हरदा में प्रारंभ की गई। राज्य में न केवल मांग-आपूर्ति के अनुरूप बिजली का उत्पादन हो रहा है, बल्कि अब वह दूसरे प्रदेश को अतिरिक्त बिजली बेच भी रहा है। इस प्रकार लगभग 39 विभागों की 200 से अधिक अनेकानेक योजनाएं उन्होंने जनहित में लागू की हैं। मध्य प्रदेश को विकास के माध्यम से देश का नम्बर वन राज्य बनाने का उनका संकल्प व रोड़ मेप है। इसी दिशा में 2023-24 के लिए प्रस्तुत किये गए बजट में ‘‘मां’’ ‘‘बेटी’’ व ‘‘बहन’’ को शामिल करते हुए महिलाएं जो लगभग आधी जनसंख्या के लिए 33 प्रतिशत से अधिक बजट प्रावधान अनुसूचित जनजाति व अनूसचित जाति के कुल 37 प्रतिशत आबादी के लिए भी कल बजट का 37 प्रतिशत से अधिक धन राशि का प्रावधान किया गया है। मध्यप्रदेश की विकास यात्रा के संबंध में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का यह कथन महत्वपूर्ण है कि मध्यप्रदेश गजब तो है ही, देश का गौरव भी है। कालांतर में ‘‘मध्यप्रदेश’’ भारत की विकास गाथा के पीछे मुख्य प्रेरक शक्ति बन जाएगा’’। ‘‘स्वारथ लागि करहिं सब प्रिती’’।
‘‘दूरस्थारू पर्वता: रम्यारू’’ को चरितार्थ करती हुई शिवराज सिंह की कुछ प्रमुख असफलताएं भी है। महिलाओं पर होने वाले अपराध, बलात्कार व बच्चों के अपराध के मामलों में मध्यप्रदेश आज भी अव्वल प्रदेश से निकल नहीं पाया है। आत्महत्या के मामले में देश में तीसरे स्थान पर है। ‘‘हर महान् योद्धा कोई न कोई युद्ध हारता भी है’’। शिवराज सिंह भी अपने लंबे राजनीतिक करियर में मात्र एक चुनाव हारे हैं।
भाजपा हाईकमान के सामने भी ‘‘हाकिम की अगाड़ी से बचने वाले’’ शिवराज सिंह की स्थिति ‘‘न उगलते बने न निगलते’’ जैसी हो गई है। 9 महीने बाद प्रदेश में आम चुनाव होने वाले है। एक तरफ भाजपा हाईकमान की नजर में प्रदेश के कोने कोने में शिवराज सिंह से ज्यादा पहचान वाला, (‘‘मामाजी’’) दूसरा अन्य कोई व्यक्ति नहीं है, जो आगामी चुनाव में भाजपा की सत्ता की नाव को सफलतापूर्वक खेव सके। अंदरखाने की बात करें तो भाजपा हाईकमान के पास यह भी रिपोर्ट विभिन्न विश्वस्त सूत्रों से आ रही है कि लगातार 16 वर्ष (बीच में 15 महीने छोड़कर) सत्ता में रहने के कारण शिवराज सिंह के नाम की व्यक्तिगत विरोधी लहर (एन्टी इनकम्बेंसी) (जो स्वाभाविक है) बन गई है, जो चुनाव में हार का कारक सिद्ध हो सकती है। भला ‘‘ख़लक का हलक किसने बंद किया है’’।
यह सामान्य प्रक्रिया है, जब हम किसी चेहरे को लगातार देखते है, तो उससे ऊब से जाते है और बिना किसी दोष के उस चेहरे को बदलने के लिए लालायित हो जाते है। एक फिल्म जो कितनी ही अच्छी क्यों न हो, दो-तीन, चार बार ही देखी जा सकती है। पांचवी बार उसे देखने का मन नहीं होगा। वही स्थिति शिवराज सिंह की है। परन्तु इस स्थिति के लिए उन्हें जिम्मेदार कदापि नहीं ठहराया जा सकता है। क्योंकि यह स्थिति उनके कार्यों के कारण नहीं है, बल्कि जनता के द्वारा लगातार एक चेहरा दिखने के कारण है। अब वे उम्र के इस पड़ाव पर चेहरे पर प्लास्टिक सर्जरी करने से तो रहे? यद्यपि राजनीतिक सर्जरी करने में वे माहिर होकर ‘उस्तादों के उस्ताद’ है। यह एन्टी इनकम्बेंसी कारक उस जनता के कारण उत्पन्न हुआ है, जिसने स्वयं शिवराज सिंह को लगातार चुना है और वही जनता अपने कृत्य से उत्पन्न एन्टी इनकम्बेंसी के नाम पर चेहरा बदलने का मैसेज दे, इसके लिए शिवराज सिंह कहां तक जिम्मेदार है? तथापि इस उत्पन्न दोष के लिए उन्हें क्यों ‘‘बली का बकरा’’ बनाया जाना चाहिए? या तो जनता को लगातार चेहरे देखने से ऊबने की प्रवृत्ति को दूर करना होगा, बदलना होगा। अन्यथा पांचवी बार जब आप फिल्म देखने जाएंगे तो हाल में सिर्फ वे ही लोग होंगे जिनको फ्री व स्पेशल पास मिले होंगे। मतलब साफ है! परिणाम भविष्य के गर्भ में है। ‘‘होइहि सोइ जो राम रचि राखा’’।
बुधवार, 1 मार्च 2023
वर्ष 2023 के अंत में हो रहे मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव में ‘‘जनता की सरकार’’! किस झंडे तले?
नवम्बर 2023 में मध्य-प्रदेश के विधानसभा चुनाव अन्य 4 प्रदेशों व एक केन्द्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर (संभावित) के साथ हो रहे हैं। बदलते गुजरते समय के साथ ‘युग’ परिवर्तनवादी, प्रगतिवादी, विकासवादी होता है, या कभी पिछड़ेपन लिये भी होता है, परंतु ‘‘जड़’’ नहीं होता है। बड़ा प्रश्न यह है कि आगामी होने वाले विधानसभा चुनाव में ‘‘डंका’’ किसका बजेगा, ‘‘झंडा’’ किसका गड़ेगा और 26 जनवरी 2024 को गणतंत्र दिवस की परेड की सलामी लाल परेड पुलिस ग्राउंड, भोपाल में कौन लेगा? परिवर्तन होगा? या पुनरावृत्ति होगी? इसका सटीक आकलन करना तो ‘‘गूलर का फूल तलाशने’’ जैसा है। फिर भी लगभग 9 महीनों बाद होने वाले विधानसभा चुनाव का आकलन पिछले सवा चार सालों की कार्यप्रणाली के आधार पर और हो रही चुनावी तैयारी को ध्यान में रखकर किया जा रहा है। परन्तु आगामी इन 9 महीनों में आगे क्या कुछ घटेगा, जो शायद हमारी-आपकी कल्पनाशीलता में न हो या जिस पर हम आज विचार नहीं कर पा रहे हैं, का परिणामों के अनुमान पर प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। परन्तु फिर बड़ा प्रश्न यही है कि, इस ‘‘सूरते हाल’’ में ‘‘तेल देख तेल की धार देखते हुए’’ वर्तमान चुनावी आकलन इस प्रदेश के बाबत् क्या है?
अभी चुनाव में 9 महीने शेष है। गर्भधारण करने से सामान्यतः 9 महीनों में बच्चे का जन्म होता है और प्रसव कष्ट सहने के साथ बच्चे के पैदा होने पर माँ व परिवार को खुशी होती है। कुछ-कुछ वैसी ही स्थिति राजनैतिक आकलन की भी समझिए। आज राजनैतिक आकलन का ‘‘भ्रूण’’ डाला गया है। 9 महीने बाद जब परिणाम आएंगे, तब राजनीतिक आकलन या चुनावी जनमत सर्वेक्षण (ओपिनियन पोल) किसी को ‘कष्ट’ देंगे तो किसी के चेहरे पर ‘मुस्कुराहट’ ला देंगे, यह देखने की बात होगी। गर्भधारण के बाद लिंग टेस्ट करना कानूनन अपराध है। जैसे ‘‘एक्जिट पोल’’ सर्वेक्षण पर कानूनी प्रतिबंध (मतदान समाप्त होने के समय तक) जरूर लगाया गया है, तथापि ओपिनियन पोल पर नहीं।
सिद्धांतः राजनीति का सामान्य सा सिद्धांत यह है कि जब कोई सरकार जनादेश पाकर चुनी जाती है, वह पांच वर्ष अपने चुनावी घोषणा पत्र के वादे की पूर्ति हेतु जनहित में कार्य कर 5 साल बाद पुनः जनादेश मांगने के लिए जनता के पास फिर जाती है। क्या इस ‘‘कसौटी’’ पर भाजपा फिर ‘‘खरी’’ उतरेगी या अपने किये गये वादों को पूरा न करने के कारण जनता में फैले असंतोष से पिछले विधानसभा चुनाव के समान कांग्रेस भाजपा का ‘‘टाट उलट कर’’ सत्ता का ‘‘मुकुट’’ पहन पाएगी? इसका कुछ तथ्यात्मक अनुमान लगाना यद्यपि ‘‘कुंए में बांस डाल कर तलाशने’’ जैसा है, तथापि अनुमान लगाने के पूर्व चुनाव संबंधी कुछ सामान्य बातों की चर्चा कर लेना आवश्यक है।
जहां तक चुनावी घोषणा पत्र/वचन पत्र का प्रश्न है, कोई भी पार्टी चुनावी वादों के घोषणा पत्र को 5 साल की अवधि में न तो पूरा कर पाती है और न ही समस्त वादे पांच साल की अवधि में करने के लिए होते हैं। सामान्य रूप से आम जनता भी इन घोषणा पत्रों को ‘‘कागजी घोड़े’’ मानते हुए उन पर ध्यान न देकर मात्र एक ‘परिपाटी’ मान कर उनके पूरा होने या न होने के आधार पर अपने मतों का निर्णय नहीं करती है। इसलिए चुनावी घोषणा पत्र के लागू होने का मुद्दा इस चुनावी परिणाम में बहुत कारक होगा, ऐसा लगता नहीं है। यह चुनाव परिणाम की दिशा को तय करेगा, ऐसा भी नहीं लगता है, विपरीत इसके जैसा कि विश्व के कुछ लोकतांत्रिक देशों में होता है। यद्यपि पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत का बडा कारक जनता के असंतोष को ही बतलाया गया था।
विधानसभा चुनाव में एक प्रमुख मुद्दा एंटी इनकम्बेंसी (सत्ता विरोधी कारक) का होता है। इस फैक्टर का मतलब कदापि यह नहीं होता है कि सत्ताधारी दल की सत्ता के खिलाफ ही अंसतोष हो। बल्कि तथ्य एक यह भी होता है कि जनता ने जिन प्रतिनिधियों को चुना है, चाहे वे सत्ता या विपक्ष के हो, जनता की नजर में वे आरूढ़ (सत्ता-रूढ़ विधायिका के) है। इसीलिए चुने हुए विधायकों के खिलाफ स्थानीय स्तर पर भी एक ऐसी ही एन्टी इनकम्बेंसी फैक्टर मौजूद होती है। क्योंकि वोटर किसी ‘‘एक जहाज का पंछी’’ नहीं होता है। यह बात जरूर है कि यह कारक सत्ता पक्ष के खिलाफ ज्यादा होता है, क्योंकि उनके पास जनता के हितों के लिए कार्य करने के लिए सत्ता (पावर) होता है। इस दृष्टि से देखे तो मध्यपद्रेश में सत्ताधारी पार्टी भाजपा के कार्यकर्ताओं में असंतोष सीमा से ज्यादा खतरनाक लेवल (स्तर) तक पहुंच गया है। यह सबसे बड़ा चिंता का कारण संघ सहित भाजपा के शीर्ष नेतृत्त्व के लिये बन गया है। क्योंकि असंतुष्ट जनता को बूथ में लाने का कार्य संतुष्ट कार्यकर्ता कर सकता है, परन्तु संतुष्ट जनता को बूथ में लाने का कार्य असंतुष्ट कार्यकर्ता नहीं कर सकता है। क्योंकि ‘‘कड़े गोश्त के लिये पैने दांतों की जरूरत होती है’’।
एक अनुमान के अनुसार प्रदेश की दोनों प्रमुख राजनीतिक पार्टियां भाजपा व कांग्रेस का प्रतिबद्ध (कमिटेड) वोटर लगभग कुल 40 प्रतिशत के आसपास होता है। आप हम सब जानते है कि इस देश में कम से कम 50 प्रतिशत मतदाता (कमिटेड अथवा फ्लोटिंग (अस्थाई) दोनों) राजनैतिक पार्टी के कार्यकर्ताओं के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रयासों से ही बूथ पर पहुंचते हैं। इस कारण से कहीं न कहीं भाजपा के गले में खतरे की घंटी बज रही है। वैसे एन्टी इनकंबेंसी फैक्टर को (ओवरपावर्ड) ‘‘कसाई के खूंटे से बांधने’’ और ‘नेस्तनाबूद’ करने की क्षमता भाजपा में आ गई है। साक्ष्य स्वरूप गुजरात, उत्तराखंड, असम, गोवा व कर्नाटक प्रदेशों के चुनाव परिणाम हैं। परन्तु भाजपा की विकास यात्रा कहीं इतिहास की पुनरावृत्ति न कर दे, जब अटल जी के जमाने में अरुण जेटली ने शाइनिंग इंडिया का नारा दिया था और क्या परिणाम आये, आपके सामने है। प्रदेश में चल रही विकास यात्रा में उत्पन्न अभी तक का छुपा हुआ जन असंतोष विरोध के रूप में कमोवेश हर जगह प्रदर्शित हो रहा है, भले ही छुटपुट हो। इससे यह आशंका बलवती हो रही है कि कहीं यह कदम उल्टा न पड़ जाए? विपरीत इसके इन संकेतों को समझकर अगले 9 महीने में इसे बेअसर भी किया जा सकता है?
अब यदि कांग्रेस की चुनावी संभावनाओं की दृष्टि से बात करे से तो प्रदेश में यह पहली बार हो रहा है कि चुनाव होने के पूर्व ही नेतृत्व पर शंका व विवाद की स्थिति नहीं है। ‘‘एकै साधे सब सधे’’ जैसी स्थिति है। अर्थात कांग्रेस की जीत की स्थिति में कमलनाथ ही मुख्यमंत्री बनेंगे, इसमें कोई शक ओ शुब्हा नहीं है। यह स्थिति कांग्रेस को ताकत व मजबूती से लड़ने के लिए प्रेरक तत्व होकर ताकत बन सकती है। चंूंकि उम्र के पड़ाव की दृष्टि से कमलनाथ का यह आखिरी चुनाव लगता है, अतः वे अब अपने बेटे नकुलनाथ को सत्ता की गद्दी पर बैठने के लिए मजबूत आधार प्रदान करना चाहेगें। परन्तु जिस प्रकार सिक्के के दो पहलू होते है, उसी तरह कांग्रेस की गुटबाजी का एक पहलू तो ‘‘बहुतेरे जोगी मठ उजाड़’’ की उक्ति को चरितार्थ करता है, तो दूसरा पहलू गुटबाजी उसकी ’ताकत भी है। प्रत्येक गुट अपनी शक्ति को दिखाने के लिए पूर्ण ताकत व क्षमता से चुनाव में कूदता है, जिसका फायदा अंततः पार्टी को मिलता है।
मध्यप्रदेश क्षत्रप में बंटा हुआ प्रदेश है। एक क्षत्रप (महाकौशल) नेता के नेतृत्व पर मोहर लगाई है। परन्तु जो वर्षों मुख्यमंत्री का सपना व आस बैठाये हुए अन्य क्षत्रप नेता (राहुल सिंह, अरुण यादव आदि आदि) है, क्या वे कांग्रेस को जिताने में अपनी ताकत का उतना ही उपयोग करेंगे, जितना कि वे स्वयं के लिए मुख्यमंत्री पद की दौड़ होने की स्थिति में करते? अन्यथा नेतृत्व पर अंतिम मोहर लगाने के मुद्दे से उत्पन्न आक्रोश, असंतोष के कारण कमलनाथ की सत्ता के घोड़े के रथ को मंजिल पहुंचाने में रुकावटें आएगी? कमलनाथ इस सत्ता के रास्ते में आ रही रुकावटों को जितनी समरसता में बदलने का सफल प्रयास करेंगे, उतने ही सफलता से कांग्रेस आयेगी। इसलिए अभी फिलहाल दोनों पक्ष राजनीतिक मैदान में अपनी-अपनी चाल चलने के लिए उतर गये है।
भाजपा तो हमेशा की तरह समय पूर्व ही चुनाव की तैयारी में जुट जाती है, बल्कि वह पांचों साल कहीं न कहीं चुनावी मोड में ही रहती है। परन्तु कांग्रेस की स्थिति ‘‘गयी भैंस पानी में’’ जैसी होती है। कहीं-कहीं तो ‘‘बी फार्म’’ भी हेलिकाॅटर से पंहुचाने पड़ जाते हैं। लेकिन इस बार कमलनाथ ने भी ‘‘तुम डाल डाल हम पात पात’’ की तर्ज पर भाजपा की तरह पन्ना प्रमुख के साथ तैयारी समय-पूर्व वैसी ही प्रारंभ कर दी है। ‘‘संघे शक्तिः कलौयुगे’’ का सूत्र वाक्य पकड़ कर ‘‘संघ स्टाइल’’ में चुनाव लड़ने की कमलनाथ की तैयारी चालू है। इसलिए आज की स्थिति में यह कहना बहुत जल्दबाजी होगा कि चुनाव में कौन पार्टी जीतेगी? पिछले विधानसभा चुनाव में जब भाजपा की हार हुई थी व कांग्रेस की जीत हुई, तब ‘‘कांग्रेस के हाथ बटेर’’ लगने का अनुमान किसी ने नहीं किया गया था। इसलिए इस बार कांग्रेस ज्यादा सशक्त तरीके से चुनाव लड़ने का प्रयास कर रही है क्योंकि उसे अब सत्ता प्राप्ति की उम्मीद ज्यादा लग रही है, जो शायद पिछली बार इतनी भी नहीं थी। परन्तु पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में कांग्रेस के 28 विधायक टूटकर भाजपा में शामिल हुए जिसमें मात्र 9 विधायक कांग्रेस के पुनः चुनकर आये। इससे हुई नुकसान की भरपाई कमलनाथ कैसे कर पाएंगे, यह भी देखने की बात होगी। इसलिए अभी चुनावी मैदान खुला है। क्योंकि चुनावी परिणाम को बिगाड़ने में दूसरे क्षेत्रीय दलों और आप पार्टी का उद्भव होना बाकी है। तब तक सही परिणाम के अनुमान लिए इंतजार करना ही होगा। अंक देने की दृष्टि से फिलहाल दोनों ही पार्टियों को 5-5 अंक देने होंगे, क्योंकि ऊंट किस करवट बैठेगा, यह सुनिश्चित करना फिलहाल आज मुश्किल है।
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