रविवार, 20 मार्च 2016

‘‘श्री ’’ ‘‘श्री’’ ‘‘रविशंकर’’ का आध्यात्मिक सांस्कृतिक कार्यक्रम! एक समीक्षा!

राजीव खण्डेलवाल:
    ‘‘श्री’’ ‘‘श्री’’ ‘‘रविशंकर’’ गुरू महाराज जी केवल भारत के ही नहीं वरण् विश्व के एक बहुत बड़े ख्याति प्राप्त आध्यात्मिक गुरू हैं। सामान्यतः ‘‘श्री’’ एक सम्मान सूचक संबोधन होता है जो एक नागरिक को सम्मान प्रदान हेतु बोला जाता हैं। जब एक ‘श्री’ के साथ दूसरा ‘श्री’ भी जोड़ा जाय  तो वह सम्मान महासम्मान व श्रद्धा बन जाता हैं। ‘श्री श्री’’ की इस महत्ता व गुणवत्ता से कतई इंकार नहीं किया जा सकता है। आध्यात्मिक गुरू, कानून के आधार एवं शक्ति बल के आधार पर नहीं बल्कि स्वयं के नैतिक बल एवं अपने शिष्यों के नैतिक बलों की धरोहर के आधार पर स्वतः की आध्यात्मिक वाणी कीे ताकत से विश्व में शांति, भाईचारा, सामाजिक समरस्ता, समग्रता के विकास व समानता की भावना को हित ग्राहियों (शिष्यों) के बीच फैलाकर व उसे सिंचित कर उनमें सब आवश्यक तत्वों को पल्लवित होने देने का फायदा देकर उनको मजबूत बनाने का का प्रयास करते हैैं।
      हाल ही में आर्ट आफ लिविंग संस्था के संस्थापक ‘‘श्री श्री जी’’ का वैश्विक आध्यात्मिक सांस्कृतिक सम्मेलन हुआ। संख्या, विराट स्वरूप व भव्यता, सांस्कृतिक सद्भाव और विभिन्न सांस्कृतिक पहचान की दृष्टि से यह एक उच्च कोटी का सफल आयोजन हुआ, इस तथ्य से कोई भी इंकार नहीं कर सकता हैं। आध्यात्मिक शक्ति के पुंज ‘‘श्री श्री’’ विचारों से भी विवादों से लगभग परे रहे हैं। लेकिन प्रश्न तब उत्पन्न होता हैं जब ऐसे श्रद्धेय आध्यात्मिक गुरू के नेतृत्व में होने वाला कार्यक्रम भी नियम/कानून के उल्लंघन के आरोप सिद्ध पाये जाकर जुर्माने से आरोपित हुए। स्थिति तब और भी विचित्र बन गई जब देश व अंतर्रार्ष्ट्रीय जनता को दिशा दिखाने वाले गुरू (पल भर के लिये स्वयं सत्यमेव के रास्ते से जरा हटकर) ऐसे आरोपित ‘‘जुर्माना भरने के बजाय  जेल जाना पसंद करंेगे’’ जैसे कथन कह जाते हैं।
    भारत में, भारतीय दंड़ संहिता से लेकर अनेक ऐसे अधिनियम लागू है जिनकी धारा उपधारा, क्लाज, नियम के उल्लंघन पर सजा का प्रावधान हैं, जो मुख्यतः तीन प्रकार की है। प्रथम फाईन (जुर्माना) दूसरी सेन्टेन्स (जेल) एवं तीसरी ‘‘जुर्माना व सजा दोनों’’। ‘‘श्री श्री’’ गुरू जी की संस्था द्वारा कार्यक्रम के प्रायोजन के संबंध में राष्ट्रीय हरित न्ययाधिकरण (एन.जी.टी.) ने अपने नोटिस के प्रत्युत्तर व बहस पर विचार करने के बाद आर्ट आफ लिविंग संस्था पर ढाई करोड़ का जुर्माना आरोपित किया।
  इस प्रकार उक्त संस्था द्वारा आयोजित कार्यक्रम विधान-नियम की नजर में गैर कानूनी तुल्य बन जाता हैैं। फाईन जमा कर देने भर से उसका वैधानिक गैर कानूनी स्वरूप बदल नहीं गया  है। यद्यपि गैर कानूनी होने के बावजूद वह कार्यक्रम तय समयानुसार हो सका तो केवल इसलिये चॅूकि ट्रिब्यूनल ने कार्यक्रम को रोकने के आदेश नहीं दिये थे। ऐसा भाषित होता हैं कि विश्व के सबसे बड़े आध्यात्मिक गुरू की संस्था द्वारा आयोजित कार्यक्रम पर जुर्माना आरोपित हो जाने से उसकी  वैधानिक नैतिकता पर धब्बा लग जानेे के कारण ही उसमें (देश की शासन व्यवस्था के सर्वोच्च महामहिम) राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने भाग नहीं लिया। शायद राष्ट्रपति ने उक्त कार्यक्रम में भाग न लेकर उस कार्यक्रम की नैतिकता पर अप्रत्यक्ष रूप से प्रश्न चिन्ह ही ल्रगा दिया? अपितु  राजनीति के चलते, राजनैतिक फायदे के मद्ेदनजर प्रधानमंत्री मोदी वैसा ही दृढ़ इच्छा शक्ति नहीं दिखा पाये। चूॅकि कार्यक्रम ‘‘स्थल’’ वहीं था यमुना नदी के तट जिस पर पर्यावरण केा होने वाली क्षति को देखते हुये ट्रिब्यूनल ने जुर्माना आरोपित किया था।
इस घटना ने भारतीय संस्कृति की इस अवधारणा को पुनः रेखांकित भी किया है कि कोई भी व्यक्ति पूर्ण नहीं होता है, चाहे वह विश्व के आध्यात्मिक गुरू ही क्यों न हो। सिर्फ और सिर्फ ईश्वर ही पूर्ण हैं। लेकिन ईश्वर के आस-पास पहंुचने का सबसे महत्वपूर्ण साधन भी  गुरू ही होता है। क्योकि वह लगभग पूर्ण होता हैं और इसीलिए तो वह सामान्य मानव से ज्यादा पूज्यनीय होता हैं। ‘‘श्री श्री’’ की इसी धारणा को इस कार्यक्रम से किंचित ठेस पंहुची हैं। इस प्रसंग का भविष्य में खयाल रखा जाना चाहिये। यद्यपि देश में गुरू, महात्मा, पीले वस्त्रधारी संत तो अनेकानेक, अनगिनत है, लेकिन गैर विवादितो की संख्या इतने बड़े कुंभ में गिनती करने लायक मात्र ही हैं। क्या आने वाला ‘‘कुंभ’’ जनता को ऐसी कंुभकरणीय नींद से जगाकर नैतिकता की धारा प्रवाहित कर सकेगा? इसी प्रश्न के साथ? उम्मीद करने के अलावा कोई चारा भी तो नहीं है!

(लेखक वरिष्ठ कर सलाहकार एवं पूर्व नगर सुधार न्यास अध्यक्ष हैं)

रविवार, 6 मार्च 2016

आखिर देश के ‘‘मीड़िया-हाऊसेस’’ को क्या हो गया है?

राजीव खण्डेलवाल:
     गुरूवार रात्री ‘‘जेएनयू’’ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार की जेल से रिहाई के बाद जेएनयू में हुये कन्हैया कुमार के भाषण का जिस तरह अति उत्साह से महिमा-मंडन कर सीधे लाइव प्रसारण किया गया और दूसरे दिन कई चेनलों ने उसके लम्बे इंटरव्यू भी प्रसारित किये, जो सब एक सामान्य नागरिक के लिये न केवल अकल्पनीय व असहनीय था बल्कि वह उनकी भावनाओं को.भडकाने वाला भी रहा। यह केवल मीड़िया का दिवालियापन ही दर्शाता है।
            भारतीय दंड़ संहिता की धारा 124 ए के अंतर्गत देशद्रोह के आरोप के अभियुक्त  को उच्च न्यायालय ने देशद्रोह के आरोप से बरी कर के नहीं छोड़ा है, बल्कि उसे सशर्त अंतरिम जमानत मात्र दी हैं। यद्यपि यह भी आश्चर्य की बात है कि न्यायालय द्वारा नियमित जमानत के बजाय (शायद) बिना मंागे 6 महीने की अंतरिम जमानत भर दी गई। जमानत का प्रतिपादित सिंद्धान्त है जो उच्चतम् न्यायालय ने कई निर्णयों के द्वारा स्थापित  किया हैं कि जमानत पाना एक अधिकार है व उसको अस्वीकार करना अपवाद! इस सिंद्धान्त के रहते हुये भी कन्हैया कुमार को नियमित जमानत नहीं मिली। अंतरिम जमानत पर छूटने का कदापि यह मतलब नहीं लगाया जाना चाहिए कि आरोपी को आरोप मुक्त कर दिया गया है, या उसके खिलाफ दर्ज प्रकरण कमजोर पड़ गया है। स्वयं पूूर्व पुलिस कमिश्नर का प्रथम बयान कि पुलिस कन्हैया कुमार की जमानत का विरोध नहीं करेगी। दूसरा पुनः पुलिस की उच्च न्यायालय में प्रस्तुत यह स्टेटस रिपोर्ट कि उसके विरूद्ध देश विरोधी नारे लगाने के सीधे साक्ष्य नहीं हैं। तत्पश्चात् गृहमंत्री का यह खेदजनक बयान कि कन्हैया कुमार के विरूद्ध देशद्रोह का मामला नहीं बनता हैं। इन सब बयानों के बावजूद यदि माननीय उच्च न्यायालय ने कन्हैया कुमार को सामान्य जमानत (जो एक नियमित अभियोगी सामान्य परिस्थितियों में पाने का अधिकारी होता हैं) भी नहीं दी गई है तो मतलब साफ हैं कि मामला गंभीर है।
        ‘जमानत’ के संबंध में उपरोक्त विवरण लिखने का तात्पर्य मात्र इतना है कि कन्हैया कुमार किसी राष्ट्रीय आंदोलन/राष्ट्रीय मुद्दे, आम नागरिक, युवा, पिछड़ा, कुचला, दलित इत्यादि वर्गो के मूल अधिकारों के लिए (जिनकी गर्जना वह अपने भाषण में बार-बार कर रहा था) की प्राप्ति के लिये जेल जाकर जमानत पर छुटकर नहीं आया था और न ही वह सीमा पार जाकर पाकिस्तान में किसी आंतकवादी को मारकर भारत सरकार के प्रयत्न से पाकिस्तानी जेल से छूट कर विजयी होकर लौटा था। अपितु कन्हैया, अफ़ज़ल गुरू (जिसकी फांसी को गृहमंत्री शहादत कहने की भूल कर बैठे) की बरसी पर आयोजित कार्यक्रम में बोल रहा था। जेएनयू में मकबूल बट् व अफजल गुरू जैसे व्यक्तियों के समर्थन में अफजल गुरू की बरसी को मनाना क्या  राष्ट्रवादी कार्य या भावना है? इस मुख्य विषय वस्तु (जिस कारण से जेएनयू में इतना बड़ा बवाल मचा) पर अधिकांश राजनैतिक दल, बुद्धिजीवी वर्ग, व अपने को देश का कर्णधार बताने वाले समूह, स्पष्ट विचार क्यों नहीं प्रकृट करते हैं? लगभग सभी इलेक्ट्रानिक मीड़िया ने कन्हैया जैसे राष्ट्रभक्त के भाषण को सीधे प्रसारित कर उसे जो सम्मान दिया व महिमा-मंडित किया, वह कन्हैया जैसे व्यक्तित्व की तुलना में मेरे जैसे देशद्रोही व्यक्ति की समझ से परे है? 
         क्या मीड़िया का स्वयं, समाज व देश के प्रति कोई उत्तरदायित्व नहीं हैं? 24 घंटे चेनल चलाने का यह मतलब तो कदापि नहीं है कि स्क्रीन पर कुछ भी परोसकर दर्शक को देखने के लिये मजबूर किया जाए। मीड़िया से मेरा एक ही प्रश्न है कि वह आत्मावलोकन हेतु अपने अंदर झंाकने के पहिले कम से कम यह जान तो ले कि कन्हैया है कौन? उसने क्या कहा? कहां कहा? और उसके भाषण के जोर शोर से प्रसारण का जनता में क्या संदेश जायेगा?  
   कन्हैया केवल और केवल जे.एन.विश्वविद्यालय के छात्रसंघ का अध्यक्ष मात्र हैं। उसने पीएचडी करने के लिये विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया है, नेतागिरी करने के लिये नहीं। जेएनयू एक शिक्षण केन्द्र है न कि किसी भी प्रकार की विशिष्ट धारा या किसी विशेष राजनैतिक विचार धारा को पोषण करने के लिये भाषण देने का एक प्लेटफार्म ?(क्योेकि कन्हैया कहता है कि मेरे मोदी से वैचारिक मतभेद हैं) क्या अपने भाषण में वह पीएचडी की किसी विषय वस्तु का जिक्र कर रहा था? क्या वह छात्रों (जिनका वह प्रतिनिधित्व करता है) की समस्याओं व उसको सुलझाने के लिये कोई सुझाव या हल बता रहा था? मीड़िया को इस बात के लिये किंचित भी शर्म नहीं आ रही हैं कि जेएनयू कैंपस में देश के प्रधानमंत्री पर तंज कसा जाकर और उनका मजाक उडाया जाकर क्या देश का सिर नीचा नहीं किया जा रहा? इस पर मीड़िया ने एक लाइन भी खेद की नहीं चलाई, क्योंकि प्रसारण तो वे रोक नहीं सकते थे। क्या वह एक राजनीतिज्ञ या राजनैतिक पार्टी थी या मात्र छात्र नेता भर था? जिसका भाषण व प्रेस इंटरव्यू सम्पूर्णतः, राजनैतिक विषवमन था।
      विज्ञान का उदाहरण देते हुये अपने भाषण में कन्हैया ने विज्ञान के इस सिद्धान्त को बताया कि किसी भी चीज को ेजितना दबाएॅंगें वह उतना ही विपरीत दिशा में उछलेगी। कन्हैया यह भूल गया कि यही सिद्धान्त यह भी दर्शाता है कि यदि चीज को दबाया जाए तो वह तब तक दबी रहेगी जब तक उस पर हेवी वेट रखा रहेगा। अर्थात्  कानून का डंड़ा जब तक अपराध को दबाये रखेगा, तब तक वह अपराध दबा रहेगा। कन्हैया जी यह भी समझ लीजिये और ध्यान में रखिए कि जिस प्रकार विज्ञान से सब वैज्ञानिक नहीं बनते हैं (जैसे कन्हैया ने कहां) ठीक उसी प्रकार जेएनयू में पढ़ने मात्र से सभी शिक्षित नहीं हो जाते है! 
         सात आठ हजार छात्रों का प्रतिनिधित्व करने वाले गैर राजनीतिज्ञ, विद्यार्थी को 130 करोड़ जनता का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रधानमंत्री के साथ राजनीतिक रूप से बराबरी से खडे़ करने के अपराध से क्या मीड़िया अपने आप को मुक्त कर सकता हैं? कई मीड़िया चेनल कन्हैया के भाषण की दस विशेष बाते बतला रहे थे जिस प्रकार मोदी की लोकसभा में राष्ट्रपति भाषण पर प्रस्तुत धन्यवाद प्रस्ताव पर दिये गये भाषण की दस बाते बताई जा रही थी।  
          आखिर केजरीवाल जो सिंद्धान्तों की राजनीति से पैदा हुये हैं के द्वारा तुंरत ट्वीट कर कन्हैया के भाषण की प्रशंसा करना, क्या राजनैतिक अवसर वादिता का बेर्शम उदाहरण नहीं हैे। नीतिश कुमार से लेकर अनेक अन्याय राजनीतिक पार्टी के नेतागण जिस तरह कन्हैया की पीठ थपथपाकर राष्ट्रवाद की भावना से न केवल मुह मोड़ रहे हैं, बल्कि उस पर प्रतिक्रिया देकर अपने को बौना भी सिद्ध कर रहे हैं। कन्हैया का भाषण अर्थ में जेहादियों को आंतकवादियों द्वारा दिए गए भाषण से कम नहीं था। शब्द सामान्य होते है। अर्थ गहरे व भड़काऊ होते हैं। मीड़िया को इस बात का भी होश नहीं रहा कि कन्हैया ने अपने भाषण में प्राईम टाईम का ही मजाक बनाकर मीड़िया को भी कोसा और उसी को मीड़िया ने बिना संेसर किए वैसे का वैसा ही प्रसारित भी कर दिया। अपने पूरे भाषण में कन्हैया ने कैंपस में उसकी उपस्थिति में लगाये देश विरोधी नारांें (जिनको उसने शुरू में स्वयं द्वारा नहीं लगाए जाना बतलाया) की न तो कड़ी आलोचना की और न ही उसने देशद्रोही नारे लगाने वालो की पहचान बतलाई। समस्त प्रकार की आजादी की बात करने वाले कन्हैया यह भूल जाता हैं कि वही आजादी  (राजनीति का जोड़-घटाना किए बिना) यदि सरकार भी अपना लेती तो येे सब बकवास हमे मीड़िया के माध्यम से सुनने को नहीं मिलते, जो हमें मजबूरन सुनना पडे़ हैं।
         कन्हैया ने मोदी व भाजपा के वादे व नारों को जुमले कहकर मजाक उड़ाया। कन्हैया जी कृपया अपने भाषण की बानगी भी देख लीजिये, जहॉं आपके कथन में न केवल और केवल सिर्फ जुमले ही जुमले हैं बल्कि वे सब अन्तर्विरोधी भी हैं, जो कम से कम मोदी के व्याख्यान में खोजने से भी नहीं मिलते है।
        मैं छात्र नेता हूूं-राजनेता नहीं हंू ,मैं विश्वविद्यालय में पढ़ने आया हॅंूू-राजनीति करने नहीं।ं लेकिन मोदी पर जिस तरह से उन्होने तंज कसे वे न तो किसी राजनीति से परे हैं और न ही किसी मंजे हुये राजनेता से कम हैं। वह कहता हैं, वह संघ विरोधी नहीं, लेकिन वह कई तरह की आजादी के साथ संघ वाद से आजादी का नारा भी लगाता हैं। वह राजद्रोह व देशदोह के बीच के बारीक अंतर को तो समझता हैं, लेकिन अफजल गुरू के बाबत् प्रश्न पूछने पर वह चुप हो जाता हैं, प्रेस कांफ्रेस ही समाप्त कर देता हैं, लेकिन ‘आजादी’ के नारे लगाते लगाते थकता नहीं है। यह कथन है कि वह सीपीआई का सदस्य नहीं है, वरन् वह एआईएसएफ का सदस्य है, लेकिन एबीवीपी पर आरोप लगाते समय वह नागपुर-सघं तक पहंुच जाता हैै। सीताराम येचूरी का यह बयान कि कन्हैया पश्चिम बंगाल चुनाव में प्रचार करने जायेगें व वह एक विश्वविद्यालय छात्र युनियन का अध्यक्ष हैं। इस लिये वह राजनीतिज्ञ हैं इस बयान का खंडन कन्हैया ने अभी तक नहीं किया है। यह कथन ही कन्हैया के दोहरी  बातों का पर्दाफाश करने के लिये पर्याप्त हैं। उसमे राजनीतिक समझ भले ही न हो जैसा कि वह कथन करता हैं लेकिन उसमें राजनीतिक चातुर्यता कूट-कूट कर भरी हुई हैं। देश को खासकर इस मीडिया को यह नहीं भूलना चाहिए कि जिस प्रकार गुजरात का एक युवा  हार्दिक पटेल, पटेल आरक्षण के मुद्दे पर ऐतिहासिक आंदोलन कर देश के सार्वजनिक व राजनैतिक क्षितिज पर अचानक उभरा व मीड़िया ने उसको सिर आखों पर बैठा लिया, आज वह कहां गुमनाम हो गया हैैं। मीड़िया उसकी तरफ भूलकर भी नहीं देख रहा हैं। जबकि हार्दिक पटेल ने जेएनयू वाले कन्हैया के समान उसकी उपस्थिति में देश विरोधी नारे भी नहीं लगाने दिए थे। क्या कन्हैया का भी हार्दिक पटेल के समान ही तो हाल नहीं होने वाला हैं? मीड़िया की बाट से वक्त का तराजू ही तौलकर बतला पायेगा।.         
        लेकिन इस बात के लिये तो कन्हैया की अवश्य बड़ाई प्रशंसा और उसके इस भाषण व प्रेस इंटरव्यू की, कौशल कला, वाक- पटुता, व हाजिर जवाबी की दाद दी ही जानी चाहिये। कि जिस तरह का भाषण व प्रेस इंटरव्यू उसने दिया वह उसे देश के बिरले नेताओं की उंचाई तक अवश्य ले जाते हैं। काश! उसके व्यक्तित्व का यह गुण देश को कमजोर और खंडित कर नष्ट करने वाली शक्तियों के विरूद्ध काम आता और जिससे देश का अंततः भला हो सकता!  
(लेखक वरिष्ठ कर सलाहकार एवं पूर्व नगर सुधार न्यास अध्यक्ष हैं)

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