शनिवार, 5 मार्च 2022

‘‘शिव-राज’’ के ‘‘राज’’ का ‘‘राज’’ ‘‘ना-राज’’ न होना और न होने देना है!

 5 मार्च को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के जन्म दिवस पर विशेष लेख!

भारत का हृदय प्रदेश, ‘‘मध्यप्रदेश’’ की जनता के हृदय में बसकर ‘राज’ करने वाले शिवराज सिंह मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान हैं। अर्थात ‘‘शिव का राज’’ है। आज उनका जन्म दिवस है। इस सुखद अवसर पर शिवराज सिंह को हार्दिक बधाईयाँ एवं भविष्य की अनन्य मधुर हार्दिक शुभकामनाएं।

वर्तमान लोकतंत्र की गला काट राजनीति के चलते 15 वर्षो से मुख्यमंत्री के ‘‘कांटों भरे ताज‘‘ पर लगातार ‘‘अंगद के पांव की तरह‘‘ जमे रह कर (भाजपा मुख्यमंत्री के रूप में) शासन करना कोई अचंभे से कम नहीं है। इस सृष्टि में ‘शिव’ की अनंत शक्ति सबको ज्ञात है। उनका अनंतकाल से अनंतकाल तक इस सृष्टि पर राज चलेगा, इस पर न तो कोई प्रश्न है और न ही आश्चर्य है। परन्तु आज की गिरगिट से भी तेजी से रंग बदलती राजनीति में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजे 15 साल की राजनैतिक अवधि अस्थायित्व के दौर से गुजरती व टांग खींचने की राजनीतिक प्रवृत्ति के चलते, राजनैतिक दृष्टि से न खत्म होने वाले समय के समान ही मानी जायेगी। मध्यप्रदेश की स्थापना से लेकर आज तक के लोकतांत्रिक इतिहास में शिवराज सिंह सर्वाधिक समय लिये मुख्यमंत्री पद पर आरूढ़ है, ‘‘सत्तारूढ़’’ नहीं। वह इसलिये कि वे कबीर की उक्ति ‘‘सत्ता महाठगिनी हम जानी‘‘ का मर्म जानते हुए मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बावजूद वे मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे सत्ता से चिपके नहीं रहे, बल्कि कुर्सी के आकर्षण से विर्कषित होते हुए आम जनता के बीच जाकर संवाद स्थापित कर समय गुजारते रहे हैं। 

आया-राम गया-राम की राजनीति के प्रारंभ होने के बाद संयुक्त मोर्चा-दलों की सरकारें बनी व भारतीय राजनीति में एक अस्थायित्व के दौर की शुरूवात हुई। ऐसी स्थिति में 15 साल से अधिक समय तक लगातार मुख्यमंत्री पद पर बने रहना आसान नहीं है। वैसे भी राजनीति में ‘‘कागज की नावें नहीं चला करतीं‘‘। भारत के अभी तक के सर्वाधिक समय तक मुख्यमंत्री का रिकार्ड सिक्किम के पवन चामलिंग 1994 से 2019 लगातार पांच कार्यकाल 24.4 वर्ष तक रहे, जिन्होंने पश्चिम बंगाल के ज्योति बसु के 23 साल (1977 से 2000) के रिकार्ड को पार किया। 

इस सृष्टि का एक बहुत ही अल्प कण, मध्य प्रदेश की धरती पर शिव कई थपेड़े सहते हुये डंपर कांड, व्यापमं कांड, ई टेंडर घोटाला, खनिज माफिया को संरक्षण देने का आरोप आदि का सामना करते हुए, ‘‘अंगारों पर पैर रख कर‘‘ सफलतापूर्वक बेदाग निकलते हुये मुख्यमंत्री की कुर्सी पर अभी भी विराजमान है। वे प्रदेश के पहिले मुख्यमंत्री है, जिन्होंने चौथी बार मुख्यमंत्री बन कर सबसे ज्यादा समय  रहकर वर्तमान में भी है। आखिर ‘‘शिव’’ का व्यक्तित्व कहीं न कहीं ‘‘शिव तांडव’’ मचाते हुये दूसरे व्यक्तियों से भिन्न होकर उक्त सफलता को सिद्ध करता है। ‘‘मत चूके चौहान’’ भारतीय इतिहास की गीत की एक बड़ी प्रसिद्ध उक्ति है, जिसे शिवराज सिंह चौहान ने चरितार्थ किया है। आखिर शिवराज के इस राज के लगातार चलने का राज क्या है? आइये, जन्म दिवस के इस अवसर पर इसकी जड़ तक पहुंचने का प्रयास करते हैं।

निसंदेह शिवराज ग्राम जैत के एक प्रगतिशील किसान स्व. श्री प्रेम सिंह के सुपुत्र होते हुए मात्र 12 वर्ष की उम्र में ‘‘स्वयं-सेवक’’ होकर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़कर, एबीवीपी (अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद) के एक साधारण कार्यकर्ता से छात्र राजनीति प्रारंभ की। पाव-पाव चलकर ‘‘पाव-पाव वाले भैया’’ का तमगा प्राप्त कर विभिन्न उच्च पदों पर आसीन रहकर इस प्रदेश की सबसे उच्चतम पद मुख्यमंत्री पर विराजमान हैं। निस्संदेह ‘‘लाल गुदड़ी में नहीं छुपते‘‘। मृदुभाषी, गंभीर, गोल्ड मेडल के साथ दर्शनशास्त्र में स्नाकोत्तर की उपाधि की उच्च शिक्षा, संगीत-कला व फिल्म प्रेमी, वर्तमान राजनीति की गहराई की तह तक परख व पकड़ रखने वाले, भविष्य को पढ़ने व सूंघने की क्षमता मौसम वैज्ञानिक समान रखने वाले, बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी, लच्छेदार शैली, स्वतंत्र भारत के दूसरे स्वाधीनता आंदोलन कहे जाने वाले आपातकाल के स्वतंत्रता संगाम सेनानी मीसाबंदी, शिवराज सिंह चौहान है। आम जनता के बीच उनका व्यक्तित्व पडि़त दीनदयाल उपाध्याय का मूल मंत्र ‘‘अंतोदय’’ के अनुरूप पालनार्थ नाथ जमीनी स्तर पर नीचे तक अंतिम छोर में खड़े व्यक्ति तक उतर चुका है। वे कुछ उन बिरले राजनितिज्ञों में से एक हैं जिनकी ‘‘आंखों में अपनी प्रशंसा सुनकर सरसों नहीं फूलने लगती‘‘, बल्कि उन्होनें तो ‘‘निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय’’ को अपने सार्वजतिक जीवन का अपरिहार्य अंग बना लिया हैं। 

शिवराज सिंह बच्चों के मामा के रूप में न केवल प्रसिद्ध है, स्थापित हो चुके है, बल्कि मामा कहलाने में स्वयं को गौरान्वित भी महसूस करते हैं। इतिहास में शकुनी-दुर्योधन के कथानक से सभी अवगत हैं, जो एक बुराई के प्रतीक के रूप में माना जाता है। यद्यपि कंस-श्रीकृष्ण मामा-भांजे का कथानक भी सर्वविदित है। तथापि गधे व सियार की मामा-भांजे की कहानी भी प्रसिध्द हैं। लेकिन यह शिवराज के व्यक्तित्व की ही क्षमता है कि वह नाम के अर्थ, दृष्टि और भावना की इस नकारात्मक व्याख्या को अपनी कार्य शैली से विपरीत दिशा में अर्थात उसे सकारात्मक दिशा व भाव में बदल दिया हैं। विभिन्न जनोपयोगी योजनाओं के माध्यम से आम जनों के बीच उनकी समृद्धि, वैभव, विकास, मान-सम्मान आदि के लिए जो कार्य किये है, उसका ही यह सुखद परिणाम है कि वे 21वीं सदी के हजारों भांजे-भांजियों के लिये पौराविणक ‘‘बदनाम कंस मामा’’ की जगह ‘‘लोकप्रिय कृष्ण मामा’’ के नाम से पहचाने जाने लगे हैं। मध्यप्रदेश के विकास की यही गाथा परिभाषा है। 

देश में चाचा नेहरू प्रसिद्ध हुये है और आज कल उत्तर प्रदेश में ‘‘बाबा’’ (योगी आदित्यनाथ) बबुआ, बुआ प्रसिद्ध हो रहे है। लेकिन मामा तो मामा ही है। और मामा के रूप में उन्होंने इस प्रदेश की अनगिनत भांजियों का कन्यादान कर इतना पुण्य संचित कर लिया है कि वर्ष 2014 के प्रारंभिक दौर के मोदी के विरोधी माने जाने वाले (अथवा ठहराये जाने वाले?) शिवराज सिंह, आज मोदी की ‘‘अंगूठी के नगीना‘‘ हैं और मोदी भी उनके ‘‘मुरीद‘‘ हो चुके हैं। यह बात इस तथ्य से समझी जा सकती है कि प्रधानमंत्री ने उनके ससूर के स्वर्गवास होने पर व्यक्तिगत रूप से शोक संदेश भेजा था। शिवराज सिंह ही वे व्यक्ति है, जिन्होंने मोदी के व्यक्तित्व के बाबत एक सटीक टिप्पणी की थी, ‘‘नरेन्द्र मोदी मैंन ऑफ आईडियाज’’ है।

शिवराज सिंह को यह पढ़ाव ऐसे ही नहीं मिला। कड़ी धूप, कड़क ठंड और तेज गरजती बरसात मे कड़ी लगन, ‘‘कभी घी घना, कभी मुट्ठी भर चना‘‘, ऐसी तमाम परिस्थितियों में मेहनत व जज्बा लगातार दिखाते हुये पंहुचे हैं। एक खासियत उनके व्यक्तित्व की यह रही है कि वे "दीन हीन" "भाव भंगिमाय" रखते हुए ‘बदले’ की भावना नहीं रखते, तथापि वे बदले में (कुछ प्रतिफल) देने में (फल देने में नहीं) संकोच भी करते हैं। उनके व्यक्तित्व की सबसे बड़ी ख़ासियत आज की राजनीति में ठीक उसी प्रकार है, जहां आप वर्तमान मीडिया चैनलों में आज तक मीडिया की उस हेडलांइन को देख लीजिये, जहां वह यह दावा करता है ‘‘सबसे तेज, सबसे पहले, 20 साल बेमीसाल’’। शिवराज सिंह ने इसी शीषर्क को रूबरू अपने राजनैतिक कार्यों व मुख्यमंत्री के रूप में शासकीय दायित्वों का पालन निष्पादित कर परिणीत (फलीभूत) किया है। उन्होंने इस देश की राजनीति में ऐसे अनेक आयाम व रिकार्डस् बनाये है, यदि गीनिज बुक ऑफ रिकार्ड में राजनैतिक क्षेत्र को शामिल किया जाता तो, शिवराज सिंह के नाम भी कई रिकार्ड दर्ज हो जाते। शिवराज सिंह ने विभिन्न क्षेत्रों में  सबसे पहले, सबसे तेज, सबसे ज्यादा सफलताएँ जो अर्जित की है, उनके कुछ बानगी (उदाहरण) आगे उल्लेखित  है।

गौग्रास टैक्स (गौमाता के लिए) गौ अभ्यारण (एशिया का सबसे बड़ा)  तीर्थ दर्शन योजना (वरिष्ठ नागरिकों के लिए), मुख्यमंत्री ग्रामीण सड़क योजना, मुख्यमंत्री अन्न पूर्णा योजना, मुख्यमंत्री जन कल्याण संबल योजना, मातृत्व वंदना योजना, लाड़ली लक्ष्मी योजना, मुख्यमंत्री कन्यादान विवाह योजना, बेटी बचाओं अभियान, मेधावी छात्रवृत्ति योजना, मुख्यमंत्री युवा स्वरोजगार योजना, मुख्यमंत्री मेधावी छात्र योजना, मुख्यमंत्री युवा इंजीनियर्स कान्ट्रेक्टर योजना, मुख्यमंत्री मजदूर सुरक्षा योजना, असंगठित कामगार मजदूर योजना, संभल योजना (निर्धन एससी एवं एसटी वर्ग के लिये) मुख्यमंत्री न्याय दान योजना, मुख्यमंत्री बकाया बिल माफी योजना, निशुल्क चिकित्सा सहायता योजना, पंडित दीनदयाल अन्त्योदय रसोई योजना, अन्यपूर्णा योजना, भावांतर भुगतान योजना, लोकसेवा अधिकार गांरटी अधिनियम,2010, नये उद्यमी के लिये उद्योग का पंजीयन समस्त विभागों को केन्द्रीकृत करते हुये एक दिन में! आदि सहित लगभग 39 विभागों की 200 से अधिक अनेकानेक योजनाएं उन्होने जन हित में लागू की हैं। मतलब शिशु के पैदा होने से लेकर मृत्यु तक की चारों अवस्थाओं की समस्त व्यवस्थाओं व जरूरतों की पूर्ति के लिये आम नागरिक के लिये ऐसी अनेक योजनाएं शिवराज सिंह चौहान ने लागू की हैं।

शिवराज सिंह के व्यक्तित्व की एक बड़ी विशेषता यह भी है कि वे ‘‘लकीर के फकीर‘‘ नहीं हैं। वे किसी भी व्यक्ति की नकल कर अनुसरण नहीं करते हैं, बल्कि हटकर अपनी अलग विशिष्ट पहचान बनाकर लोगों को उन्हें अनुसरण करने पर मजबूर कर देते हैं। बावजूद इसके उन्हें ‘‘अपनी खिचड़ी अलग पकाने वाला‘‘ राजनेता नहीं कहा जा सकता है। यही उनकी राजनीतिज्ञ सफलता का प्रमुख कारण भी है। देश के वे शायद पहिले एकमात्र ऐसे मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण करने के एक महीने बाद मात्र पांच सहयोगी मंत्री बनाएं व उन्हे विभागों का प्रभार देने के पहिले भौगोलिक स्थिति के अनुसार संभागीय प्रभार दिये गये। पहली बार चौदह गैर-विधायकों को मंत्री बनाकर नया इतिहास रच दिया। 

केन्द्र की प्रधानमंत्री स्व निधि योजना (शहरी पथ विक्रेताओं के लिए) भी शिवराज सिंह के नेतृत्व में मध्य प्रदेश देश में सर्वप्रथम रहकर बाजी मार ली है। स्काँच ग्रुप ने गुजरात के साथ-साथ मध्य प्रदेश को सुशासन के लिये सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार से नवाजा है। कृषि क्षेत्र में सिंचाई के साधन में कई गुना वृद्धि होने के परिणाम स्वरूप ही प्रदेश को पिछले पाँच वर्षो से लगातार कृषि कर्मण पुरस्कार मिला है। राज्य में न केवल मांग-आपूर्ति के अनुरूप बिजली का उत्पादन हो रहा है, बल्कि अब वह दूसरे प्रदेश को अतिरिक्त बिजली बेच भी रहा है। देश की प्रथम गौ कैबिनेट मध्यप्रदेश में ही बनी। समरस गांव सम्मान योजना (अपराध कम करने के लिये तीन साल में एक भी रिपोर्ट थाने में न पहुंचने पर)," समस्त गांवों का जन्म दिवस योजना" साल में एक दिन तय कर गांव का जन्म दिवस मनाकर विकास की योजना बनाना देश में एक बिल्कुल नया प्रयोग है। अब वे पाव-पाव के साथ गांव-गांव वाले भैया भी कहलाने लगे हैं। 

स्वच्छता के मामले में इंदौर पिछले लगातार पांच सालों से देश में सर्वप्रथम रहकर प्रदेश को गौरवान्वित किया है। इंदौर देश का प्रथम ‘‘वाटर प्लस’’ सिटी (2021 में) भी बना। कोविड-19 संक्रमण काल में ओमिक्रॉन के बढ़ते फैलाव को देखते हुये देश में सर्वप्रथम मध्यप्रदेश में नाइट कफ्यू लगाया गया। अंर्तराष्ट्रीय योग दिवस पर एक दिन में सबसे ज्यादा कोविड वैक्सीन 16.91 लाख (1691967) लगाने का रिकार्ड भी मध्यप्रदेश ने ही बनाया, जो वर्ल्ड रिकार्ड के रूप में दर्ज हुआ। ऑक्सीजन की कमी होने के कारण ऑक्सीजन के उपयोग के ऑडिट की नई धारणा देकर स्थिति को नियंत्रित  किया। प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा 2022, स्वनिधि योजना, प्रधानमंत्री मातृत्व वंदना व सुकन्या योजना में मध्यप्रदेश प्रथम हैं। 'प्रथम दिवस' युवाओं (15 से18 वर्ष) को वैक्सीन लगाने के मामले में भी प्रदेश प्रथम स्थान पर रहा (लगभग 7.5 लाख)। ‘‘मेरी सुरक्षा मेरा मास्क’’ जन-जागरूकता अभियान भी चलाया गया। मध्यप्रदेश को विकास के माध्यम से देश का नम्बर वन राज्य बनाने का उनका संकल्प व रोड़मेप है। मध्यप्रदेश की विकास यात्रा के संबंध में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का यह कथन महत्वपूर्ण है कि मध्यप्रदेश गजब तो है ही, देश का गौरव भी है। कालान्तर में ‘‘मध्यप्रदेश’’ भारत की विकास गाथा के पीछे मुख्य प्रेरक शक्ति बन जाएगा’’। 

एक सफल राजनेता होने का मतलब कदापि यह नहीं है कि उक्त सफल व्यक्ति को कभी असफलता हाथ न लगी हो या गलत निणर्य न लिए गए हों। इस दुनिया में कोई व्यक्ति पूर्णतः सही अथवा गलत नहीं होता है। इतिहास साक्षी है कि ‘‘हर महान योद्धा कुछ न कुछ युद्ध हारता भी है‘‘। शिवराज सिंह चौहान पर भी यह उक्ति लागू होती है। (2018 के विधानसभा चुनाव का परिणाम) । राजनीति में उन्होंने बहुत से ऐसे आश्वासन पार्टी कार्यकर्ताओं को चुनाव के समय राजनैतिक विजय व सफलता प्राप्त करने के लिए दिये। परन्तु राजनीतिक मतलब निकल जाने के बाद वे अपने उन वादों को भूल गये और पूरा नहीं कर पाये। उसका प्रत्यक्ष भुगतमान उदाहरण एक मैं भी हूं। प्रभात झा का उदाहरण आपके जेहन में याद होगा, जब सुबह प्रभात झा प्रदेश भाजपा अध्यक्ष की कुर्सी संभालने की बजाए रातों-रात उनकी अध्यक्ष की कुर्सी खिसक गई। वैसे राजनीति में यदि आपको अंगद समान अपने पैर जमाये रखना है, तब नैतिकता व नैतिक मूल्यों की चर्चा करना बेमानी होगी। राजनैतिक विरोधियों के विरूद्ध अनैतिक हथियारों (साधनों) का उपयोग कर उसे नष्ट करने के प्रयास को अनैतिक इसलिए नहीं कहा जा सकता है क्योंकि वे विरोधी स्वयं कितने नैतिक है?बावजूद आज की  राजनीति में नैतिकता तो वैसे भी ‘‘गूलर का फूल‘‘ हो गयी है। गांधी जी का सिद्धांत आज के राजनीति में बेमानी हो गया है। साध्य ही नहीं, बल्कि साधन दोनों की पवित्रता की बात मात्र किताबी रह गयी है। 

शिवराज सरकार की उपरोक्त उपलब्धियों का कदापि यह मतलब  नहीं है कि, प्रदेश ने विकास में सम्पूर्णता प्राप्त कर ली है। न केवल अभी भी काफी कुछ किया जाना शेष है, बल्कि इस बात की समीक्षा की भी अत्यन्त आवश्यकता है कि उपरोक्त उल्लेखित 200 से अधिक योजनाओं के लिये कितना बजट प्रावधान किया गया है, जो जरूरत का कितना प्रतिशत है? साथ ही इन सरकारी योजनाओं का फायदा प्रदेश की कितनी प्रतिशत जनसंख्या (हितग्राहियों) तक पहुंचा है? तभी सार्थक विकास की बात हो सकेगी। अन्यथा उच्चतम विकास के दावे के बावजूद प्रदेश में बलात्कार के मामलों को लेकर उच्चतम न्यायालय तक को टिप्पणी करनी पड़ी। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार महिलाओं के विरूद्ध जघन्य अपराधों के मामले में मध्यप्रदेश देश में अव्वल राज्य है। तथापि वर्ष 2020 में कमी आयी है । 2016 की रिपोर्ट के अनुसार प्रत्येक 2 घंटों में एक महिला का बलात्कार हो रहा है। न केवल आदिवासियों के विरूद्ध उत्पीड़न, अत्याचार की अधिकतम दर (2020 में) मध्यप्रदेश की ही है, बल्कि बीते तीन सालों से प्रदेश पहले पायदान पर है। अपराध की दर 298 प्रति लाख जो राष्ट्रीय औसत 241.2 से अधिक है। बाल अपराध में भी मध्यप्रदेश नम्बर वन है। शिशु मृत्यु दर लगातार 16 वर्षो से उच्चतम है। महिला साक्षरता में भी मध्यप्रदेश निचले पायदान (28वें) पर है। इन सभी क्षेत्रों में शिवराज सिंह को अधिक कार्य कर उक्त कमियों को दूर करने की चुनौती है, जिसे उनकी विकसित स्वभावगत प्रकृति हमेशा सफलतापूर्वक स्वीकार करती आयी हैं। तभी तो  वे आज इस पद पर लंबे समय से विराजमान हैं। नौकरशाही पर निर्भर रहना या यह कहे कि उन पर नियंत्रण न कर पाना, अभी तक उनकी एक बड़ी कमजोरी रही है। यद्यपि इस नई पारी में इस कमजोरी को दूर करने का निश्चित सफल प्रयास किया है। तथापि आज सिर्फ शिवराज सिंह के विकास कार्यो की चर्चा। शेष बातें, फिर कभी!

वैसे जंयती के अवसर पर कमियों को उज़ागर करना शायद वर्तमान युग के सभ्य समाज में उचित नहीं माना जाता है। फिर भी शेष लम्बी जिंदगी में शिवराज जी यदि अपने गुणों को और निखारते हैं, तो इससे प्रदेश की जनता के साथ स्वयं उनका भी फायदा ही फायदा होगा। इसलिये मैंने उक्त कुछ कमियों की ओर इंगित करने की धृष्टता अवश्य की है। तथापि क्षमा चाहते हुये, इस पुनीत अवसर पर ईश्वर उन्हे दीर्घायु करें। साथ ही उनके स्वस्थ जीवन होने की कामना करता हूं। यह उम्मीद भी करता हूं कि इस देश का दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश से जाने वाली परम्परा को तोड़कर वह रास्ता मध्यप्रदेश सेें शिवराज सिंह के नेतृत्व से होकर जायेगा, इन्ही शुभकामनाओं के साथ!

शुक्रवार, 4 मार्च 2022

‘चुनावी राजनीति’’ के लिए ‘‘नीति’’ छोड़कर कुछ भी कहना चलेगा?

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उत्तर प्रदेश के हरदोई में चुनावी रैली में आतंकवाद को लेकर समाजवादी पार्टी पर एक बेहद हैरान करने वाला बयान दिया कि वे जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, वर्ष 2008 के अहमदाबाद के बम धमाके में उपयोग किये गये समस्त बम समाजवादी पार्टी के चुनाव चिंह/निशान ‘‘साइकल’’ पर रखे हुये थे। आगे उनका कथन सबको और हैरान करने वाला है, जब वे कहते है ‘‘मैं हैरान हूं कि आतंकवादियों ने साइकिल (सपा) ही क्यों पसंद किया’’। 

निश्चित रूप से प्रधानमंत्री का उक्त बयान हैरान करने वाला है ही। क्योंकि किसी एक घटना में या कभी-कभार उपयोग में लाया गया कोई हथियार, वस्तु या अन्य चिन्ह अथवा उसको अंजाम देने वाले किसी व्यक्ति को प्रतीक मानकर उसे संपूर्ण वस्तु या जाति समाज का प्रतिनिधित्व मानकर संपूर्ण वर्ग को तदनुसार परिभाषित किया जाने का प्रयास करना निश्चित रूप से हैरान करने वाला ही बयान है। लेकिन कहते हैं न कि ‘‘समरथ को नहिं दोष गुसाईं‘, क्योंकि आज देश में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ही मात्र एक ऐसे व्यक्ति है जो मजबूत, दृढ़ निर्णय लेने की क्षमता वाले, 56 इंच सीने के साथ देश का तेजी से निर्माण, विकास में अपनी बुद्धि, कौशल सहित सब कुछ निस्वार्थ योगदान कर देश-विदेश में मान-सम्मान बढ़ा रहे हैं। उनकी योग्यता, विद्धवता, कौशल और कुशल बुद्धि पर कोई भी प्रश्नवाचक चिंह नहीं लगा सकता है, भले ही वह कितना ही उनका घोर विरोधी क्यों न हो?निसंदेह निश्चय ही मोदी  आज देश की धरोहर हैं। 

इंदिरा गांधी को तत्समय एक मजबूत प्रधानमंत्री (आयरन लेडी) माना जाता रहा था। इंदिरा गांधी के बाद कौंन? यह प्रश्न तत्समय हमेशा उठता रहा था बल्कि असम के एक अंधभक्त (स्व. श्री देवकांत बरूआ) ने तो ‘‘इंदिरा इज इंडिया एंड इंडिया इज इंदिरा‘‘ तक कह दिया था। लेकिन सार्वजनिक जीवन में कभी शून्य या रिक्तता नहीं रहती है। यद्यपि उनके बाद कई व्यक्ति आए, परंतु प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने दायित्वों, कार्यो व परिणामों से न केवल उक्त रिक्तता की बेहतर रूप से समूचित पूर्ति की है, बल्कि कई कदम आगे जाकर विश्व पटल पर देश व स्वयं का झंड़ा भी सफलतापूर्वक गाड़ा है। देश की कभी न सुलझने वाली समस्याएं श्रीराम मंदिर, अनुच्छेद 370 और ट्रिपल तलाक को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझा कर नरेंद्र मोदी ने देश हित में अपनी सफल प्रबंधन व नेतृत्व की छाप छोड़ी है। आज विश्व के सर्वाधिक लोकप्रिय नेताओं में उनकी गिनती होती है। इतने बड़े कद और पद के व्यक्तित्व से शुद्ध राजनीति के चलते तात्कालिक विशुद्ध चुनावी फायदे की दृष्टि से इस तरह के बयान की उम्मीद कदापि नहीं की जा सकती है। विचारणीय यहां यह भी है कि यह एक शोध का विषय है कि ऐसे बयान अपने उद्देश्यों की पूर्ति में सफल भी होते हैं? अथवा कितने प्रतिशत होते हैं? या सिर्फ तंज, तीर-तुक्का, हास-परिहास के लिये होते हैं? यदि इनके वास्तविक परिणामों का पता चल जाए तो निश्चित रूप से या तो ऐसे बयानों की बाढ़ आ जाएगी या खत्म हो जाएंगे।

उनके ‘‘तंज‘‘ को तर्क स्वरूप सही मान भी लिया जाए, तब फिर इस बात की हैरानी होती है कि ‘‘हाथ’’ (कांग्रेस पार्टी का चुनाव चिन्ह) का उल्लेख उन्होंने क्यों नहीं किया, जिसका उपयोग करके ही तो बम बलास्ट स्वयं या मशीनगनों द्वारा किया जाकर आतंकवादी गतिविधियां पनपती है। यह तो ‘‘कांच के घर में बैठ कर दूसरों पर पत्थर मारने‘‘ वाली बात हुई, क्योंकि ‘‘बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जायेगी‘‘। क्या अब ‘कीचड़’ को भी अच्छा कहा जायेगा? क्योंकि कीचड़ (पंक) में ही तो कमल (पंकज) (भाजपा का चुनावी चिन्ह) खिलता है, जो निश्चित रूप से आज देश की संम्प्रभुता, सम्मान व विकास का एक प्रतीक सा बन गया है। क्या चुनाव चिन्ह कमल का फूल की पोशाक पहने कोई आतंकवादी गोली चला दे, तब प्रधानमंत्री क्या कहेगें? कीचड़ ‘कीचड’ ही रहेगा। कमल के फूल खिलने से उसके उत्पादित करने वाली कीचड़ की पहचान देने वाली प्रकृति नहीं बदल जायेगी। ठीक उसी प्रकार ‘साइकल’ साइकिल ही रहेगी। वह तब भी आम लोगो के आवागमन के सबसे सस्ती व सुलभ साधन बनी रहेगी, बावजूद आतंकवादियों द्वारा उसका उपयोग आतंक को अंजाम देने में किया गया है।  

यदि साइकिल को सीरियल (क्रमिक एक के बाद एक) आतंकवादी घटना के आधार पर एक हथियार के रूप में प्रोजेक्ट (बदनाम) करेगें तो निश्चित रूप से आम आदमी जिसकी  चौपहिया वाहन रखने के लिये हम उसकी क्रय क्षमता को तो बढ़ा नहीं पा रहे है, लेकिन उसकी क्रय क्षमता की सीमा में आने वाली दैनिक दैनादिन उपयोग में जरूरत मंद साइकिल को उससे दूर कर जरूर ‘‘पैदल’’ कर रहे है। ‘साइकल’ के समान ही मोटर साइकल भी एक उपयोगी चुनाव चिन्ह है, तथापि आतंकवादी, आपराधिक घटनाओं में इसका प्रयोग साइकिल की तुलना में ज्यादा में किया गया है। केंद्रीय व राज्य चुनाव आयोगों ने लोकसभा से लेकर पंचायतों तक के चुनाव में बहुत से ऐसे चुनाव चिन्ह अधिकृत किये है जो ऋणात्मक, गलत (बुरी) छाप व परसेप्शन लिये हुये है, तब उनके लिये क्या कहा जायेगा? क्या ऐसे चुनाव चिन्हों पर चुनाव आयोग प्रतिबंध लगायेगा। जैसे फरसा, बंदूक, तोप, कुल्हाडी, हथोड़ा, हसिया, तलवार आदि आदि। इनका सामान्य उपयोग सामान्यतया बुरे उद्देश्यों कार्यो के लिए होता है, फिर भी ‘जनता’ इन्ह चिन्हों को वोट देती हैं।  

माननीय प्रधानमंत्री का सिक्के के इस दूसरे पहलू पर शायद ध्यान नहीं गया, अन्यथा उनका उक्त बयान नहीं आया होता। इस तरह की व्यक्तिगत या इक्की-दूक्की घटनाओं को सामूहिक रूप से उस वर्ग का प्रतीक मानकर राजनीतिक उद्देश्यों हेतु ‘‘हथौड़े’’ चला देना न केवल देश की स्वस्थ्य लोकतांत्रिक राजनीति के लिए घातक है, बल्कि खतरनाक भी है। सावधानीपूर्वक इस पर गहन चिंतन करने की आवश्यकता है कि ‘‘बंधी मुठ्ठी लाख की होती है और खुलने के बाद ख़ाक की रह जाती है‘‘। चूँकि इस धरती में कोई व्यक्ति पूर्ण नहीं होता है और प्रत्येक व्यक्ति चाहे वह कितना ही सफल और उच्चतम पद आसीन हो, उससे कुछ न कुछ गलती होना मानवीय स्वभाव है। नरेन्द्र मोदी देश के एक आईकॉन व धरोहर होने के कारण  देश हित में यथासंभव शून्य गलती से युक्त हो, इसी भाव से प्रधानमंत्री जी का ध्यान उक्त कथन पर लाया गया है। उनका यह असीमित सर्वाधिकार है कि उक्त तथ्य को गलत पाने पर  अस्वीकार कर दे। अतः यह उम्मीद की जानी चाहिये कि भविष्य में प्रधानमंत्री ऐसी त्रुटि से बचेगें और इस तरह की हो रही राजनीति को स्वयं आगे बढ़कर रोकेंगे।

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