शुक्रवार, 4 मार्च 2022

‘चुनावी राजनीति’’ के लिए ‘‘नीति’’ छोड़कर कुछ भी कहना चलेगा?

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उत्तर प्रदेश के हरदोई में चुनावी रैली में आतंकवाद को लेकर समाजवादी पार्टी पर एक बेहद हैरान करने वाला बयान दिया कि वे जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, वर्ष 2008 के अहमदाबाद के बम धमाके में उपयोग किये गये समस्त बम समाजवादी पार्टी के चुनाव चिंह/निशान ‘‘साइकल’’ पर रखे हुये थे। आगे उनका कथन सबको और हैरान करने वाला है, जब वे कहते है ‘‘मैं हैरान हूं कि आतंकवादियों ने साइकिल (सपा) ही क्यों पसंद किया’’। 

निश्चित रूप से प्रधानमंत्री का उक्त बयान हैरान करने वाला है ही। क्योंकि किसी एक घटना में या कभी-कभार उपयोग में लाया गया कोई हथियार, वस्तु या अन्य चिन्ह अथवा उसको अंजाम देने वाले किसी व्यक्ति को प्रतीक मानकर उसे संपूर्ण वस्तु या जाति समाज का प्रतिनिधित्व मानकर संपूर्ण वर्ग को तदनुसार परिभाषित किया जाने का प्रयास करना निश्चित रूप से हैरान करने वाला ही बयान है। लेकिन कहते हैं न कि ‘‘समरथ को नहिं दोष गुसाईं‘, क्योंकि आज देश में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ही मात्र एक ऐसे व्यक्ति है जो मजबूत, दृढ़ निर्णय लेने की क्षमता वाले, 56 इंच सीने के साथ देश का तेजी से निर्माण, विकास में अपनी बुद्धि, कौशल सहित सब कुछ निस्वार्थ योगदान कर देश-विदेश में मान-सम्मान बढ़ा रहे हैं। उनकी योग्यता, विद्धवता, कौशल और कुशल बुद्धि पर कोई भी प्रश्नवाचक चिंह नहीं लगा सकता है, भले ही वह कितना ही उनका घोर विरोधी क्यों न हो?निसंदेह निश्चय ही मोदी  आज देश की धरोहर हैं। 

इंदिरा गांधी को तत्समय एक मजबूत प्रधानमंत्री (आयरन लेडी) माना जाता रहा था। इंदिरा गांधी के बाद कौंन? यह प्रश्न तत्समय हमेशा उठता रहा था बल्कि असम के एक अंधभक्त (स्व. श्री देवकांत बरूआ) ने तो ‘‘इंदिरा इज इंडिया एंड इंडिया इज इंदिरा‘‘ तक कह दिया था। लेकिन सार्वजनिक जीवन में कभी शून्य या रिक्तता नहीं रहती है। यद्यपि उनके बाद कई व्यक्ति आए, परंतु प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने दायित्वों, कार्यो व परिणामों से न केवल उक्त रिक्तता की बेहतर रूप से समूचित पूर्ति की है, बल्कि कई कदम आगे जाकर विश्व पटल पर देश व स्वयं का झंड़ा भी सफलतापूर्वक गाड़ा है। देश की कभी न सुलझने वाली समस्याएं श्रीराम मंदिर, अनुच्छेद 370 और ट्रिपल तलाक को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझा कर नरेंद्र मोदी ने देश हित में अपनी सफल प्रबंधन व नेतृत्व की छाप छोड़ी है। आज विश्व के सर्वाधिक लोकप्रिय नेताओं में उनकी गिनती होती है। इतने बड़े कद और पद के व्यक्तित्व से शुद्ध राजनीति के चलते तात्कालिक विशुद्ध चुनावी फायदे की दृष्टि से इस तरह के बयान की उम्मीद कदापि नहीं की जा सकती है। विचारणीय यहां यह भी है कि यह एक शोध का विषय है कि ऐसे बयान अपने उद्देश्यों की पूर्ति में सफल भी होते हैं? अथवा कितने प्रतिशत होते हैं? या सिर्फ तंज, तीर-तुक्का, हास-परिहास के लिये होते हैं? यदि इनके वास्तविक परिणामों का पता चल जाए तो निश्चित रूप से या तो ऐसे बयानों की बाढ़ आ जाएगी या खत्म हो जाएंगे।

उनके ‘‘तंज‘‘ को तर्क स्वरूप सही मान भी लिया जाए, तब फिर इस बात की हैरानी होती है कि ‘‘हाथ’’ (कांग्रेस पार्टी का चुनाव चिन्ह) का उल्लेख उन्होंने क्यों नहीं किया, जिसका उपयोग करके ही तो बम बलास्ट स्वयं या मशीनगनों द्वारा किया जाकर आतंकवादी गतिविधियां पनपती है। यह तो ‘‘कांच के घर में बैठ कर दूसरों पर पत्थर मारने‘‘ वाली बात हुई, क्योंकि ‘‘बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जायेगी‘‘। क्या अब ‘कीचड़’ को भी अच्छा कहा जायेगा? क्योंकि कीचड़ (पंक) में ही तो कमल (पंकज) (भाजपा का चुनावी चिन्ह) खिलता है, जो निश्चित रूप से आज देश की संम्प्रभुता, सम्मान व विकास का एक प्रतीक सा बन गया है। क्या चुनाव चिन्ह कमल का फूल की पोशाक पहने कोई आतंकवादी गोली चला दे, तब प्रधानमंत्री क्या कहेगें? कीचड़ ‘कीचड’ ही रहेगा। कमल के फूल खिलने से उसके उत्पादित करने वाली कीचड़ की पहचान देने वाली प्रकृति नहीं बदल जायेगी। ठीक उसी प्रकार ‘साइकल’ साइकिल ही रहेगी। वह तब भी आम लोगो के आवागमन के सबसे सस्ती व सुलभ साधन बनी रहेगी, बावजूद आतंकवादियों द्वारा उसका उपयोग आतंक को अंजाम देने में किया गया है।  

यदि साइकिल को सीरियल (क्रमिक एक के बाद एक) आतंकवादी घटना के आधार पर एक हथियार के रूप में प्रोजेक्ट (बदनाम) करेगें तो निश्चित रूप से आम आदमी जिसकी  चौपहिया वाहन रखने के लिये हम उसकी क्रय क्षमता को तो बढ़ा नहीं पा रहे है, लेकिन उसकी क्रय क्षमता की सीमा में आने वाली दैनिक दैनादिन उपयोग में जरूरत मंद साइकिल को उससे दूर कर जरूर ‘‘पैदल’’ कर रहे है। ‘साइकल’ के समान ही मोटर साइकल भी एक उपयोगी चुनाव चिन्ह है, तथापि आतंकवादी, आपराधिक घटनाओं में इसका प्रयोग साइकिल की तुलना में ज्यादा में किया गया है। केंद्रीय व राज्य चुनाव आयोगों ने लोकसभा से लेकर पंचायतों तक के चुनाव में बहुत से ऐसे चुनाव चिन्ह अधिकृत किये है जो ऋणात्मक, गलत (बुरी) छाप व परसेप्शन लिये हुये है, तब उनके लिये क्या कहा जायेगा? क्या ऐसे चुनाव चिन्हों पर चुनाव आयोग प्रतिबंध लगायेगा। जैसे फरसा, बंदूक, तोप, कुल्हाडी, हथोड़ा, हसिया, तलवार आदि आदि। इनका सामान्य उपयोग सामान्यतया बुरे उद्देश्यों कार्यो के लिए होता है, फिर भी ‘जनता’ इन्ह चिन्हों को वोट देती हैं।  

माननीय प्रधानमंत्री का सिक्के के इस दूसरे पहलू पर शायद ध्यान नहीं गया, अन्यथा उनका उक्त बयान नहीं आया होता। इस तरह की व्यक्तिगत या इक्की-दूक्की घटनाओं को सामूहिक रूप से उस वर्ग का प्रतीक मानकर राजनीतिक उद्देश्यों हेतु ‘‘हथौड़े’’ चला देना न केवल देश की स्वस्थ्य लोकतांत्रिक राजनीति के लिए घातक है, बल्कि खतरनाक भी है। सावधानीपूर्वक इस पर गहन चिंतन करने की आवश्यकता है कि ‘‘बंधी मुठ्ठी लाख की होती है और खुलने के बाद ख़ाक की रह जाती है‘‘। चूँकि इस धरती में कोई व्यक्ति पूर्ण नहीं होता है और प्रत्येक व्यक्ति चाहे वह कितना ही सफल और उच्चतम पद आसीन हो, उससे कुछ न कुछ गलती होना मानवीय स्वभाव है। नरेन्द्र मोदी देश के एक आईकॉन व धरोहर होने के कारण  देश हित में यथासंभव शून्य गलती से युक्त हो, इसी भाव से प्रधानमंत्री जी का ध्यान उक्त कथन पर लाया गया है। उनका यह असीमित सर्वाधिकार है कि उक्त तथ्य को गलत पाने पर  अस्वीकार कर दे। अतः यह उम्मीद की जानी चाहिये कि भविष्य में प्रधानमंत्री ऐसी त्रुटि से बचेगें और इस तरह की हो रही राजनीति को स्वयं आगे बढ़कर रोकेंगे।

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