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वैसे सरकार ने शराब बेचने के लिए मानव दूरी बनाए रखने के लिए खड़े होने के लिये लाइन व गोलाई का चिंह्यकन सुनिश्चित की है तथा पुलिस तैनात की है। इससे तो यही लगता है कि इस कोरोना काल में इस संक्रमित बीमारी के बचाव में आम नागरिकों की बढ़ाने के लिए समस्त वैज्ञानिक खोज व आविष्कारों के बाद सरकार इस निष्कर्ष पर पहुंची है, कि शराब के उपभोग से? न केवल कोरोना पर काबू पाया जा सकता है, बल्कि इससे सरकार का खाली खजाना भी भरेगा। किताबे जिन्हे पढ़कर छात्र अपनेे बौद्धिक स्तर को उंचा उठते है, लेकिन इससे सरकार को बहुत कम टैक्स (जीएसटी अधिकतम करमुक्त होने) मिलने के कारण ही शायद सरकार ने किताबों को लाकडाउन के दौरान छूट देने की तुलना में शराब को तरहीज दी है। सरकार की नजर में शायद आम नागरिक शराबी बन कर कोरोना के गम को भूल जाएगा। तब शायद इन कोरोना वीरों के सम्मान के लिए भी सरकार के निर्देश पर सेना पुष्प वर्षा करेगी? ऐसा तो नहीं कि पूर्व में जहरीली शराब की खपत के कारण होने वाली अनेक दुघटनाओं के वर्तमान में न होने से मीडिया के छपास विहीन हो जाने से उनके दबाव के चलते सरकार ने दबाव में तो यह निर्णय नहीं लिया? आखिर सरकार के इस कदम से यह स्पष्ट हो गया कि संकट काल में वेश्यावृत्ति की आय व शराब की आय में कोई अंतर नहीं रह गया है।
वैसे सामाजिक सुधारों को उठाने का कदम भरने वाली समस्त राजनीतिक पार्टियां के हजारों कार्यकर्ता गण तथा आध्यात्मिक पुट देते हुए नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाले धर्मगुरु गण के शिष्य गण इन लंबी कतारों के बीच आकर अपना क्या दायित्व और कर्तव्य नहीं निभाएंगे? शायद इसीलिये कि ये कतारें न तो मतदान के दिन की कतारें हैं और न ही गुरूओं के दर्शन के लिए लालायित श्रद्धालुओं की लंबी कतारें हैं। वैसे भी राजनैतिक दलों के शीर्ष नेतृत्व इन कतारों में लगे हुए अपने कार्यकर्ताओं की पहचान करवा कर पार्टी की सदस्यता से इनको निलंबित भी नहीं करेंगे। शायद इसीलिये एक तो किसी भी राजनीतिक पार्टी की सदस्यता के लिए शराब पीना कोई अयोग्यता नहीं है। दूसरे आज की राजनीति में नेतागणों के बीच दारु नहीं, तो शराब का प्रचलन तो एक सामान्य शिष्टाचार की बात हो गई है।
मीडिया से लेकर सरकार चाहे वह केंद्रीय हो या राज्य की, समस्त सरकार विरोधी राजनैतिक पार्टियां अपने-अपने प्रदेशों में सरकार की शराबबंदी खोलने के निर्णय की आलोचना करना तो अपना धर्म समझेगी। लेकिन उनके मुंह से एक भी शब्द इन नागरिकों के लिए समझाइश के रूप में ही सही शायद नहीं निकलेगा, इनकी आलोचना तो दूर की बात है। इसीलिए हमारा देश अनेकता में एकता लिए हुए विचित्र किंतु सत्य देश है। प्रणाम।
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