बुधवार, 27 मई 2020

भारतीय राजनीति की विशिष्टता ‘‘वीआईपी कल्चर’’ ने क्या ‘‘कोरोना‘‘ को भी ग्रसित कर दिया है।



केंद्रीय नागरिक उड्डयन (विमान) मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने 20 मई को एक पत्रकार वार्ता में  हवाई यात्रा प्रारंभ करने की घोषणा की। तभी तत्काल उत्पन्न अपने मन के विचारों को मैनें अपने कुछ लेखक व मीडिया मित्रों से शेयर किए थे कि, ‘‘क्या इस देश में ‘‘मानव-दूरी’’ (ह्यूमन डिस्टेंसिग) के दो (दुहरे) पैमाने (मापदंड) होंगे।’’ सैनिटाइजेशन, आरोग्य सेतु एप, फेस मास्क व सैनिटाइजेशन बोतल के साथ अन्य सावधानियों के बरतनें की हिदायत के रहते टिकट मंहगी होने के दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर  मानव-दूरी के निर्धारित ‘मानकों’ के होते हुये भी हवाई जहाज में बीच की सीट खाली ‘‘नहीं’’ रखी जायेगी। अर्थात सोशल-डिस्टेसिंग के नियम का पालन हवाई जहाज के अंदर नहीं कराया जायेगा। मतलब बैठने की यह व्यवस्था, मंत्रीजी के निष्कर्षो में कोरोना वायरस को (सिर्फ मानव-दूरी के नियम का पालन न करने सेे) आकर्षित नहीं करेगी। यदि हरदीप सिंह पुरी की यह नई वैज्ञानिक खोज सही है, तो वे अपने साथी रेल मंत्री पीयूष गोयल एवं नितिन गडकरी सड़क परिवहन मंत्री व गृह मंत्रालय को भी यह बात क्यों नहीं समझाते हैं, कि वे सब ट्रेन मेट्रों, बस, आटो, टैक्सी, रिक्शा, साइकल इत्यादि में भी बैठने की उपरोक्त व्यवस्था लागू कर दें, ताकि हम उपलब्ध साधनों का भरपूर उपयोग कर सकें। इससे पर्याप्त सावर्जनिक परिवहन व्यवस्था के न चलते रहने से उत्पन्न अनेक असुविधाओं व संकटों से निजात पायी जा सकेंगी। 
मैं पाठकों का ध्यान आज की दो घटनाओं की ओर आकर्षित करना चाहता हूं। एक उच्चतम न्यायालय की टिप्पणी व दूसरा केंद्रीय मंत्री सदानंद गौड़ा का कथन। मुख्य न्यायाधीश की यह टिप्पणी ‘‘आप कैसे कह सकते हैं की बीच की सीटों पर यात्री बैठने से संक्रमण नहीं फैलेगा? क्या कोरोना वायरस यह देखेगा कि ये एयर क्राफ्ट है और यहां बैठे यात्रियों को संक्रमित नहीं करना है?’’ उच्चतम न्यायालय का आगे यह कथन कि आपको सिर्फ ‘‘एयर इंडिया की चिंता है’’, ‘‘हमे देश की भी चिंता है’’ बहुत ही महत्वपूर्ण है। इससे यह भी सिद्ध होता है कि देश की शासन व्यवस्था तीन खम्बें न्यायपालिका, विधायिका व कार्यपालिका (व चौथी प्रेस) पर टिकी है। किसी भी एक के पंगु हो जाने पर दूसरा अंग यथासंभव पूर्ति करने में लग जाता है। इसीलिए देश के जमीन से जुड़े गरीब श्रमिक व आम नागरिक जो जनसंख्या के 70 प्रतिशत से भी अधिक है, उनकी चिंता (जो कार्यपालिका सही रूप से नहीं कर पा रही है) उच्चतम न्यायालय ने हवाई यात्रियों की तुलना में की, जो कार्य वास्तव में कार्यपालिका का ही है। ‘‘देश’’ में सामान्य नागरिकों सहित इंडिया भी शामिल है, लेकिन एयर इंडिया में? 
माननीय मुख्य न्यायाधीश यदि पहले सदानंद गौड़ा के आगे लिखित कथन को पढ़ लेते तो शायद ऐसी टिप्पणी करने से बचते। दिल्ली से बेंगलुरु हवाई जहाज द्वारा पहुंचे केंद्रीय मंत्री सदानंद गौड़ा के क्वॉरेंटाइन में जाने के बजाय वे सीधे निकल लिये और बाद में उन्होंने यह कहा कि ‘कुछ खास पदों पर काम कर रहे लोगों को क्वॉरेंटाइन के दिशा-निर्देशों से छूट दी गई है‘? दुबई से अपनी बीमार मां से मिलने पहुंचे आमिर के लिये भी क्वॉरेंटाइन के नियम दूसरे हो गए, जिसके चलते वह अपनी बीमार मां से तो नहीं मिल पाया। परन्तु इसी बीच उसकी मां की मृत्यु हो जाने पर क्वॉरेंटाइन अवधि के चालू रहने से उसे अभी तक अंतिम संस्कार में शामिल होने की अनुमति नहीं मिली है। इस प्रकार क्वारंटीन के दो नियम दो व्यक्ति के लिये अलग-अलग? 
सदानंद गौड़ा तो दो प्रकार के (आम व खास) यक्ति के लिये क्वांरेटीन के दो अलग-अलग नियम बता रहे है। लेकिन हरदीप सिहं पुरी तो एक कदम और आगे बढ़ गये। एक ही व्यक्ति के लिये ही मानव-दूरी के दो नियम बता रहे हैं। हवाई यात्री जब एयरपोर्ट के अंदर प्रवेश करेगें, तब वह लाउंन्ज या कहीं भी बैठेगें तो मानव-दूरी बनाए रखने के नियम का पालन करते हुये एक सीट छोड़कर बैठेगें। लेकिन वहीं यात्री जब यात्री हवाई जहाज के अंदर बैठेगा तब उसके लिए वहीं मानव-दूरी का नियम हवाई जहाज की टिकिट के मूल्य में विलीन (मर्ज) होकर (उक्त नियम) समाप्त हो जावेगा। अर्थात उसे बीच की सीट में बैठने का अधिकार मिल जायेगा। 
हमारे देश में हवाई यात्री का दिमाग ‘‘हवाई’’ यात्री होने से सातवंे आसमान पर होता है। मजदूर व श्रमिक, दिमाग से नहीं, श्रम (भूमि) से जुड़ा होता है। इसीलिए ऐसी दोहरी नीति शायद इस देश की नियति ही मान ली गई है। इसी प्रकार यदि सड़क परिवहन मंत्री, रेल्वे मंत्री व गृहमंत्री के समक्ष इन यह बात ध्यान में लाई जावें कि बस, रिक्शा, आटों, टैक्सी द्विपहिया वाहन इत्यादि में मानव-दूरी बनाये रखने के नियम का पालन करने के कारण इन परिवहन साधनों से यात्रा करने वाले यात्री को दुगनी लागत भुगतनी पड़ रही है। यदि इन हवाई यात्रियों के समान ही यहां भी टिकिट की बढ़ती कीमत (लागत) को देखते हुये मानव-दूरी में ढ़ील इन सब परिवहन वाहनों में भी दें दी जाय तो आम व गरीब जनता का भी भला हो जाय। परन्तु फिर प्रश्न वहीं आकर खड़ा हो जाता है कि इन गरीबों का रखवाला व दबी कुचली आवाज को सुनने वाला कौंन? 
कोरोना संकट काल में राष्ट्रीय लॉक डाउन को लागू होने के बाद प्रारंभिक स्तर पर देश को एकता के भाव प्रदर्शित हुये। लेकिन हवाई यात्रा चालू करते समय विभिन्न प्रदेशों ने हवाई यात्रियों को सुविधा देने से एकता की जो धज्जियां उड़ी है, वह आपके सामने है। राष्ट्रीय लॉक डाउन के चलते पूरे देश में क्वॉरेंटाइन के नियम भी एक ही थे। लेकिन हवाई यात्रियों के संबंध में ‘‘अपनी-अपनी डफली अपना अपना राग’’ को अपनाते हुए विभिन्न प्रदेशों ने क्वॉरेंटाइन के अपने अलग-अलग नियम बनाए हैं, जो उचित नहीं है। केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री को इस संबंध में विभिन्न सरकारों से बातचीत करना चाहिए।
क्या केंद्रीय मंत्री गृह मंत्रालय के किसी भी ऐसे निर्देश (एड़वाइजरी) को बतने की कृपा करेगें जो उनके उक्त कथन (खास पदों के लिए विशेष व्यवस्था) का समर्थन करते है? हाँ उनकी ‘‘कुछ खास पदों में बैठे’’ बात का समर्थन भारतीय राजनीति की स्थापित परम्पराएं अवश्य करती हैं। भारतीय राजनीति एवं यहां तक कि सार्वजनिक व सामाजिक जीवन की वर्तमान में पहचान न केवल एक वीवीआईपी और वीआईपी कल्चर के रूप में बन चुकी है बल्कि आम जीवन में भी उत्तर  (आत्मसात) हो चुकी है। यह ‘‘आत्मसात’’ पहचान ही नागरिकों को ऐन-केन प्रकारेण उसमें आने के लिए एक ‘आकर्षण‘ का महत्वपूर्ण कारक बन चुकी है। वीआईपी कल्चर की निरोधक क्षमता पर तो जरा गौर फरमाइए साहब। जहां कोरोना वायरस देश व जीवन के हर क्षेत्र को संक्रमित कर बीमार कर रहा हो वहीं मेरे देश की वीआईपी कल्चर अपनी मजबूत निरोधक क्षमता के चलते सुरक्षित है। इसलिए देश के बुद्धिजीवियों और विद्वत नागरिकों को इस वीआईपी कल्चर का गहरा अध्ययन कर विश्लेषण करना चाहिए। यदि इसमें कुछ परिणाम आपको मिल जाएँ तो उन्हे अपने जीवन में अपना लीजिए व उतार लीजिये। कोरोना वायरस से संक्रमित होने से तो आप निश्चित रूप से बच जाएंगे? मतलब साफ है कि एक ओर कोरोना वायरस सबको ग्रसित (प्रभावित) कर रहा है। वहीं हमारा मजबूत वीआईपी कल्चर कोरोना वायरस जैसी विश्व की अभी तक की सबसे बड़ी महामारी को भी ग्रसित करे ड़ाल रहा है। तो मजबूत किसे माना जाय? हमारी वीआईपी कल्चर की इस ‘‘मजबूत निरोधक क्षमता‘‘ को कृपया विश्व को भी बतलाइए, ताकि वे हमारी इस उपलब्धि को भी नमस्ते कर नमन कर सकें। 
जय हो सदानंद गौड़ा जी! एक छोटा सा कथन करके आपने अभी तक हमारे देश की राजनीति की छुपी हुई ‘प्रतिभा‘ व ‘प्रतिमा’ को विश्व के सामने लाने का अवसर दें दिया?
 

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