शुक्रवार, 18 नवंबर 2011

क्या 'निजता' क अधिकार को सार्वजनिक करने पर उचित अंकुश लगाने का समय तो नही आ गया है?


राजीव खण्डेलवाल:-

सिविल  सोसायटी के महत्वपूर्ण सदस्य और सुप्रीम कोर्ट के सीनियर अधिवक्ता व पूर्व केन्द्रीय कानून मंत्री शांति भूषण के बेटे प्रशांत भूषण के द्वारा कश्मीर पर जनमत संग्रह के समर्थन में जो बयान हाल ही में आया था उसकी तात्कालिक प्रतिक्रियावादी प्रक्रियावादी के रूप में और फिर बाद में धीरे-धीरे ''क्रियावादी''रूप में पूरे देश में हुई जो प्रारंभ में अस्वाभाविक होते हुए की धीरे-धीरे स्वाभाविक रूप लेने लगी। जब उनके बयान पर भगतसिंह क्रांति सेना के तीन व्यक्तियो ने खुले आम दिन दहाड़े उनके उच्चतम न्यायालय के चेम्बर में जाकर उनके साथ हाथापाई को तो देश के अधिकांश लोगो ने, बुदिधजीवी वर्ग ने उक्त आक्रमण की तीव्रता के साथ आलोचना तो की लेकिन हमले की आलोचना करने के साथ-साथ प्रशांत भूषण के देश विरोधी बयान पर तात्कालिक वैसी ही कड़ी आपत्ति और प्रतिक्रिया सामान्यत: नही व्यक्त की गई सिवाय शिवसेना को छोड़कर। बाद में कुछ लोगो ने जिसमे अन्ना और इनकी टीम के लोग भी शामिल थे प्रशंत भूषण के बयान को उसके निज विचार बताकर अपना पल्ला झाड़ लिया। लेकिन न तो प्रशांत भूषण की इस बात की आलोचना की गई कि उन्होने इस तरह का बयान क्यो दिया और न ही प्रशांत भूषण को उन्होने अपने से अलग-थलग करने का प्रयास किया। इससे एक बात की आशंका पुन: बलवती हुई कि जो लोग सिद्धांतो की राजनीति करने का दावा करने से अघाते नही है और जिन्हे देश का अपूर्व समर्थन प्राप्त हुआ है वे भी कही न कही सुविधा की राजनीति के शिकार तो नही हो गये है? इससे भी बड़ा प्रश्न यह पैदा होता है कि क्या ''निजता" की आड़ में सार्वजनिक रूप से कुछ भी बोला जा सकता है और क्या अब समय नही आ गया कि इस पर भी प्रभावी अंकुश विचारो की स्वतंत्रता के होते हुये भी नही लगाया जाना चाहिये?
एक नागरिक होने के नाते प्रशांत भूषण को अपनी निजी राय को सार्वजनिक करने का अधिकार हेै लेकिन उसका औचित्य वही तक है जब तक वह संविधान की सीमा में है, किसी कानून का उल्लघन न करती हो व, मर्यादित हो ,नैतिकता की रेखा से नीचे न गिरे। यदि उक्त आधारो पर प्रशांत भूषणके बयान को परखा जाये तो निश्चित रूप से उनका बयान संविधान और कानून के खिलाफ है। जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और उसका भारत मे विलय अमिट है । राष्टृ की भू-सीमा एकता के खिलाफ  आया प्रशांत भूषण का बयान देना कश्मीर के संबंध मे अलगाववादियो द्वारा जो स्टैण्ड लिया गया है उसका समर्थन करता है तो क्या यह कृत्य देश द्रोह नही है और क्या इसके लिये प्रशांत भूषण के खिलाफ  कार्यवाही नही की जानी चाहिये। अन्ना ने तुरन्त ही उनके बयान की कड़ी भत्सना करते हुए गलत क्यो नही ठहराया मात्र यह कहकर कि ये उनके निजी विचार है, उन्हे छोड़ दिया। क्या इस आधार पर लोगो को अन्ना पर उनकी सुविधा की राजनीति करने का आरोप लगाने का मौका नहीं मिलेगा। भ्रष्टाचार का मतलब सिर्फ पैसो का लेन देन नही  है बल्कि नैतिकता और कानून के विरूद्ध उठाया गया वह हर कदम भ्रष्ट आचरण की सीमा में आता है। क्या प्रशांत भूषण आज राष्ट् के सम्मान के प्रति भ्रष्टाचारी नही है? क्या निजता के आधार पर उन्हे ऐसी बयान बाजी करने की छूट दी जा सकती है  एक पति-पत्नि को सम्भेग करने का निजता का अधिकार प्राप्त है। लेकिन इस अधिकार के रहते इसका सार्वजनिक प्रदर्शन क्या वे कर सकते है?  कहने का तात्पर्य यह है कि निजता के अधिकार पर भी नैतिकता, कानून का कोई न कोई बंधन है जिसका पालन किया जाना आवश्यक है । आजकल यह एक सार्वजनिक फैशन हो गया क्योकि जब भी कोई व्यक्ति किसी मुद्दे पर अपने विचार सार्वजनिक करता है तब असहजता की स्थिति होने पर उस व्यक्ति से जुड़ी संबंधित संस्था ,पार्टियो या व्यक्तियो के समुह संबंधित व्यक्ति के बयान को उनको निजी विचार कहकर अपना पल्ला झाड़ लेती है जिस पर आवश्यक रूप से रोक लगायी जानी चाहिये। यदि किसी व्यक्ति को व्यक्तिगत विचार व्यक्त करने का शौक है तो वह अपने घर के सभी सदस्यो केा बुलाकर उनके बीच क्येा नही व्यक्त कर देता । कानून का  एक मार्मिक विशेषज्ञ माना जाने वाला व्यक्ति जो न्याय व्यवस्था का हिस्सा माना जाता है, ऐसे वकील भूषण के द्वारा इस तरह के अलगाववादी बयान पर भगतसिंह क्रांति सेना के स्वयंसेवको द्वारा जिस तरीके से प्रतिक्रिया की गई वह स्वाभाविक है। एक्सट्रीम क्रिया की एक्सट्रीम प्रतिक्रिया होनी चाहिये (श्व3ह्लह्म्द्गद्गद्व ड्डष्ह्लद्बशठ्ठ स्रद्गह्यद्गह्म्1द्ग द्ग3ह्लह्म्द्गद्गद्व ह्म्द्गड्डष्ह्लद्बशठ्ठ) बल्कि मेरे मत में एक गैर सवैेंधानिक बयान पर जो प्रतिक्रिया 'सेनाÓ द्वारा दी गई है वह सवैंधानिक व कानूनी है। वह इस तरह से कि इस देश के प्रत्येक नागरिक को राइट आफ सेल्फ डिफेन्स का अधिकार प्राप्त है अर्थात् उसे अपनी संपत्ति और जानमाल की सुरक्षा के लिये परिस्थितिवश हिंसा की अनुमति भारतीय दंड संहिता देता है। काश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, देश की माटी हमारी माता है और हमारी माता के अस्तित्व पर अगर कोई प्रश्र चिन्ह लगाएगा, आक्रमण करेगा तो हमारी माता के अस्तित्व की रक्षा के लिये राइट आफ  सेल्फ  डिफेन्स का अधिकार प्राप्त है। इसलिये भगत सिंह क्रांति सेना के उन बहादुर लड़को क ो जिन्होने उक्त कदम उठाकर विरोध व्यक्त किया है के साथ'-साथ शिवसेना केा भी मैं बधाई देना चाहता हूॅं। जिन्होने आत्मसम्मान की रक्षा करने वाले कृत्य को प्रोत्साहित करने का साहस किया। यदि उन्होने अपने अधिकार क्षेत्र का कोई उल्लघन किया हो अर्थात् हिंसा का प्रयोग यदि कानून में परमिटेड सीमा से अधिक किया है तो वे उसके दोषी हो सकते है जिसके लिये उन पर मूकदमा चलाया जा सकता है लेकिन इस बात के लिये उनकी प्रशंसा की जानी चाहिये और उन्हे इसके लिये साधूवाद दिया जाना चाहिये क्योकि उन्होने अपने इस कृत्य द्वारा देश के सोये हुये कई नागरिको को जगाने का कार्य भी किया है। 

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