शनिवार, 6 जनवरी 2018

‘‘आम आदमी पार्टी’’ (आप) वास्तव में क्या ‘‘आम आदमियों की पार्टी’’ (आम) बन गई हैं?

5 तारीख को दिल्ली प्रदेश के लिए होने वाले राज्यसभा चुनाव हेतु आप पार्टी ने निश्चित विजय प्राप्त करने वाले अपने तीनों उम्मीदवारो की घोषणा कर दी हैं। पार्टी के संस्थापक सदस्य संजय सिंह के अलावा पार्टी ने दो बाहरी ख्याति प्राप्त व्यक्तियों एन.डी. गुप्ता चार्टर्ड एकाउंटेंट तथा भूतपूर्व अध्यक्ष चार्टर्ड एकाउंटेंट संघ और दिल्ली के बड़े व्यवसाई हाल तक कांग्रेस के बड़े नेता रहे व दिल्ली विधानसभा का चुनाव भी लड़ चुके, वैश्य समाज के सुशील गुप्ता को टिकट दी गई हैं। संजय सिंह का नाम तो काफी पहले से तय था जिनके नाम पर पार्टी के अंदर या बाहर विवाद की कोई स्थिति थी ही नहीं। 
पार्टी ने शुरू में विभिन्न क्षेत्रो में काम करने वाले देश के भिन्न-भिन्न स्थानो के ख्याति प्राप्त व्यक्तियों जैसे रघुराम राजन भूतपूर्व गवर्नर रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया, मध्य प्रदेश के विदिशा जिले के नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी, उच्चतम् न्यायालय के भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश सहित, कला, फिल्म, शिक्षा, न्यायिक इत्यादि क्षेत्रो से जुड़े नामी गिरामी विभूतियों सहित एक के बाद एक कुल 18 लोगो के नामों का प्रस्ताव राज्यसभा की टिकिट हेतु आम आदमी पार्टी के अध्यक्ष अरविंद केजरीवाल के द्वारा किया गया था। इन सब महानुभावों ने देश के विभिन्न क्षेत्रो में सर्वागीण विकास हेतु उच्चतर कार्य कर विशिष्ट स्थान बनाया/पाया हैं। इन सभी ने केजरीवाल के इन प्रस्तावो को अस्वीकार करके धन्यवाद सहित नम्रता पूर्वक अपनी असमर्थता व्यक्त कर दी। अंततः ये 18 व्यक्ति जो अपने- अपने क्षेत्रों में विशिष्टता लिये हुये ख्याति प्राप्त रहे हैं, उन्होने केजरीवाल के अनुरोध को अस्वीकार कर स्वंय को आम आदमी पार्टी के लिये सक्षम व योग्य नहीं समझा और न ही स्वयं को ‘आप’ पार्टी के ‘‘आम’’ व्यक्ति हो सकने लायक समझा। येे सभी व्यक्ति यद्यपि अपने आम के मीठे रस को े (सर्वत्र) बिखेरते रहे लेकिन स्वयं को ‘आम’ की गुठली के रूप में आम आदमी पार्टी के द्वारा स्वयं के चूसे जाने की (राजनैतिक) स्थिति से बचने के प्रयास में ही शायद इन्होने यह इंकार कर दिया।  बात जो भी हो, इंकार कर उन्होने सबसे बड़ा अहसान तो आम आदमी पार्टी को विशिष्ट पार्टी नहीं बनने देकर केजरीवाल पर किया हैं और आप को मूलरूप आम ही रहने दिया हैं। यद्यपि ये सब तो समाज के विशिष्ट व्यक्ति होने के कारण ही ‘आप’ के लाड़ले हो गये थे। उन सबके इस अहसान के लिये केजरीवाल को तो उन सब को अवश्य धन्यवाद देना चाहिए।
आम आदमी पार्टी का विस्तार निर्धन, गरीब, कुचला या ज्यादा से ज्यादा निम्न मध्यम वर्ग तक सीमित हैं। शायद आरोप लगाने वाले लोग इस बात को भूल जाते हैं कि आम आदमी पार्टी जब बनी थी, तो उसका उद्देश्य सामान्य आम भारतीयों के जीवन स्तर को इतना ऊँचा उठाना था कि वे उच्च व धनी वर्ग के बराबर हो जाये, न कि धनी वर्ग को गरीबी रेखा तक नीचे लाकर उन्हे निर्धन वर्ग के बराबर ‘आम’ बनाना था। शायद पार्टी स्थापना के सात सालो के भीतर ही आम आदमी पार्टी के द्वारा दिल्ली विधानसभा की 70 में से 67 जीतकर लगभग तीन वर्ष से सत्ता में रहने के बाद उन्हे यह लगा होगा कि दिल्ली के आम नागरिको के रहने का जीवन स्तर उन्होने इतना ऊँचा ऊपर उठा दिया हैं कि वह धनी वर्ग गुप्ताओं (जिन्हे राज्यसभा की टिकिट दी गई हैं) के बराबर हो गया हैं। इसीलिए वे अब ‘आप’ पार्टी के ‘आम’ हो गये हैं, अतः उन्हे टिकट देकर ‘आप’ के विकास की हुई प्रगति पर मुहर लगा सकंे। केजरीवाल को ‘आप’ की इस (ग्रोथ) विकास व विस्तार के लिये बधाइयाँ? 
‘‘कुमार विश्वास’’ शायद अभी तक कुमार ही हैं। आम आदमी पार्टी के संस्थापक होने से लेकर आज तक के इन सात सालो के बाद भले ही ‘‘विश्वास’’ स्वयं को कुमार से परिपक्व होकर पूर्ण व्यक्ति बन जाना मान रहे हो, लेकिन शायद वे अभी भी केजरीवाल को यही भरोसा नहीं दिला पाये है। इसीलिए केजरीवाल के लिये ‘‘विश्वास’’ अविश्वासी हो गये। अब उन्हे और कड़ी मेहनत करने की जरूरत हैं, ताकि वह एक पूर्ण परिपक्व ‘कुमार’ बन सके। तभी भविष्य में दो साल बाद होने वाले राज्यसभा के चुनाव में आम आदमी पार्टी ‘‘विश्वास’’ पर विश्वास कर पायेगी?
‘‘विश्वास’’ (गोपाल राय की नजर में) अब इतने विश्वासघाती हो गये हैं कि वे यद्यपि राज्यसभा की टिकिट के पात्र नहीं रह गये हैं लेकिन पार्टी की समस्त समितियों व पदों पर रहते हुये वे अभी भी  पार्टी के ‘‘माननीय’’ हैं। सरकार गिराने के असफल प्रयास द्वारा विश्वासघात के लिये पार्टी ने उन्हे पार्टी से निकालने की बात तो दूर, इस गंभीर आरोप हेतु कारण बताओं सूचना पत्र भी नहीं दिया हैं। लेकिन लगातार केजरीवाल के विरूद्ध पोस्टर बाजी से लेकर बयान देते रहने वाले व्यवसाई सुशील गुप्ता को उनके उक्त कृत्य के बदले इनाम में राज्यसभा सीट देकर नवाजा गया हैं। दागी सांसदो से इस्तीफा मांगने को लेकर चले ‘‘अन्ना आंदोलन’’ से उपजी आप ने दागी सुरेन्द्र गुप्ता को राज्यसभा टिकिट देकर शायद अपनी उत्पत्ति के मूल आधार को चमकाने की दिशा में ही एक और कदम आगे बढाया हैं। क्योकि 15 से अधिक विधायक जो पहले से दागी थे या विधायक बनने के बाद दागी हुये (एकाध को छोड़कर) उनमें से किसी से भी अभी तक इस्तीफा नहीं मांगा गया हैं और न ही बाहर का रास्ता दिखाया गया हैं, जैसा कि ‘‘कुमार’’ को राज्य से बाहर का रास्ता तो दिखा दिया गया हैं। लेकिन सभा (पार्टी प्लेटफार्म) (राज्य़सभा) रहने दिया हैं।   
‘आप’ ने गुप्ताज का चयन कर एक बात का संदेश और दिया हैं कि पार्टी देश हित में निष्ठा से आगे जाकर ‘‘राष्ट्रीय व्यक्तित्व’’ को समर्थन देती हैं। शायद उनका यही रवैया आगे जाकर संवैधानिक पद जैसे राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, स्पीकर इत्यादि के चयन के समय  भी जारी रह सकता हैं? जो देश के राजनैतिक स्वास्थ्य के लिये अच्छी बात होगी।

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