गुरुवार, 25 अगस्त 2022

केजरीवाल मुफ्त की ‘‘रेवड़ियां’’ (चारित्रिक प्रमाण पत्र) देना बंद करें।

दिल्ली के उपमुख्यमंत्री तथा शिक्षा और आबकारी मंत्री मनीष सिसोदिया के खिलाफ सीबीआई का छापा व ईडी की जांच पर तिलमिलाए दिल्ली के मुख्यमंत्री एवं ’आप’ के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल अपनी ‘‘अधजल गगरी से छलका’’ हुआ पानी पी पी कर, बत्तीसी दबाकर, बारम्बार, जोरदार रूप से यह कहते कहते थक नहीं रहे हैं कि मनीष सिसोदिया 24 कैरेट के 100 प्रतिशत ‘‘कट्टर ईमानदार’’ व्यक्ति है, और उन्हें जबरन फंसाया जा रहा है। (अब ‘‘ईमानदारी‘‘ को भी ‘‘कट्टर’’ का आभूषण पहना दिया गया है।) वैसे आज की राजनीति में तो कट्टरता का बोलबाला ही है, शायद इसीलिए सामान्य रूप से इस शब्द का उपयोग हुआ हैं। विपरीत इसके शिक्षा के क्षेत्र में मनीष सिसोदिया जो कि अरविंद केजरीवाल की ‘‘अंगूठी के नगीना’’ हैं, ने ’’अदभुत’’ काम किया है, इसके लिए उन्हें ‘‘भारत रत्न’’ से विभूषित किया जाना चाहिये, बजाए जेल भेजने के ऐसी मांग काउंटर में सिसोदिया के बचाव में केजरीवाल ने कर डाली।kनिश्चित रूप से मनीष सिसोदिया ने यदि दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन कर उसे एक श्रेष्ठ पद्धति में परिवर्तित कर दिया है, जैसा कि ‘‘अपनी खिचड़ी अलग पकाने वाले’’ अरविंद केजरीवाल व आप पार्टी लगातार न केवल दावा करते आ रहे है, बल्कि वह अपनी सरकार की उक्त सफलता (तथाकथित) शिक्षा नीति और मोहल्ला क्लीनिक और मुफ्त सुविधाएं के आधार पर अन्य प्रदेशों में सफलता पूर्वक वोट भी मांग रहे हैं। उनके कथनानुसार अमेरिका की प्रसिद्ध मैगजीन ’न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने भी दिल्ली के शिक्षा मंत्री की इस नीति की प्रशंसा करते हुए उनकी प्रशस्ति में मुख्यपृष्ठ पर एक लेख भी छापा है। (या छपवाया गया?) ऐसी स्थिति में ’भारत रत्न’ मांगना उनका ’अधिकार’ तो है? लेकिन यदि इस तरह से ’भारत रत्न’ की ‘‘मॉग व आपूर्ति’’ होने लग जाए तो ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जैसे व्यक्ति यदि वे जीवित होते तो, निश्चित रूप से इन परिस्थितियों में देश का सर्वोच्य नागरिक पुरस्कार के बनाए रखने के लिए ‘‘भारत रत्न‘‘ वापस कर देते। 

निश्चित रूप से सही और सफल शिक्षा नीति लागू किये जाने के कारण मनीष सिसोदिया को भारत रत्न तो नहीं परन्तु पद्म् विभूषण पाने के लिए निर्धारित प्रक्रिया में भाग लेते हुए उन्हें आवेदन जरूर देना चाहिए। क्योंकि भारत रत्न तो प्रधानमंत्री की सिफारिश पर ही राष्ट्रपति देते है। (आवेदन देने की कोई प्रक्रिया अन्य सम्मानों के समान नहीं है) वर्तमान स्थिति में यह संभव भी नहीं है। परंतु बड़ा प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि एक नई अच्छी व सफल शिक्षा नीति होने का दावा किया जा रहा है, को क्या देश के अन्य राज्य लागू करने के लिए उतने ही लालायित है? हो सकता है, तुच्छ राजनीति के चलते अच्छी नीति होने के बावजूद भी दूसरे राज्य या केंद्र इसको अपनाने में हिचक रहे हों। अरविंद केजरीवाल के इस कथन से एक बड़ा प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि देश के सेलिब्रिटीज् जिन्हें समय-समय पर विभिन्न क्षेत्रों में सर्वोच्च, उच्च ईनाम, पदक व सम्मान मिले हैं, क्या उन्हे आईपीसी, दंड प्रक्रिया संहिता या अन्य आपराधिक कानूनों से उन्मुक्त कर दिया है? 

देश के इतिहास में ऐसे कई लोग हैं जिन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में सर्वोच्च अवार्ड सम्मान पाने के बावजूद अपराधों में लिप्त होने के कारण उन्हें न्यायालीन प्रक्रियाओं का सामना करना पड़ा व कई मामलों में उन्हें सजा भी हुई है। वे सब गणमान्य व्यक्ति राष्ट्रीय सम्मान से पुरस्कृत होने के कारण क्या उन्हें सीबीआई/ईडी के क्षेत्राधिकार से मुक्त होने का पुरस्कार भी मिल जाता है? इसलिए सिसोदिया को भारत रत्न की पात्रता होने के कारण उनकी अपराध में संलग्नता न होना मानना, बहुत ही बचकाना व बच्चों वाला तर्क एक बड़े पढ़े लिखे व्यक्ति का है। इसी कारण ‘‘अपने मुंह मियां मिट्ठू बनते बनते’’ कभी कभी वे हंसी का पात्र भी बन जाते हैं। भाजपा का इस संबंध में किया गया तंज सटीक हैं। ‘‘सत्येन्द्र जैन के लिए पद्म विभूषण, मनीष सिसोदिया को भारत रत्न व अरविंद केजरीवाल को अगला नोबेल पुरस्कार‘‘! यानी सब ‘‘छछूंदरों के सर पर चमेली का तेल’’।

दूसरा उनका कहना कि मैं जानता हूं, मनीष सिसोदिया कट्टर ईमानदार हैं। इस देश में ईमानदारी का प्रमाण पत्र देने का अधिकार कब व कैसे मुख्यमंत्री को या आरोपी स्वयं अथवा उनके शुभचिंतकों को दे दिया गया है, यह बात समझ, ज्ञान व जानकारी से परे है। आखिर केजरीवाल और उनकी पार्टी के चरित्र का प्रमाण पत्र देने की लत क्यों लग गई है। जब उनके पार्टी के प्रवक्ता यह कहते है कि हमारे जितने भी मंत्रियों के खिलाफ केस चलाया गया है चाहे सत्येन्द्र जैन, मनीष सिसोदिया या पूर्व में अन्य कोई, वे सब कट्टर ईमानदार है। 

आप पार्टी के संयोजक केजरीवाल को क्या यह याद दिलाना होगा कि अन्ना आंदोलन जिनकी वे अवैध उत्पत्ति हैं, इसलिये की माइक पर गले फाड़कर चिल्ला-चिल्ला कर अन्ना के सामने वे यह कहते थकते नहीं थे, जो वर्तमान संसद है इसमें लगभग 150 से अधिक सांसद दागी हैं। असली ’’संसद तो सामने खड़े हुए लोग’’ है। इसलिए सही लोकतंत्र वही होगा, जब ये समस्त दागी (आरोपी) सांसद जिन पर विभिन्न गंभीर अपराधों सहित कई प्रकरण चल रहे हैं, संसद से इस्तीफा देकर चल रहे मुकदमे को लड़े और निर्दोष सिद्ध होकर फिर चुनाव लड़कर संसद में आयंे। सोभित उल्लेखनीय बात यह है कि महीनों से जेल में बंद मंत्री सत्येंद्र जैन से अभी तक न तो इस्तीफा लिया गया है और न ही उन्हें मंत्रिमंडल से बर्खास्त किया गया है। अब केजरीवाल इस सिद्धांत को ‘‘अंगद के पांव की तरह’’ जमे अपने ही विधायकों पर क्यों नहीं लागू कर पा रहे है? या लागू करना नहीं चाहते हैं? क्या उनका विधान/संविधान व लोकतंत्र अलग है? क्या वे पुराने जमाने के राजा समान हैं, जहां यह कहा जाता था कि ‘‘राजा कभी कोई गलती नहीं करता है’’? लोकपाल जो अन्ना आंदोलन की ‘‘रीढ़ की हड्डी’’ थी, अब राजनीतिक पटल से पारदर्शी तरीके से अदृश्य हो गई है? अपराधिक छवि लिए या अपराधिक मामले चलने वाले अपनी ही ‘‘नाक के बाल’’ नेताओं पर चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध की वकालत केजरीवाल अब क्यों नहीं कर रहे हैं? 

 केजरीवाल जी को उनकी एक बात और याद दिलाना चाहता हूं, जब अन्ना आंदोलन के समय उन्होंने कुर्सी की एक बड़ी समस्या बतलाते हुए कहा था कि इस कुर्सी पर जो भी बैठता है, वह गड़बड़ हो जाता है। अन्ना आंदोलन से निकले विकल्प के इस कुर्सी पर बैठने पर कहीं वह भी गड़बड़ या भ्रष्टाचारी न हो जाए। यह आशंका उन्होंने तब व्यक्त की थी, जो अभी सही साबित हो रही है। तब आज उन्हें उसी कुर्सी से इतना प्यार मोहब्बत क्यों हो गई कि, कुर्सी पा कर उनकी ‘‘आंखों में सरसों फूलने लगी’’? या उनका नए-नए अन्वेषण करने के दावे के साथ यह दावा तो नहीं है कि उन्होंने कुर्सी के मूल चरित्र को ही बदल डाला है। इसलिए अब कुर्सी व्यक्ति पर हावी नहीं होगी, बल्कि व्यक्ति कुर्सी पर हावी होगी?   

80 प्रतिशत विधायकों पर चल रहे आपराधिक मुकदमों के संबंध में वही कथन है कि राजनीतिक द्वेष व स्वार्थ की दृष्टि से झूठे बनावटी मुकदमे दर्ज किए गए हैं। और वे सजायाफ्ता विधायक नहीं है। या तो वे बरी हो गए हैं अथवा कोर्ट में कार्रवाई चल रही है। यही तर्क तो अरविंद केजरीवाल के दागी सांसदों के संबंध में लगाए गए आरोपों के जवाब में अन्य राजनैतिक दल देते थे, तब तो वे सिरे से उक्त तर्क को नकार देते थे। राजनीति का यह दोहरापन या दोगलापन किसी को सीखना है, तो सबसे बड़ा शिक्षक इस देश में अभी यदि कोई है, तो वह केजरीवाल ही है। कांग्रेस हो या भाजपा (कमोबेश/कमोत्तर) वे उस भ्रष्ट राजनीति कीचड़ में कार्य करती चली आ रही है। इसलिए उनसे स्वच्छ राजनीति की अपेक्षा करना ज्यादती होगी। परन्तु स्वच्छ राजनीति की बात कर रहे अरविंद केजरीवाल जो अन्ना की पवित्रता के आशीर्वाद के साथ स्वच्छता की घुट्टी पीकर राजनीति न करने की कसम खाकर, यदि देश को सुधारने के लिये राजनीति में कसम तोड़कर उतरे है, तब केजरीवाल राजनीति के उसी कीचड़ का सहारा लेकर दाग-दार राजनीति करने लगे, तो सबसे ज्यादा दोषी व अपराधी कौन? ‘‘हंसा थे सो उड़ गये, कागा भये दिवान’’।  

अरविंद केजरीवाल देश की राजनीति में नये नवेले खिलाडी है। वे आज देश में नरेन्द मोदी के बराबर हर क्षेत्र में न केवल अपने को देखना चाहते हैं, बल्कि इस प्रयास में वे कई बार असहज होकर असमान्य बातें भी कर जाते हैं। ‘‘करघा छोड़ तमाशा जाय, नाहक चोट जुलाहा खाय’’। आपको याद होगा देश की राजनीति में वर्ष 2014 में एक बड़ा परिवर्तन आया, जब पर्दे के पीछे प्रशांत किशोर के बने प्लान से मीडिया की ब्रांडिंग कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2014 में आशा से कहीं ज्यादा सफलता प्राप्त की थी। तब केजरीवाल ने मीडिया के दुरुपयोग की आलोचना यह कहकर की थी कि करोडों रुपये मीडिया मैनेजमेंट में खर्च किये गये। दिल्ली में आप की सरकार बनने के बाद अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली जो की पूर्ण राज्य भी नहीं है, के मीडिया खर्च के तुलनात्मक आंकड़े निकाले जाये तो कही दूर-दूर तक दिल्ली का मीडिया खर्चे अन्य प्रदेशों से ज्यादा है। शायद यह केजरीवाल की इस थ्योरी से मेल खाता है कि नरेन्द्र मोदी से वे आगे हंै। इसी क्रम में उन्होंने गुजरात में जा कर अगले पांच वर्षो में देश को विश्व का सर्वाधिक विकसित राष्ट्र बनाने की घोषणा की, जो नरेन्द्र मोदी अगले 25 वर्षों में करने की योजना बना रहे हैं (जिसकी घोषणा लाल किले से की गई थी)। सिर्फ इसलिए कि मैं (केजरीवाल) नरेन्द्र मोदी से आगे हूं।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से आगे होने के इसी क्रम में अब आप ने भाजपा पर मनीष सिसोदिया सहित अपने विधायकों की खरीद-फरोख्त व सीबीआई रेड, ईडी जांच की धमकी के आरोप जड़ दिए। आप के विधायकों का आत्मबल, मनोबल अरविंद केजरीवाल के मजबूत व चमत्कारिक नेतृत्व के बावजूद इतना कमजोर कैसे  हो गया है की ‘आप’ को आपके विपक्षी करोड़ों रुपए का लालच देकर खरीदने का ऑफर व धमकी देने की हिम्मत कर लेते हैं? विपरीत इसके भाजपा विधायकों की ईमानदारी और आत्मबल इतना मजबूत होता है कि कोई इस तरह की हरकत करने की सोच भी नहीं पाता है। इस प्रकार अरविंद केजरीवाल यहां भी नरेन्द्र मोदी से आगे निकल गए। 

मुफ्त की रेवड़ियां बांटने के मामले में भी अरविंद केजरीवाल उन्नीस नहीं बीस सिद्ध हो रहे हैं। मुफ्त शिक्षा और मुफ्त इलाज हमारी संवैधानिक व्यवस्था में दी गई है। देश में स्कूली शिक्षा और शासकीय अस्पतालों में इलाज (अन्य विशिष्ट स्वास्थ्य योजनाओं के अतिरिक्त) मुफ्त में दी जा रही है। जिसे सरकार अपना कर्तव्य मानकर व जनता सामान्य सुविधा मानकर स्वीकार करती चली आ रही है। परंतु  केजरीवाल ने पहली बार इन सुविधाओं की इस तरह से ब्रांडिंग कर जनता को एहसान में डाला है कि सरकार उक्त सुविधाएं मुफ्त में रेवड़ियां के समान बांट कर एहसान कर रही है। इस मुफ्त की रेवड़ियां की अच्छी ब्रांडिंग के कारण ही पंजाब में जीत के बाद गुजरात में कुछ समय बाद होने वाले चुनाव में केजरीवाल को इसका फायदा न मिले इसके जवाब में ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को मुफ्त की रेवड़ियां और जरूरतमंदों को मुफ्त सेवा देने में अंतर को समझाने का प्रयास करना पड़ा। इस प्रकार केजरीवाल वर्तमान राजनीति जहां ‘‘परसेप्शन’’ (वास्तविक कार्य नहीं) ही महत्वपूर्ण रह गया है, उसमें भी केजरीवाल नरेन्द्र मोदी को पछाड़ते हुए आगे दिख रहे है। ऐसा लगता है भविष्य में इसी तरह से अरविंद केजरीवाल नरेन्द्र मोदी से आगे होते रहेंगे?

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