मंगलवार, 9 अगस्त 2022

देश को ‘‘56 इंच के सीने’’ के साथ ‘‘एकलव्य’’ जैसी ‘‘निशाने’’(दृष्टि) की आवश्यकता है!

क्रमशः गतांग से आगे  द्वितीय भाग :-                                                                                             -

स्वतंत्रता मिलने के बावजूद भारत भी लगातार आतंकवादी घटनाओं से जूझ रहा है। आईएस, आईएसआईएस से लेकर आईएसआई (पाकिस्तान की सैन्य खुफिया एजेंसी) और लश्करे तैयबा, जैश ए मोहम्मद, इंडियन मुजाहिदीन जैसे विभिन्न नामों से आतंकी संगठन काम कर रहे है। इन सबके तार सूत्र और सरगना पाकिस्तान जो कि शुरू से ‘‘चोर उचक्का चौधरी, कुटना भयो प्रधान’’ जैसे शासकों से संचालित देश रहा है, से ही जुडे़ हुए है। पाकिस्तान उनको भारत के खिलाफ न केवल शरण दे रहा है, बल्कि आर्थिक व अन्य सहायता देकर मजबूत कर भारत के खिलाफ उकसाता भी रहता है। कहते हैं ना कि ‘‘चूहे के बच्चे बिल ही खोदते हैं’’। जब भी हमारे देश में कोई आतंकवादी घटना पाकिस्तानी उत्पत्ति व सरपरस्त आतंकवादी संगठनों द्वारा की जाती है और जब हमारे देश के सैनिक व नागरिक शहीद हो जाते है, तब देश के शीर्षस्थ नेताओं का यह रटा रटाया ‘‘स्टीरियोफोनिक’’ बयान श्रद्धांजलि के रूप में आ जाता है कि ‘‘एक सिर के बदले 10 सिर लायेगें’’। लेकिन यह श्रद्धांजली कभी पूरी होती नहीं है। आज तक हम ‘‘न पिद्दी न पिद्दी का शोरबा’’ जैश ए मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर का बाल बांका भी नहीं कर पाए, जो सरे आम पाकिस्तान में घूमता पाया जाता रहा है। 

पाकिस्तान से जब भी कोई बातचीत का अवसर हमारे पास आता है, प्रायः हम सीमा पार से उत्पन्न आतंकवाद का मुद्दा उठाते अवश्य हैं। परन्तु ‘‘कुत्ते की पूछ’’ के समान पाकिस्तान का रवैया हमेशा एक सा ही रहता है। जाहिर है, ‘‘कुत्तों को घी हजम नहीं होता’’। बावजूद इसके हमें अमेरिका, इजराइल, जर्मनी इत्यादि देशों से प्रेरणा क्यों नहीं मिलती है लेते, हैं, जिन्होंने अपने-अपने देशों में हुई आतंकवादी कार्रवाई का बदला बिना शोर शराबे के, बिना अंतरर्राष्ट्रीय संस्था से अधिकार प्राप्त किये, बिना ‘‘अरण्य-रोदन’’ के, सफलतापूर्वक बदला लेकर अपने-अपने देश के नागरिकों के घावों पर मरहम लगाने का कार्य ही नहीं, बल्कि इन आतंकवादी घटनाओं में हुए शहीदों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि देने की कार्य बखूबी किया है। 

अमृत महोत्सव के इस पावन अवसर पर भारत यह प्रण क्यों नहीं करता है और इन देशों से क्यों सीख नहीं लेता है कि ‘‘याचना नहीं अब रण होगा’’, बल्कि ‘‘रण’’ नहीं ‘‘रणनीति’’ होगी। इन आतंकवादी संगठनों के सरगनाओं को हमारी संस्कृति का भाग ऐतिहासिक ‘महा-भारत’ जिसमें ‘भारत’ स्वयंमेव शामिल है, से सीख व प्रेरणा लेकर ‘‘एकलव्य समान अचूक निशाने’’ पर लेकर, अथवा अर्जुन समान स्वयंवर के समय घूमती हुई मछली की परछाईं तेल में देखकर उसकी आंख के निशाने पर तीर भेद कर (‘‘कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना’’) आतंकवादियों का काम तमाम करे, और आतंकवाद को समाप्त कर लक्ष्य की प्राप्ति करें। समृद्ध विकास कर, विश्व में ‘विकासशील’ से ‘विकसित देश’ की ओर अग्रसर होने के लिए और कोई रास्ता नहीं है। ‘‘भारत को अमेरिका, इजराइल बनना ही पड़ेगा’’। क्योंकि आतंकवाद निसंदेह विकास के रास्ते में एक बड़ा रोड़़ा है। 

आज भी देश की राजनीति में चाहे पक्ष हो या विपक्ष, राजनैतिक दल जनता के सामने गाहे-बगाहे अपने तर्क के समर्थन में अपनी बात व मुद्दों को मजबूती देने के प्रयास में अमेरिका व अन्य देशों का उदाहरण अपनी सुविधानुसार जब-तब देते रहते हैं। तब आतंकवाद के मामले व मुद्दे पर हम क्यों नहीं अमेरिका से सीख लेना चाहते है? ‘‘सीधी उंगली से घी नहीं निकलता’’, आज जब हमारे देश का मीडिया भारत को विश्व गुरू की एवरेस्ट की ऊंचाई पर चढ़ाने पर तुला हुआ है, तब हम इन सीमा पार संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा घोषित अंतरर्राष्ट्रीय आतंकियों को मार कर सही रूप से यह पदवी वास्तविक अर्थों में क्यों नहीं पाना चाहते है?

प्रधानमंत्री मोदी आज बेशक ग्लोबल लीडर है और उनकी लोकप्रियता स्वतंत्र भारत के किसी भी प्रधानमंत्री की तुलना में बेहतर होकर आज सर्वोच्च स्तर पर है। महाशक्तियों से सिवाएं चीन को छोड़कर भारत के कमोवेश अच्छे व प्रभावी रिश्ते हैं, जैसा कि ‘‘ताल ठोक कर’’ का दावा भी किया जाता है। तब इस अमृत महोत्सव पर भारत के लिए एक स्वर्णिम अवसर आया है कि इस देश का नेतृत्व समुद्र मंथन करे, उससे निकले अमृत जनता को पिलाये और जहर आतंकवादियों को। क्योंकि ‘‘लातों के भूत बातों से नहीं मानते’’। तभी सही अर्थों में हम अमृत महोत्सव को सफल कह पायेगें। देश के नेतृत्व को और खासकर 56 इंच के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ‘‘एकलव्य’’ की एकाग्र दृष्टि रखकर आतंकवादियों को मार गिराना होगा। तभी हम इस 75वें अमृत महोत्सव पर जनता को दिवाली मनाने का अवसर प्रदान कर सकेगें। और ‘‘असतो मा सद्गमय तमसो मा ज्योतिर्गमय’’ की राह पर चल सकेंगे। इन्हीं भावनाओं व आशाओं के साथ सुखद व मन को शांति देने वाली परिणाम की उम्मीद में।  

2 टिप्‍पणियां:

  1. सर वर्त्तमान राजनीतिक परिदृश्य केवल इवेंट बेस्ड पोलिटिक्स का है... आपका विश्लेषण पूर्णतः एक सच्चे राष्ट्रभक्त का परिचायक है...

    जवाब देंहटाएं
  2. मोदी जी से बहुत उम्मीदें हैँ आशा है वो देश हित सर्वोपरि रख निर्णय लेंगे

    जवाब देंहटाएं

Popular Posts