गुरुवार, 2 मार्च 2017

एक नागरिक की ‘देशभक्ति’ पर प्रश्नवाचक चिन्ह लगाये जाने का कितना औचित्य ?

रामजश कॉलेज दिल्ली में हुई घटना के संबंध में वर्ष 1999 में हुये शहीद केप्टन मनदीप सिंह की बेटी गुरमेहर के द्वारा किये गये ट्वीट पर कुछ लोगों द्वारा उसकी देशभक्ति पर प्रश्नवाचक चिन्ह लगाना कितना जायज व उचित हैं? जेएनयू दिल्ली में पिछले वर्ष हुई घटना (वर्तमान घटना से कुछ हटकर) के बाद यह प्रश्न एक बार पुनः उत्पन्न हुआ हैं। आखिर गुरमेहर ने क्या ट्वीट किया? यदि उन शब्दों व उसके पीछे छुपे भाव को देखा जाए (जैसा कि उसकी मां ने बाद में स्पष्ट किया हैं) तो उसने वही कहां हैं जो हमेशा से भारत सरकार की पाकिस्तान के प्रति यथा संभव शांति, सद्भाव व अस्तित्व की नीति रही हैं। युद्ध मात्र एक अंतिम अस्त्र हैं। भारत सरकार ने हमेशा अपनी आत्मरक्षार्थ पाकिस्तान के आक्रमण का मुहतोड़ जवाब दिया हैं। आगे बढ़कर उसने कमी भी पाकिस्तान पर आक्रमण नहीं किया हैं। इसके विपरीत अमेरिका सहित विश्व के कई देशों ने अपने हितो के पालन में स्वतः आक्रमण की नीति अपनाई हैं। 
हमारे देश काश्मीर से कन्याकुमारी तक अनेकता में एकता समाविष्ट हैं। राजनीति में भी अम्मा से चिनम्मा (तमिलनाडू) तक सफर करने के बावजूद हमारा देश विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश कहलाता हैं। भिन्न-भिन्न प्रथाओं, रीति-रिवाजों, पूजा पद्धतियांें विश्वास एवं अंघ-विश्वासों के बावजूद हमारा देश एक शांति प्रिय, आध्यात्मिक देश माना जाता हैं जो सदियों से आधुनिकता के साथ-साथ अपनी संस्कृति की पहचान की धरोहर व विशिष्टताएॅ संजोए हुये हैं। इस तरह जब हमारी संस्कृति, लोकतंत्र व आध्यात्म के विभिन्न प्रारूप मौजूद हैं, तब हमारे देश में मात्र एक कथन (जिसका कुछ भाग निश्चित रूप से अनुचित व अवॉंछनीय हैं) को सीधे देशभक्ति से बॉंधना और उसपर एकतरफा देशभक्ति का प्रश्न पैदा कर देना क्या अपने आप में स्वयं पर प्रश्न चिन्ह नहीं लगाता हैं? आखिर देशभक्ति हैं क्या? क्या यह दो शब्दों देश-भक्ति की सन्धि मात्र हैं? लोगों को किसी भी घटना (फिर वह चाहे कितनी ही असंगत क्यों न हो) पर सीधे देशभक्ति का प्रश्न उठाने के पहिले यह तो समझ लेना चाहिए कि देशभक्ति वास्तव में किसे कहते हैं तथा देशभक्ति के साथ कैसे जिया जाता हैं? 
जिस किसी भी व्यक्ति ने इस देश में जन्म लिया अथवा इस देश की नागरिकता प्राप्त कर ली हैं, ऐसा प्रत्येक नागरिक देशभक्त हैं, और कम से कम तब तक देशभक्त हैं जब तक कि (सजा की बात छोड़ भी दे तो) उस पर किसी देशद्रोह के आरेाप की प्रथम सूचना पत्र दर्ज नहीं हो जाता है।ं देशप्रेम एक कथन मात्र नहीं हैंं जिसे एक जुमले के द्वारा खंड़ित कर दिया जाए! मैं रामजश कॉलेज दिल्ली में हुई घटना के संबंध में देशभक्ति का प्रश्न उठाने वालांे सेे यह जानना चाहता हूं कि क्या उन्होंने आरोपित व्यक्ति के खिलाफ देशद्रोह के अपराध की प्रथम सूचना पत्र देश के किसी भी थाने में दर्ज कराई हैं? देश के एक जागरूक देशभक्त नागरिक होने के कारण क्या देश के प्रति उनसे यह अपेक्षित कर्त्तव्य नहीं हैं। अतः उक्त दायित्व न निभा पाने के कारण क्या वे स्वयं देशद्रोही की श्रेणी में नहीं आ जाते हैं? 
आखिर देशप्रेम हैं क्या? क्या आंतरिक सुरक्षा में लगे हुई संस्था (सिस्टम) के कार्य कलाप देशप्रेम की सीमा में नहीं आते हैं? क्या देश के सुद्रढ़़, मजबूत खुशहाल व विकास की ओर ले जाने के लिये अपने नागरिक कर्त्तव्यों के पालनार्थ स्वयं की आहुति देने का कार्य प्रत्येक नागरिक का नहीं हैं? क्या इसे देशप्रेम में नहीं गिनना चाहिए? और यदि यह सब देशप्रेम हैं तो एक नागरिक की कोई चूक/असावधानी, कर्त्तव्य हीनता या देश के ‘‘स्वास्थ्य’’ पर किसी भी प्रकार का चूना लगाने वाला कलाप क्या उसे देशद्रोह की अंतिम परिणिति  तक ले जाना उचित होगा। क्या प्रत्येक वह कार्य जो देशप्रेम की परिभाषा में नहीं वे देशद्रोह कहलायेगे प्रश्न यह हैं। कुछ लोग यह कह सकते हैं कि जिस प्रकार न्याय अंधा होता हैं उसी प्रकार देशप्रेम भी अंधा होता हैं। निश्चित रूप से न्याय अंधा कहलाने के बावजूद, आज भी नागरिको का इस न्याय व्यवस्था पर पूर्ण विश्वास हैं। वे न्याय पाने के लिये इसी न्याय व्यवस्था के पास जाते हैं। उसी प्रकार देशप्रेम भी अंधा होता हैं और अंधा होना भी चाहिये। जो मात्र एक कथन/कार्य कलाप/एकमात्र घटना से खंड़ित नहीं हो जाता हैं। मातृप्रेम व देशप्रेम में कोई अंतर नहीं हैं। जितना प्रखर मातृत्व प्रेम होता हैं उतना ही देशप्रेम भी। मॉं का अपने बच्चें के प्रति प्रेम प्राकृत हैं वह बच्चे के कार्य/उश्रंृखलता के अनुसार कम या ज्यादा नहीं होता हैं। उसी प्रकार एक नागरिक का देशप्रेम भी प्राकृतिक व स्वाभाविक हैं। अपवाद हर क्षेत्र में होते हैं। अतः हर वह व्यक्ति जो देश की अखंडता व अस्मिता के साथ खिलवाड़ करता हैं वह देशद्रोही हैं और उसके खिलाफ कानूनी कार्यवाही कर उसे सजा दिलाना देशप्रेम हैं। सिर्फ बयान बाजी से यह कर्त्तव्य पूरा नहीं हो जाता। क्या देशभक्ति को हल्के फुलके ढंग से लेकर उस पर प्रश्नवाचक चिन्ह लगाना आजकल एक फैशन नहीं बन गया हैं?
हमारे समाज में ही कुछ नागरिक विभिन्न अपराध में लिप्त पाये जाते हैं जिन पर भारतीय दंड़ संहिता, अपराध दंड़ प्रक्रिया व विभिन्न कानूनों के अंतर्गत अभियोजन चलाये जाते हैं न्यायालय द्वारा उन्हें सजा दिलाने का प्रयास किया जाता हैं। यद्यपि ऐसे सभी अभियोगी/अपराधियों के ऐसे कार्य एक भारतीय नागरिक होने नाते देश के विधान व संविधान के विरूद्ध हैं, परन्तु क्या वे सब.देशद्रोही हो गये हैं? श्रीमान जी, देशप्रेम की परिभाषा को उसी लचीले पन के साथ लीजिये जिस लचीले पन के साथ आज देश में लोकतंत्र, स्वतंत्रता, सहमति-असहमति की संस्कृति विद्यमान व पल पूल रही हैं। 
जय हिंद!      

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