सोमवार, 15 फ़रवरी 2016

क्या ‘‘भारतीय राजनीति’’ को ‘‘देशद्रोह’’ के ‘‘अपराध’ में ‘‘फांसी’’ पर लटकाने का समय नहीं आ गया है?

राजीव खण्डेलवाल:
  जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली में जो कुछ घटित हो रहा हैं व जिस तरह की राजनीति व राजनैतिक प्रतिक्रिया उक्त घटना पर देश में हो रही है, वह सब आपके समक्ष आ चुकी है। क्या विश्व के अन्य किसी भी देश में वहॉ के नागरिको द्वारा इस तरह का व्यवहार व प्रतिक्रिया  पहले कभी आपने सुनी है?
       भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश हैं। यहॉं बोलने की पूरी स्वंतत्रता है। यद्यपि बोलने की स्वतंत्रता पर प्रश्न चिन्ह के रूप में एक काला धब्बा आपात्तकाल के रूप में इस देश के इतिहास पर लग चुका हैं। हमारे देश में ‘‘विश्वविद्यालय एक स्वायत्त संस्था है’’ यह कहते कहते हम आत्मविभोर हो जाते है। उच्चतम् न्यायालय द्वारा अंतिम रूप से निर्णय दिये जाने के बाद अफ़जल गुरू को देशद्रोह के अपराध में  फांसी दी गई जिसके संबंध में किसी भी तरह का कार्यक्रम आयोजित करना अपने आप में देशद्रोह है। फिर भी बगैर स्वीकृति प्राप्त किए देश की राजधानी स्थित जेएनयू विश्वविद्यालय में अफ़जल गुरू की फांसी की बरसी के बहाने देश की सार्वभौमिकता, अखंडता, एकता व सम्मान पर आघात पहंुचाने वाली जो घटनाएं हुई, वह देश के बाहरी दुश्मनांे द्वारा की जा रही आंतकवादी घटनाओं से कम-तर घातक नहीं है। उक्त घटना के विरूद्ध पुलिस ने पूर्व दिल्ली के सासंद द्वारा कार्यवाही की मांग किये जाने के उपरान्त ही विश्वविद्यालय प्रागंण में छोटी मोटी कार्यवाही ही की। यद्यपि यह भी बहुत देर से की गई है। इसकी प्रतिक्रिया में राजनैतिक दलों व नेताओं ने जिस तरह की भाषा का उपयोग स्वतंत्रता व स्वायत्तता के नाम पर किया, वह भी विश्वविद्यालय में छात्रों द्वारा देश के विरूद्ध की जा रही अर्नगल नारे बाजी व भाषा से कम बदतर नहीं हैं। लेकिन इन नेताओं व राजनैतिक दलो द्वारा भी भारत विरोधी देशद्राही भाषा-बोली की न तो भर्त्सना ही की गई और न हीं उन आराजक तत्वों के विरूद्ध कोई कार्यवाही की मंाग ही की गई। जएनयू टीचर एसोसिएशन व अन्य राजनैतिक नेताओं को क्या विभिन्न टीवी चैनलों में चल रहे वीडियों क्लिप नहीं दिख रहे है? क्या देशद्रोह की परिभाषा को इन नेताओं के अनुसार पुनः परिभाषित करने के लिए भारतीय दंड संहिता में संशोधन करना होगा? जो इन वीडियों में दिखाए जा रहे बयान या नारों को देशद्रोही बयान मानने से इनकार कर रहे है।
      अभिव्यक्ति व स्वायत्तता के नाम पर तथाकथित छोटी सी कार्यवाही (मात्र एक व्यक्ति जेएनयू के अध्यक्ष कीे गिरफ्तारी) का विरोध करने वाले समस्त तत्व यह भूल गए कि पूर्व में भी इसी तरह धार्मिक स्वतंत्रता के नाम पर विख्यात स्वर्ण मंदिर अमृतसर में आंतकवादियों ने आश्रय स्थल बनाकर पनाह गार पनपा ली व उसका दुरूपयोग कर पूरे पंजाब में अशांति का वातावरण पैदा किया गया। अंततः उसकी समाप्ति के लिये इंदिरा गांधी को (दुर्गा बनकर) आपरेशन ब्लूस्टार करवाना पड़ा, तब जाकर पंजाब में शांति बहाल हुई। जिस तरह अमृतसर का प्रख्यात स्वर्ण मंदिर उपासना   व पूजा का एक धार्मिक मंदिर है, उसी तरह जेएनयू विश्वविद्यालय भी शिक्षा का विख्यात मंदिर है। जेएनयू में इस प्रकार की यह पहली घटना नहीं है, वरण् पहले भी ऐसी घटनाएॅं होती रही हैं। यदि ऐसी गतिविधियॉं जेएनयू विश्वविद्यालय प्रॉंगण में चलने दी गई तथा घटनाएॅं दुहराती रहीं तो वह कदापि देश हित में नहीं होगा। अतः समय रहते यदि इन्हे रोका नहीं जाता है तो फिर देश की अंखडता व सुरक्षा बनाये रखने के लिये भविष्य में एक बार फिर ‘‘आपरेशन ब्लूस्टार’’ करने की आवश्यकता नहीं होगी? क्या देश की परिस्थितिया एक और आपरेशन ब्लूस्टार सहने के लिए तैयार है?
      देश के राजनितिज्ञांे व राजनैतिक पार्टीयों को यह तो सोचना ही चाहिए कि देश रहेगा तो ही वे राजनीति कर पायेगे। लेकिन उनकी इस घिनोनी राजनीति से देश का अस्तित्व ही जब खतरे में पड़ जायेगा तो उसे रोकने के लिये कई कडे़ कदम उठाने पडे़ंगे तब वे राजनीति की इच्छा की सांस भी नहीं ले पायेगे (क्योंकि तब लोकतंत्र बच पायेगा?)।  क्या वे ‘भस्मासुर’ का इतिहास पुनः दोहराना चाहते है। जिस राजनीति के चलते वे राजनीति कर रहे है वही राजनीति  उनकी राजनीति को समाप्त करने का माध्यम बन जायेगी।
जिस गांधी परिवार के दो-दो सदस्यों ने प्रधानमंत्री रहते हुए देश की सेवा करते हुए बलिदान दिया हो ऐसे गांधी परिवार के युवराज (महाराज होते होते रह गये) का जेएनयू की घटना पर प्रथम प्रतिक्रिया आई कि छात्रों की आवाज को दबाने वाले व्यक्ति ही देशद्रोही है। तब उनसे यह पूछा जाना चाहिए कि राष्ट्र के खिलाफ नारा लगाने वाले छात्र क्यो देश प्रेमी है? क्या उन्हें भारत रत्न या परम वीर चक्र दिया जाना चाहिए? स्वतंत्र भारत के इतिहास में ऐसे कई अवसर आये है जिनकी गिनती करना शायद संभव भी नहीं हैं, जब कांग्रेस की सरकार ने नेहरू से लेकर यूपीए चेयर पर्सन सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह तक की सरकारो ने छात्रों की ही नहीं बल्कि आम नागरिको की आवाज को दबायॉं। क्या राहुल गांधी भूल गये कि जयप्रकाश नारायण का आंदोलन नव निर्माण समिति के नवयुवकों द्वारा गुजरात में भ्रष्टाचार के विरूद्ध प्रांरभ किया जाकर देशव्यापी हो गया था। इंदिरा गंाधी की सरकार ने उसके राष्ट्रव्यापी होने पर उक्त आवाज को कुचलने दबोचने के लिये आपातकाल लगाया था। क्या वे सब युवक देशद्रोही थे? या उनकी आवाज को दबाने वाले देशद्रोही थे? (राहुल गांधी की परिभाषा व बोल अनुसार) क्या राहुल गांधी इस बात का जवाब देगे कि यदि कोई उन कांग्रेसी नेताओं पर आंदोलनकारी छात्रो की आवाज को कुचलने के (राहुल गांधी की नई परिभाषा अनुसार) देशद्रोह का मुकदमा दर्ज कराता है, तो क्या राहुल गांधी अपनी बात पर कायम रहते हुये गवाही देने आयेगे। ‘‘राहुल जी‘‘ येचुरी जी‘‘  ‘‘राजा’’ नीतीश कुमार इत्यादि जैसे नेता देश के साथ राज-नीति मत कीजिये। देश के लिये नीति अपना कर स्वयं का भला करे, समाज का भला करे जिससे देश का भला हो सके। जिस देश ने आपको यह पहचान दी हो उसे कम से कम गाली तो मत बकियेे? बकने मत दीजिए?

     सीताराम येचुरी द्वारा एक तरफ ‘यदि’ देशद्रोही बयान के संबंध में कोई साक्ष्य हो तो अवश्य कार्यवाही की जावे में यदि जोड़ते है, लेकिन दूसरी ओर ‘‘बिना यदि जोड़े’’ कालेज के छात्रों के विरूद्ध की जा रही तथाकथित कार्यवाही को बिना साक्ष्य केा अवैध बता रहे है। यहां पर येचुरी यदि कोई साक्ष्य हो शब्द का प्रयोग न करते हुये स्वतः ही पुलिस कार्यवाही को गलत ठहरा रहे हैं। देश  में यही दोहरापन की राजनीति है जो देश को गर्त की ओर ले जा रही है।
    कैलाश विजयवर्गीय का बयान ऐसे देशद्रोही तत्वों के लिये सामयिक है। गृहमंत्री का यह कथन कि राष्ट्र विरोधी नारो में हाफिज सईद का हाथ हैं, निराशाजनक है। यह भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत यह एक सामान्य या जघन्य अपराध का मामला नहीं है। बल्कि देश के विरूद्ध राष्ट्रद्रोह का मामला है। ‘किसने व कैसे’’ घटना को अंजाम दिया, यह देश गृहमंत्री से नहीं जानना चाहता हैं। बल्कि वास्तव में देश के गृहमंत्री से अपेक्षा की जाती है कि वे ऐसी घटनाओं के लिये जिम्मेदार तत्वों पर तुरंत कार्यवाही कर उन्हें समाप्त करे ताकि भविष्य में इस तरह की ऐसी घटनाएॅं न हो जिसकी किरण अभी तक नहीं दिखाई दी है।

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