शुक्रवार, 5 अप्रैल 2024

मुख्तार अंसारी-बाबा राम रहीम! दो धारा होते भी लगभग एक समान प्लेटफार्म!

 आपको उक्त शीर्षक पढ़कर शायद आश्चर्य लग रहा होगा। मुख्तार अंसारी का नाम बाबा रहीम के साथ कैसे? मुख्तार अंसारी की न्यायिक हिरासत में जेल में तथाकथित रूप से दिल की धड़कन बंद होने से ‘‘संदिग्ध अवस्था’’ में निधन हो गया। ‘‘खराब स्वास्थ्य’’ के चलते न्यायिक हिरासत में मौत हुई या धीमा जहर देकर हत्या की गई, यह तो जांच का विषय है, जिसकी न्यायिक जांच की घोषणा की जा चुकी है। इस मौत ने खूंखार अपराधी, बाहुबली, दुर्दांत माफिया, डॉन, गैंगस्टर मृत मुख्तार अंसारी और हत्या तथा बलात्कार के अपराध में सजायाफ्ता जेल में बंद डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत बाबा राम रहीम की जीवन गाथा को ईश्वर की दी हुई हमारी दोनों आंखों से दोनों व्यक्तियों के लिए एक-एक आंख का प्रयोग एक साथ कर समझना होगा। तभी देश की राजनीति की एक विचित्र स्थिति आपके सामने स्पष्ट रूप से सामने आ पाएगी कि देश में किस तरह की धारा-विचारधारा को बल मिल रहा है, व देश किस दिशा की गर्त में जा रहा है।

बात सबसे पहले बाबा राम रहीम की ही कर लें। ‘‘रहीम’’ के साथ ‘‘राम’’ नाम जुड़ा है। इससे स्पष्ट है कि भगवान राम ने ‘‘बाबा रहीम’’ के समस्त दुष्कर्मों की सजा अवश्य दे दी है। परंतु कहते हैं ना कि ‘‘राम कहो आराम मिलेगा’’, सो भगवान राम के सच्चे सेवकों ने बाबा रहीम को दी गई सजा को देश के अभी तक के सजायफ्ता अपराधियों के इतिहास में सजा की सबसे बड़ी पैरोल की अवधि में बदल दिया है। सिर्फ वर्ष 2013 में ही उसे 91 दिन की कुल पैरोल तीन बार में दी गई। ‘‘या तो पगली सासरे जावे ना, और जावे तो लौट आवे’’। राजनीति की यह एक धारा है तो, दूसरी तरफ खूंखार अपराधी मुख्तार अंसारी जिस पर भारतीय दंड संहिता और यूपी गैंगस्टर अधिनियम, गुंडा, आर्म्स तथा सीएलए एक्ट के अंतर्गत 65 से अधिक गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं, जिनमें से 21 मामलों में मुकदमे चल रहे हैं, तथा आठ मामलों में सजा भी हो चुकी है। 19 साल से जेल में बंद अफजल को उसकी इच्छा के अनुरूप जेल के बाहर आने की पैरोल नहीं, बल्कि राज्य के बाहर की जेल में रहने की इजाजत समस्त राजनीतिक और कानूनी गुहार के बाद भी नहीं मिलती है, ‘‘ये पुर पट्टन ये गली बहुरि न देखे आई’’। जबकि वह जनता का एक नहीं पांच बार लगातार चुना हुआ विधानसभा का सदस्य वर्ष 1996 से 2022 तक उत्तर प्रदेश की महू विधानसभा से रहा है। उसके परिवार के अन्य सदस्य भाई अफजाल अंसारी सांसद और पुत्र अब्बास अंसारी विधायक हैं। विशेष ध्यान देने योग्य बात है कि अब्बास अंसारी ओपी राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी से विधायक है, जो एनडीए में शामिल है।

बाबा रहीम पर बलात्कार और हत्या के दो मामलों में आजीवन सजा हो चुकी है, जबकि मुख्तार अंसारी पर हत्या व अन्य आठ मामलों में अभी तक सजा हो चुकी है। हां परंतु उसके चरित्र को लेकर कभी भी कोई प्रश्नवाचक चिन्ह नहीं लगा है। इतने अधिक गंभीर आपराधिक मुकदमे दर्ज होने के बावजूद यौन अपराध का भी एक छोटे सा आरोप भी कभी नहीं लगा। मुख्तार अंसारी का यह चारित्रिक पक्ष जितना उजला है, उतना ही धुंधला पक्ष बाबा रहीम का है, बल्कि वह ज्यादा खतरनाक है। वह इसलिए कि उसे समाज में उस संत की उपाधि, दर्जा व मान्यता प्राप्त थी, जिस संत से नैतिकता, चारित्रिक निर्माण के संदेशों व प्रेरणा की उम्मीद समाज करता है।

यदि दोनों की पारिवारिक पृष्ठभूमि देखी जाए तो निश्चित रूप से मुख्तार अंसारी का वर्तमान उनके परिवार के अतीत से किसी भी रूप में मेल नहीं खाता है, बल्कि वह आश्चर्य में डालने वाला वर्तमान है। उसके पिता का पूर्वांचल में इतना सम्मान था कि नगर पालिका के चुनाव में उनके विरुद्ध कोई भी व्यक्ति चुनाव लड़ता नहीं था। आम जन ‘‘फाटक’’ नाम से मशहूर उनके घर पर अपनी समस्याओं के निदान के लिए उनके पास जाते थे। उनके दादा मुख्तार अहमद अंसारी एक डॉक्टर थे, जो आजादी से पहले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे। नाना महावीर चक्र विजेता उस्मान मुख्तर अंसारी सेना के ब्रिगेडियर रहे जो वर्ष 1948 के भारत पाकिस्तान युद्ध में लड़ते हुए शहीद हो गए। बंटवारे के बाद पाकिस्तान की सरकार ने उन्हें जनरल बनाने का प्रस्ताव प्रस्ताव दिया था, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया था। चाचा हामिद अंसारी देश के उपराष्ट्रपति रहे। हालांकि वे अपने बयानों के कारण विवादित भी रहे। इस प्रकार उनका परिवार उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल का एक बहुत ही प्रतिष्ठित, देशभक्त, स्वतंत्रता संग्रामी रसूख वाला होने के साथ गरीबों का मसीहा रहनुमा परिवार कहलाता था। मुख्तार अंसारी को आप वर्तमान की फिल्मी क्षेत्र का रॉबिनहुड कह सकते हैं, जो अपराधी होकर भी फिल्मी हीरो था। परंतु अमीरों के अत्याचार से लड़कर गरीबों के हक के लिए एक सहायक होता था। चूंकि ‘‘शेर भैंसे का शिकार करता है, गिलहरी का नहीं’’ इसलिए फिल्म में जिस प्रकार रोबिन हुड की फाइटिंग पर ताली बजती है और मृत्यु पर शोक, वैसे ही ताली के रूप में जनता का प्रसाद वोट के रूप में मुख्तार अंसारी को बाहुबली और खूंखार अपराधी होने के बावजूद मिलता रहा। लेकिन ‘‘राख से आग छुप नहीं सकती’’। दुर्भाग्यवश यह हमारे देश की राजनीति और जनता की सोच व विचार का वह अप्रिय कटु सत्य है, जिसे 22 कैरेट के स्वस्थ सार्वजनिक राजनीतिक जीवन में कदापि स्वीकारा नहीं जा सकता है। इसके लिए योगदत्त लापरवाही कंट्रीब्यूटरी (नेगलिजेंस) के लिए जनता व राजनीतिक पार्टियां दोनों बराबर के जिम्मेदार है।

गुरमीत राम रहीम सिंह वर्ष 1987 में स्थापित हरियाणा के सिरसा स्थिति संस्था ‘‘डेरा सच्चा सौदा’’ का प्रमुख है। गुरमीत द्वारा कई सकारात्मक कार्य किये गये हैं, जिस कारण से उन्हें कई ग्रिनीज बुक अॉफ रिकार्ड भी मिले है, जो रक्तदान, वृक्षारोपण व सबसे अधिक लोगों का हाथ साफ करने से संबंधित है। गुरमीत को सजा मिलने के बावजूद हजारों लोग न केवल उसके समर्थन में खड़े हुए बल्कि मरने-मारने के लिए आमदा होकर हिंसात्मक होकर दंगा होने से 38 लोगों की जाने भी चली गई।

निश्चित रूप से मुख्तार अंसारी की मौत पर वे समस्त भुक्त-भोगी परिवार चाहे वह कृष्ण चंद्र राय अथवा अजय राय का हो या अन्य वे सब परिवार, जिन्होंने अपने परिजनो को इस बाहुबली के हाथों खोया है, उन सब को आत्म संतुष्टि महसूस करने के साथ-साथ खुशी मनाने का भी व्यक्तिगत अधिकार बिना किसी प्रश्नवाचक चिंह के है। क्योंकि जो व्यक्ति अपनो को असमय अप्राकृतिक रूप से हमेशा के लिए खोता है, उसका दर्द वहीं समझ सकता है। परंतु जिस तरह से ‘‘लाठी पकड़ी जा सकती है जीभ नहीं’’, उसी प्रकार सोशल मीडिया में अफजाल अंसारी की मौत पर जिस तरह की टिप्पणियां की जा रही है, क्या वे एक सभ्य समाज की प्रतिक्रिया कही जा सकती हैं? खासकर भारतीय, विशेष कर हमारी हिंदू संस्कृति को देखते हुए जो एक बड़ा उदार दिल लिए हुए वह संस्कृति है, जहां पर व्यक्ति की मृत्यु पर हम सिर्फ उसकी अच्छाइयों को ही याद करते हैं, बुराइयों को भुला देते हैं। इस कारण से कि इस सृष्टि में दुनिया में कोई भी व्यक्ति, अपराधी या संत ऐसा नहीं है, जिसमें कुछ न कुछ अच्छाइयां न हो और कुछ न कुछ बुराईयां न हो। ‘‘विधि प्रपंच गुन अवगुन साना’’।


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