शनिवार, 16 अप्रैल 2022

‘‘प्रधानमंत्री संग्रहालय’’! नरेन्द्र मोदी का ‘‘ऐतिहासिक कदम’’! ‘‘ऐतिहासिक भाषण’’।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश की स्वाधीनता के 75 वर्ष पूरे होने पर चल रहे आजादी के अमृत महोत्सव की कड़ी में अंबेडकर जयंती के अवसर पर ’प्रधानमंत्री संग्रहालय‘ का उद्घाटन कर देश को एक नई भेंट भव्य ‘‘प्रधानमंत्री संग्रहालय’’ और प्रस्तुती दी। इसमें स्वतंत्र भारत के अभी तक के समस्त प्रधानमंत्रियों के बारे में सकारात्मक जानकारी दी गई है। वैसे तो नरेन्द्र मोदी कुछ न कुछ नया सकारात्मक और साहसिक निर्णय लेने के लिए न केवल जाने जाते है, बल्कि कार्य रूप में परिणित कर अपने को उक्त दिशा में सही भी सिद्ध करते आ रहे है। परन्तु नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री संग्रहालय निर्माण का निर्णय वास्तव में एक बिल्कुल नई सोच व एक नया माड़ल की कल्पना है, जिसे सिर्फ और सिर्फ नरेन्द्र मोदी की ही ठोस कल्पना कही जा सकती है। वैसे तो नरेन्द्र मोदी ’सबका साथ के सिंद्धान्त पर विश्वास व कार्य करते है। परन्तु यहां पर उनकी सोच स्वयं की एकात्मक सोच है। और इस नई ‘‘प्रसादचिन्हानि पुरफलानि’’ रूपी सकारात्मक अकल्पनीय कल्पना को मूर्त रूप देने के लिए निश्चित रूप से प्रधानमंत्री बधाई के पात्र है। 

वैसे तो नरेन्द्र मोदी के भाषण प्रायः अपने विरोधियों पर तीक्ष्ण तंज के साथ तीव्र आक्रमण लिये और अपनी सरकार का अगले 10-20 सालों का एजेंडा लिये होते है। परन्तु इस लोकार्पण के अवसर पर उनका जो भाषण रहा वह निश्चित रूप से राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत और अवसर व परिस्थितियों की नजाकत को देखते हुये प्रधानमंत्री संग्रहालय के उद्घाटन भावना के अनुरूप ही रहा है। जो यह साबित करता है कि ‘‘ज्यों ज्यों भीगे कामरी, त्यों त्यों भारी होय‘‘ एवं उनके विरोधियों को निश्चित रूप से कुछ न कुछ आश्चर्यचकित भी कर सकता है। लोकार्पण के भाषण में प्रधानमंत्री ने देश के विकास में व देश की वर्तमान स्थिति के लिये समस्त पूर्व प्रधानमंत्रियों के योगदान को खुले दिल से न केवल स्वीकारा बल्कि उन्हे प्रेरणादायक भी बतलाया। पूर्व प्रधानमंत्रियों को सम्मान देते हुये प्रधानमंत्री का यह कथन बहुत महत्वपूर्ण है कि यह संग्रहालय प्रत्येक सरकार की साझा विरासत का जीवत प्रतिबिंम्ब है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का यह ‘‘तमसो मा ज्योतिर्गमय‘ स्वरूप व उदार दिल शायद पहली बार देखने को मिला। अभी तक तो प्रधानमंत्री और भाजपा द्वारा 65-70 साल के कांग्रेस व विपक्ष शासन को देश की बदहाली के लिए पानी पी-पी कर कोसती ही रहे है। चुनाव हो या अन्य कोई अवसर कांग्रेस के लिये ‘‘उल्टी माला फेरने‘‘ और उसकी आलोचना के कोई अवसर को भाजपा ने छोड़ा नहीं है। परन्तु आज निश्चित रूप से प्रधानमंत्री ने परिपक्वता दिखाते हुये पूर्व प्रधानमंत्रियों की देश के विकास में योगदान को खुले दिल से स्वीकारा है। यही सही राष्ट्रीय भावना है। इस तथ्य से कोई इंकार नहीं कर सकता है कि हर सरकार व पार्टी का अपना स्वयं का भी एजेंडा होता है। देश के विकास का भी ऐजंडा होता है। प्रत्येक सरकारें देश हित में कुछ न कुछ कार्य अवश्य करती भी हैं। परन्तु संपूर्ण वादें व दावे न तो पूर्ण हो पाते और है और न ही संभव है। लेकिन जब भी सरकारों की तुलना की जाती है तो, आम जनता के हितों के लिए में जो ज्यादा कार्य करता है वही सफल राजनैतिक पार्टी कहलाती है। आज की असहमती व अविश्वास भरे वातावरण में प्रधानमंत्री की इतिहास के प्रति यह स्वीकृति निश्चित रूप से देश को आगे ले जाने वाली सिद्ध होगी, जैसा कि उन्होंने स्वयं इसे भविष्य की आशा व्यक्त की है। 

प्रधानमंत्री का यह माड़़ल क्या राज्य सरकारें भी अपनायेगी, यह भी एक दिलचस्प विषय होगा? क्या प्रदेशों में मुख्यमंत्री भी अपने प्रदेश में मुख्यमंत्री संग्रहालय बनायेगें? जिसमें समस्त मुख्यमंत्रियों के प्रदेश के लिए उनके योगदान का उल्लेख होगा? ताकि प्रदेश के नागरिकों के ज्ञान में वृद्धि हो और उन्हें प्रेरणा भी मिल सके। इसके लिए भी इंतजार करना होगा। वैसे मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सबसे पहले सबसे आगे कोई भी नए कार्य करने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। यहां भी शायद वे देश में सबसे तेज सबसे पहले बाजी मार ले जाए? लेकिन यह योजना राज्यों में तभी सफल हो पायेगीं जिस प्रकार प्रधानमंत्री ने ‘‘मन चंगा तो कठौती में गंगा‘‘ की उक्ति को चरितार्थ करते हुए अपना दिल बढा कर विरोधियों के योगदान को ह्रदय की गहराइयों से अंतर्मन से स्वीकारा है। और उनकी कमियों को किसी भी रूप में इस अवसर पर ‘‘संग्रहालय’’ में नहीं उभारा है। एकाधिक अवसर को छोड़कर (शायद आपातकाल) लोकतंत्र की जननी भारत मेें लोकतंत्र के लोकतांत्रिक तरीके से मजबूत करने की गौरवपूर्ण परम्परा रही है। मोदी का यह कथन महत्वपूर्ण होकर विरोधियों की ऐतिहासिक भूल की शांति पूर्वक व्यक्त करने की यह अदभूत शैली है। इसे अपनाया जाना चाहिये तभी तो राज्य का मुख्यमंत्री संग्रहालय भी केन्द्र समान सफल हो पायेगा? महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि ये भावनाएं राज्य सरकारें कितना अपना पायेगी? तभी तों ‘‘संग्रहालय‘‘ बनाने का उद्देश्य सफल हो पायेगा?

अंत में एक बात और! हर कार्य की आलोचना होती है चाहे वह अच्छा हो या बुरा। हमारा देश तो आलोचकों का देश कहा जाता है। लेकिन यह सत्य है कि आलोचकों का कोई स्मारक नहीं बनता है। त्रिमूर्ति भवन में स्मारक बनाए जाने पर कुछ आलोचकों ने भी उसमें नुक्ताचीनी निकाल दी है। कहा गया कि नेहरू की स्मृति को विलोपित करने के लिए उक्त संग्रहालय वहां बना बनाया गया और जेल की सलाखों का प्रतिबिंब रखकर आपातकाल की याद को ताजा रखा गया। आपातकाल इस देश की ऐतिहासिक भूल है, जिसे स्वयं कांग्रेस ने भी अंततः स्वीकार किया है। इसके लिए माफी भी मांगी गई है। परंतु प्रधानमंत्री ने अपने उद्घाटन भाषण में बात को बहुत ही सुंदर शब्दों में एक-दो अवसरों को छोड़कर शब्दों द्वारा रेखांकित किया जैसा कि मैंने ऊपर लिखा भी है। चंूकि उक्त गैलरी मैंने देखी नहीं है। परन्तु जैसा कि प्रधानमंत्री ने बताया है कि वहां पर उसमें प्रधानमंत्रियों के योगदान को रेखांकित किया गया है। तब आलोचक लोग अपने पूर्व प्रधानमंत्रियों के योगदान को जिसे अभी तक प्रधानमंत्री अपने सार्वजनिक भाषणों में स्वीकार नहीं करते रहे, को क्यों नहीं वायरल करते हैं? प्रश्न यही है कि प्रशंसा और आलोचना के लिए भी तो अकल चाहिए? जिसका अथाह भंडार तो मोदी के पास है।


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