मंगलवार, 1 जुलाई 2014

21 वी सदी के वर्तमान समय मे क्या सिफारिश करना संविधान,कानून, या नैतिकता के विरूद्ध है। राजीव खण्डेलवाल (लेखक वरिष्ठ कर सलाहकार एवं पूर्व नगर सुधार न्यास अध्यक्ष है) म्उंपस रू. तंरममअंाींदकमसूंस/लंीववण्बवण्पद ठसवह रू. ूूूण्ंदकवसंदण्बवउ म.प्र. के “व्यापम” कांड की चर्चा प्रदेश में ही नही बल्कि देश में राष्ट्रीय चैनलो के माध्यम से हो रही है।इसमे कोई शक नही है कि लगभग एक लाख नब्बे हजार युवा विद्यार्थियो-अभ्यार्थियो के साथ खिलवाड किया गया है, जहां हम यह कहते है कि इन युवा कंधो पर राष्ट्र की प्रगति के पहिये टिके हुये है। इतने लम्बे समय से व्यापम में चली आ रही धांधलियां जल्दी उजागर नही हो पाई यह भी इस बात का द्योतक है कि इनको करने वाले व्यक्ति न केवल पूरे तंत्र मे व्याप्त है बल्कि उनके बीच परस्पर गहरा छमगने भी है। सबसे आश्चर्य की बात तो यह है कि देश र्में इस व्यापम कांड की चर्चा इस बात पर नही हो रही है कि इस कांड को करने वाले अधिकारीगण किस गहराई से और आयरन कवर के अंदर अपने इस कृत्य को अंजाम देकर हजारो विद्यार्थियो के जीवन के साथ खिलवाड किया गया, बल्कि “अयोग्य” व्यक्तियो को चुनकर प्रदेश की पू

         म.प्र. के "व्यापम" कांड की चर्चा प्रदेश में ही नही बल्कि देश में राष्ट्रीय चैनलो के माध्यम से हो रही है।इसमे कोई शक नही है कि लगभग एक लाख नब्बे हजार युवा विद्यार्थियो-अभ्यार्थियो के साथ खिलवाड किया गया है, जहां हम यह कहते है कि इन युवा कंधो पर राष्ट्र की प्रगति के पहिये टिके हुये है। इतने लम्बे समय से व्यापम में चली आ रही धांधलियां जल्दी उजागर नही हो पाई यह भी इस बात का द्योतक है कि इनको करने वाले व्यक्ति न केवल पूरे तंत्र मे व्याप्त है बल्कि उनके बीच परस्पर गहरा छमगने भी है। सबसे आश्चर्य की बात तो यह है कि देश र्में  इस व्यापम कांड की चर्चा इस बात पर नही हो रही है कि इस कांड को करने वाले अधिकारीगण किस गहराई से और आयरन कवर के अंदर अपने इस कृत्य को अंजाम देकर हजारो विद्यार्थियो के जीवन के साथ खिलवाड किया गया, बल्कि "अयोग्य" व्यक्तियो को चुनकर प्रदेश की पूरी जनता के साथ खिलवाड किया गया है। जनता केा इतने इस संशय मे डाल दिया गया कि उसका इलाज करने वाला डाक्टर, उसको पढाने वाला शिक्षक, जमीन नापने वाला पटवारी, प्रशासन कानून व्यवस्था को बनाने वाला कांस्टेबल चलाने वाले डिप्टी कलेक्टर इत्यादि इन सब का सामना आम नागरिक को अपने दैनिक जीवन मे करना होता है वे कितने सही है ?क्या वे गलत व्यक्तियों के पास तो नही पहुंच गये, जो उनके जीवन और जीवन-दिनचर्या से खिलवाड कर सकता है। यह संशय व  परिणाम का कारक उक्त कांड है जिस पर न गंभीरता से कोई आवश्यक कदम उठाये गये है और न ही  इस बात पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है कि लम्बे समय से एक के बाद एक वर्ष दर वर्ष विभिन्न विषयो में इस तरह का घोटाला बडे आराम से चलता रहा।
            मूल विषय यह है कि इन घोटालेबाजो के क्रियाकलाप पर गहनता से विचार कर रोक लगाने के बजाय, चर्चा इस विषय पर हो रही  है कि किस व्यक्ति ने किस व्यक्ति के लिए सिफारिश की। आरोप लगाने वाले व्यक्तियो से यह पूछा जाना चाहिए की आज के युग मे सार्वजनिक जीवन जी रहे या प्रशासनिक व्यवस्था मे लगे हुए व्यक्तियो से कभी न कभी जब सामान्य लोग या अभ्यार्थी    लोग संपर्क करते है तो वे सामान्यतः संबंधित व्यक्ति की ओर उनके नाम को अग्रेसित करते है जिसे सिफारिश कहा जाता है।सिफारिश करना क्या कानूनन अपराध है व नैतिक रूप से गलत है,प्रश्न यह है। वास्तव में सिफारिश करने वाला व्यक्ति यह नही कह रहा है कि कानून के खिलाफ जाकर संबंधित व्यक्ति को दूसरो के अधिकार छीनकर उसे फायदा दिलाया जाये। वास्तव में उक्त तथाकथित सिफारिशो को मानकर उसकेा करने वाला नौकरशाह या राजनैतिक जब कानून के विरूद्ध उस सिफारिश को लागू करता है तो वह अपराध है व उसको कार्यान्वित करने वाला ही अपराधी है न कि सिफारिश करने वाला।
भष्ट्राचार विरोधी अधिनियम मे जहां रिश्वत लेने व देने वाले दोनो कानूनन अपराधी माने जाते है यह नियम यहां लागू नही होता है।
            मुझे एक उदाहरण याद आता है  80- 90 के युग में बैतूल में एक कलेक्टर थे, किसी व्यक्ति के कार्य  के संबंध मे जब मैं उनसे मिला तो चर्चा के दौरान  उन्होने अपना  बडा स्पष्ट मत रखा था कि चाहे काम भाजपा के व्यक्ति का हो या कांग्रेस के व्यक्ति का जो काम कानूनन सही है उसकेा मै करता हंू। लेकिन जहां विवेक के उपयोग का प्रश्न  की परिस्थितियो आती है, तब मै सत्ताधारी दल के पक्ष मे विवेक का उपयोग करता हंू।यह सिद्धांत इन सिफारिशो पर भी लागू होता है। जंहा सिफारिशे कानून के आडे आती है उसे नही माना जाना चाहिए। लेकिन परिस्थति वश जहां सिफारिशो में विवेक को उपयोग की स्थिति बनती है, तब विवेक उपयोग सिफारिश का पक्ष मे किया जा सकता है, और इसकी संपूर्ण जिम्मेदारी उस सिफारिश को लागू करने वाले नेता या नौकरशाह की होती है न कि सिफारिश करने वाले व्यक्ति की।   
            इसलिए उन समस्त आरोप लगाने वाले व्यक्तियो से यह पूछा जाना चाहिए कि उन्होने अपने जीवन में कभी सिफारिश नही की, तो वे बगले झांकने लग जायेगे। इसलिए इस पूरे कांड मे उचित यही होगा कि समस्त अपराधियो केा कानून के दायरे मंे शीध््रा्र लाया जाये ।
            बात जब नैतिकता की जाती है, नैतिक मूल्यो की जाती है तब घटना के असितत्व केा स्वीकार करने वाले जिम्मेदार पद पर बैठे हुए लोग "शास्त्री जी " के समान नैतिक जिम्मेदारी का निर्वहन कर  इस्तीफा देकर नैतिक युग को वापस क्यो नही लाते ?

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