मंगलवार, 24 जुलाई 2012

क्या भारतीय क्रिकेट बोर्ड को भंग करने का समय नहीं आ गया है?


                  भारत-पाकिस्तान के बीच क्रिकेट दौरे की स्वीकृति देकर क्रिकेट बोर्ड ने पुनः अपनी निरंकुश स्वेच्छा चारिता का परिचय दिया है। भारतीय क्रिकेट बोर्ड न केवल देश के समस्त खेल संगठनों में आर्थिक रूप में मजबूत संगठन है बल्कि विश्व के भी गिने चुने अमीर खेल संगठनों में उसकी गिनती होती है। किसी भी खेल के सुविरचित विकास के लिए यह आवश्यक है कि उसका खेल संगठन स्वायत्ताती हो और उस खेल के विशेषज्ञ लोगों से वह परिपूर्ण हो। दुर्भाग्यवश भारत का क्रिकेट बोर्ड स्वायत्त होने के बावजदू क्रिकेट विशेषज्ञो से परिपूर्ण नहीं है जिसके अध्यक्ष और शक्तिशाली पदाधिकारी अधिकांश रूप से राजनेता या उद्योगपति रहे है। 
क्रिकेट भारत का एक लोकप्रिय खेल है। यद्यपि विदेशी खेल है लेकिन इसी खेल पर बनी फिल्म ‘लगान’ में जब आमीर खान की टीम ब्रिटिस टीम को हराती है तो हमें एक आत्मिक संतोष मिला था। लेकिन वही क्रिकेट के माध्यम से जब हम पास्तिान से संबंध सामान्य, शांती से करना चाहते है जो हमारा एक स्थाई पड़ोसी शत्रु देश (पड़ोसी होना हमारे हाथ में नहीं है।) से हमारा न केवल दो बार युद्ध हो चुका है बल्कि लगातार वह हमारा देश में हो रही आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त भी रहा है मुम्बई बम आतंकवादी कार्यवाही जैसे कर उसने जन मानस के दिल को झकझोर दिया थे। इस कारण से हमारी सरकार और बोर्ड ने तत्समय क्रिकेट टीम के दौरे पर दोनो देशो के बीच प्रतिबंध लगा दिया था। जिन कारणों से इस देश की सरकार और क्रिकेट बोर्ड ने प्रतिबंध लगाया था और आज जब प्रतिबंध खोला है तो दोनों की यह सामूहिक जिम्मेदारी है कि वे जनता के बीच एक स्वेत पत्र जारी करें कि क्या वे कारण दूर हो गये है या उनको यह भरोसा दिलाया गया है कि वे कारण दूर हो जाएंगे या प्रतिबंध के समय जो तत्कालीन आरोप थे वे गलत थे ऐसा उन्हे आज एहसास हुआ है। तभी उनकी यह कार्यवाही सही कहीं जाएगी अन्यथा बालासाहेब ठाकरे ने ‘सामना‘ में जो विचार यद्यपि असंयमित शब्दों में कहा है वही भावना जो पूरे देश की है को ही व्यक्त किया है। 
                  एक आम भारतीय के जेहान में यह प्रश्न कौंधता है कि क्या क्रिकेट बोर्ड देशभावना से ऊपर हो गया है? क्या मार्केटिंग के दौर में क्रिकेट का व्यापार ही क्रिकेट बोर्ड की प्राथमिकता हो गई है? क्या करोड़ो रूपये कमाकर, अमीर बोर्ड कहलाना ही बोर्ड का एकमात्र उद्वेश्य रह गया है? यदि ऐसी स्थिति वास्तव में बन रही है तो क्या यह समय नहीं आ गया है कि ऐसे क्रिकेट बोर्ड को तुरंत भंग कर दिया जाए। लेकिन प्रश्न फिर यही उठता है कि इस क्रिकेट बोर्ड को भंग कौन करेगा? क्योंकि जिस    आधार पर क्रिकेट बोर्ड को भंग करने के विचार हमारे मन में आते है वही आधार और वही विचार केंद्रीय सरकार के प्रति भी आते है जो ही इस क्रिकेट बोर्ड को भंग कर सकती हैं। तो क्या हमारी यह भावना केंद्रीय सरकार को भंग करने की मानसिकता की ओर जा सकती है? यह बात समय के गर्भ में है। 

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