शनिवार, 28 अप्रैल 2012

देश मे ''विश्वास" का संकट! आखिर कब तक!


सम्पूर्ण विश्व विभिन्न समस्याओ से जूझ रहा है व भारत उन राष्ट्रो से भिन्न नहीं है। लेकिन देश वर्तमान मे जिन विभिन्न-विशिष्ट समस्याओ का सामना कर रहा है वे विभिन्न समस्याएं ही त्वरित विकास में आड़े आ रही है। इसके मुख्य कारण जो परिलक्षित हो रहे है वे मुख्य रूप से नैतिक मूल्यों का अवमूल्यन, ईमानदारी की घोर कमी, और विश्वसनियता में गिरावट। वर्तमान स्थिति में आज विश्वास का संकट दिन प्रतिदिन हराता जा रहा है जो एक आयामी न होकर बहुआयामी होकर विभिन्न कार्य क्षेत्रो मे फैला हुआ है जिस पर इस लेख माध्यम से चर्चा कर में जनता का ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं। 
                             आज ''विश्वास का संकट" कई प्रकार का है। जनता व सरकार के बीच विश्वास का संकट, गुरु व चेलो के बीच विश्वास का संकट, राजनैतिक दल, नेता व उनके समर्थको के बीच परस्पर घोर अविश्वास का संकट, प्रशासन-शासन व जनता के बीच परस्पर विश्वास का संकट इत्यादि ऐसे अनेक विश्वास के संकट के उदाहरण गिनाये जा सकते है। राष्ट्रो के बीच परस्पर विश्वास की कमी का संकट भी देश की आतंरिक स्थिति को प्रभावित कर रहा है जो हमारे विकास के रास्ते में एक बड़ा रोढ़ा बना हुआ है क्योंकि इस कारण हमें अपने रक्षा बजट जो कि एक गैर उत्पादित व्यय है पर अरबो रूपये खर्च करने पड़ रहे है। इन्ही अविश्वास की कड़ीयों में आगे वर्तमान में जो आज विश्वास का संकट उत्पन्न हुआ है वह अन्ना टीम कें सदस्यो के बीच विश्वास का संकट है। यह देश के लिये न केवल चिंता का विषय है बल्कि एक घातक संकेत की ओर भी इंगित करता है। घातक इसलिये है कि यह विश्वास का संकट जिस अन्ना टीम के सदस्यों के बीच उत्पन्न हुआ है उनसे अन्य समस्त आयामों में फैले विश्वास के संकट को दूर करने की उत्पन्न आशा की किरण को जनता वास्तव में निहार रही थी। लेकिन वे स्वयं ही उक्त समस्या से ग्रसित हो गये। घटना बहुत छोटी सी है लेकिन उसकी गहराई मे जाने पर उसके व्यापक प्रभाव की कल्पना की जा सकती है। 
                             अन्ना टीम की विगत दिवस नोएडा में हुई बैठक की अनाधिकृत विडियो रिकार्डिंग एक संस्थापक सदस्य शमीम काजमी द्वारा अन्यो को जानकारी व विश्वास में लिए बिना की गई और उसकी जो प्रतिक्रिया अन्ना व उनकी टीम की जनता के सामने जो सार्वजनिक हुई वह वास्तव में दोहरे चरित्र को उभारने वाली है। वह अन्ना टीम जिसने केन्द्रीय सरकार के मंत्रीमंडलीय समूह के साथ जनलोकपाल बिल के मामले में मिटिंग की पूरी वीडियो रिकार्डिंग की सरकार से मांग की थी, ने अपने ही टीम के सदस्य शमीम काजमी को अपनी ही मीटिंग की वीडियों रिकार्डिंग करने पर मीटिंग से बाहर का रास्ता दिखाया दिया। पारदर्शिता का पालन करने वाली व दूसरो से भी उतनी ही पारदर्शिता की उम्मीद लगाये अन्ना टीम का यह व्यवहार परस्पर विरोधी होकर जनता के गले उतरने वाला नहीं है। नैतिक रूप से यह बात सही हो सकती है कि जब कोई समुह परस्पर चर्चा करता है तो उस चर्चा का परिणाम मीडिया के सामने अधिकृत व्यक्ति ही ले जाये। लेकिन लोकतंत्र में पूर्णता पारदर्शिता का ठेका लिये हुए समुह अन्ना टीम के साथ हुआ तथाकथित 'विश्वासघात' के आधार पर शमीम काजमी की वीडियो रिकाडिंग को अनुचित ठहराकर उन्हे मीटिंग से बाहर का रास्ता दिखाने का अन्ना टीम का निर्णय नितांत अलोकतांत्रिक एवं स्वयं अन्ना टीम की विश्वसनीयता पर प्रश्र उठाता है। यदि नैतिक रूप से वीडियो रिकार्डिंग गलत है तो उसका सही जवाब यही होता है कि शमीम काजमी उक्त के कार्य की भत्र्सना की जाकर उक्त वीडियों रिकार्डिंग को नष्ट करने के बजाय जनता के बीच मीडिया के माध्यम से प्रदर्शित कर यह दिखलाया जाता कि उनकी मीटिंग से ऐसी कोई भी चर्चा नहीं हुई है जो जनता के लिए अनैतिक थी, गलत थी जिसे जनता से वंचित किया गया। काजमी ने कार्य यदि विश्वासघात किया था जैसा कि आरोपित किया गया तो वह कौन सा विश्वास मीटिंग के अन्दर का था जिसे काजमी वीडियो रिकार्डिंग के जरिये सार्वजनिक करने वाले थे जिस पर अन्ना टीम को आपत्ति हो गई। काजमी का कार्य यदि नैतिक नही है तो अन्ना टीम का वीडियो नष्ट करना उससे ज्यादा अनैतिक नहीं है? अन्ना टीम का इससे भी ज्यादा आगे जाकर यह कहना कि  भविष्य की मिटिगों मे प्रत्येक व्यक्ति की जॉच होगी उक्त उत्पन्न 'अविश्वास' का समस्त सदस्यो के बीच फैल जाना तथ्य को सिद्ध करता है। जहां अन्ना टीम पूरे नागरिको को देशहित मे उनपर विश्वास करने को कहती हो वहीं सदस्यों के बीच ही परस्पर विश्वास की कड़ी न हो (अन्यथा प्रवेश के पूर्व जांच की बात नहीं की जाती) वहां किस आधार पर जनता उन पर विश्वास करे इसका निकाल  किया जाना अति आवश्यक है।
                             अन्ना टीम का बाबा रामदेव के साथ संबंध भी विश्वास के संकट पर खड़ा है। व्यवहार एवं सम्बंध कभी दूर कभी पास के आधार पर पूर्व में जहा बाबा से दूरी बनाये रख तिहाड़ जेल और मंच में वह प्रमुखता एवं सम्मान बाबा को नहीं दी गई जिसका अधिकारी उन्हे बाद में अन्ना ने मानकर स्वयं उनसे मिलने हरिद्वार पहुंचे और संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस में बाबा के साथ आंदोलन चलाने की बात पत्रकारो के सामने कही लेकिन फिर बाद में नोएडा बैठक में संयुक्त आंदोलन को नकार कर समय-समय पर मात्र समर्थन सहयोग देने की बात कही जो अन्ना की कथनी और करने के बीच के अन्तर को बढ़ाते जा रहे है। इससे न केवल उनके दृढ़ता के विश्वास पर प्रश्र उत्पन्न होता है बल्कि श्रेय की राजनीति के चलते इसकी यही नियती भी तय है।

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