वर्ष 2025 के आगाज पर हार्दिक शुभकामनाएं।
‘‘राजा राम’’ के साथ ‘‘अल्लाह’’ बोलना भी स्वीकार नहीं?
पिछले ही लेख में मैंने यह लिखा था की भारत संघ के विभिन्न प्रदेशों में ‘‘अजब-गजब’’ बनने की होड़ सी लग रही है। जैसे दिल्ली की नौकरशाही के सरकार के विरूद्ध पेपर में विज्ञापन को लेकर। इसी क्रम में ‘‘अजब-गजब’’ मध्यप्रदेश समान बिहार भी इसका भाग बन गया है। जब भजन में ‘‘अल्लाह’’ शब्द के उच्चारण मात्र पर हुडदंग हो गया। ‘‘कश्मीर से कन्याकुमारी’’ तक ‘‘अनेकता में एकता’’ लिए ‘‘सर्वधर्म-समभाव’’, ‘‘सबका-साथ सबका-विकास’’ के मूल तत्व को मानने वाले, महात्मा गांधी को ‘‘राष्ट्रपिता’’ कहने वाले, मेरे देश के ‘‘धर्मनिरपेक्ष’’ चरित्र पर धब्बा लगाने वाली उक्त स्थिति की कल्पना क्या आप कर सकते हैं? दुर्भाग्यवश मेरे देश में ऐसा पहली बार हुआ और वह भी बहुत दबंगता पूर्ण बेशर्मी के साथ। देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जन-शताब्दी वर्ष कार्यक्रम ‘‘मैं अटल रहूंगा’’ एवं शिक्षाविद् पंडित मदन मोहन मालवीय की ‘‘जयंती’’ पर, अटल विचार परिषद और दिनकर न्यास समिति के संयुक्त तत्वाधान में पटना के बापू सभागृह में आयोजित दो दिवसीय कार्यक्रम में प्रसिद्ध भोजपुरी लोक गायिका देवी को विशेष ‘‘अटल सम्मान’’ देने के लिए बुलाया गया था। उपमुख्यमंत्री द्वारा सम्मान दिये जाने के पश्चात उनसे एक भजन गाने के लिए कहा गया। तब उन्होंने अटल जी व गांधी जी दोनों का प्रिय भजन ‘‘गांधी का राम धुन’’ गाया। वैसे बापू के अनेक भजनों में प्रथम पांच लोकप्रिय भजनों में यह भजन शामिल नहीं था। परन्तु कहते हैं न कि ‘‘छप्पन भोग छोड़ कूकर हड्डी को धावे’’, तो जैसे ही वह अहिंसा के पुजारी गांधी की रामधुन की ‘‘ईश्वर-अल्लाह तेरे नाम’’ बोल तक पहुंची, सभा में से अनापेक्षित रूप से कुछ लोग नारेबाजी, हुड़दंग करने लगे और जय श्री राम के जय जयकार होने लगे। परिणाम स्वरूप गायिका को गाना आगे रोकना पड़ा। पहले तो उन्होंने दर्शकों को यह समझाने का ‘‘असफल’’ प्रयास किया कि ‘‘भगवान एक है और उनका उद्देश्य केवल ‘‘राम’’ को याद कर रहा था’’।
परिस्थितिवश, मजबूरी में ‘‘माफी’’ मांगी।
तत्समय की परिस्थितियों को भांपते हुए, मौके की नजाकत को देखते हुए, मंच पर बैठे वरिष्ठ भाजपा नेता के इशारों को देखते-समझते हुए, शायद ‘‘जैसी बहे बयार पीठ तब तैसी दीजै’’ की उक्ति का अनुसरण करते हुए, लोक गायिका ने मंच से कहा कि अगर आप ‘‘आहत’’ हुए हैं तो, मैं उसके लिए सबको सॉरी कहती हूं। आश्चर्य की बात तो है कि उक्त भजन ‘‘बापू सभागृह’’ में गाया गया व तत्पश्चात घटित घटना पूर्व केन्द्रीय मंत्री शाहनवाज हुसैन की उपस्थिति में हुई। यह स्थिति देवी को ‘‘अचंभित’’ करने वाली थी। सवाल यह है कि अपनी ‘‘नापसंदगी’’ को सब पर ‘‘थोपना’’ कहां तक उचित है? यह तो वही बात हुई कि ‘‘शहर के चिराग गुल कर दो शाह ख़ानम की आंखें दुखती हैं’’। इसके बाद जो महत्वपूर्ण घटना घटी, वह यह कि देवी के द्वारा माफी मांगने के बाद जब वह पोडियम के पास से हटती हैं, भाजपा नेता अश्विनी चौबे ‘‘जय श्री राम’’ का नारा लगवाते हैं। उक्त कार्यक्रम में सांसद रवि शंकर प्रसाद, संजय पासवान, सीपी ठाकुर आदि मंचासीन थे।
‘‘सहिष्णु’’ देश इतना ‘‘असहिष्णु’’ कब से?
इस देश में जहां मुस्लिम जनसंख्या लगभग 14 प्रतिशत है, वहां सिर्फ ‘‘अल्लाह’’ बोल देना, वह भी भगवान श्री राम के नाम के साथ, क्या एक गुनाह हो सकता है, जहां भगवान श्री राम के प्रभावशाली भक्त लोगों की उपस्थिति में मात्र सिर्फ 50-60 युवकों, जबकि बतौर आयोजक अर्जित शाश्वत चौबे (पूर्व केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे के सुपुत्र) के अनुसार मात्र 5 से 6 लोगों के हंगामा करने पर गायिका को माफी मांगने के लिए मजबूर होना पड़ा? बजाए ऐसे अवांछित तत्वों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने के? सवाल है कि कार्रवाई करे कौन, ‘‘वही कातिल, वही मुद्दई, वही मुंसिफ’’ उर्फ ‘‘बिल्ली के गले में घंटी बांधे कौन’’? शाहनवाज हुसैन ने नाराजगी व्यक्त करते हुए इसे उच्चतम स्तर की असहिष्णुता बतलाया, जो सिर्फ राजनीति करने वालों की ‘‘सोची समझी साजिश’’ हो सकती है। इसके अलावा फिल्म ‘‘हम-दोनों’’ का इसी थीम पर आधारित मुस्लिम शायर साहिल लुधियानवी द्वारा लिखित प्रसिद्ध गीत ‘‘अल्लाह तेरो नाम ईश्वर तेरो नाम’’ हम पिछले 64 सालों से सुनते आ रहे हैं। इस गीत पर भी आज तक किसी ने आपत्ति नहीं उठायी। फिर आज इन्हीं पंक्तियों को लेकर हंगामा खड़ा करना समझ से परे है। ईश्वर सब को सद्बुद्धि दे।
राम धुन व गांधी की राम धुन में बेहद अंतर।
महात्मा गांधी ने राम धुन भजन पहली बार 1930 में दांडी मार्च के दौरान इस्तेमाल कर लोकप्रिय भजन बनाया था। मूल राम धुन ‘‘भगवान श्री हरि के मानक अवतार पुरुषोत्तम श्री राम को समर्पित यह ‘‘अल्लाह’’ शब्द के साथ भजन श्री लक्ष्मणाचार्य द्वारा रचित श्री नमः रामायणम् का एक अंश है। गांधी जी ने इस मूल भजन की 1-2 पंक्तियों को परिवर्तित कर ‘अल्लाह’ शब्द जोड़कर स्वतंत्रता आंदोलन में गाया करते थे। इस दौरान एक और मिथक प्रसिद्ध हो गया था कि यह एक देशभक्ति गीत है, जिसका उद्देश्य भारतीय समाज की एक ‘‘धर्मनिरपेक्ष समग्र छवि’’ पेश करना है’’। कुछ आलोचक मुसलमानों को खुश करने के लिए इसे महात्मा गांधी की धर्मनिरपेक्षता का ‘‘विकृत संस्कार’’ भी मानते हैं।
‘‘राम धुन’’ नहीं! ‘‘गांधी की राम धुन’’ गाई थी।
महत्वपूर्ण बात यह है कि लोक गायिका देवी ने भजन मूल ‘‘राम धुन’’ को नहीं गाया, बल्कि वे गांधी जिनका प्राण त्यागते समय अंतिम शब्द ‘‘हे राम’’ था, द्वारा संशोधित ‘‘अल्लाह’’ शब्द जोडा गया था, को गाया था, जिस पर आपत्ति की गई थी। आपत्ति महात्मा गांधी द्वारा राम धुन बदलने/संशोधन को लेकर की गई, यह स्पष्ट नहीं है। परन्तु एक बात स्पष्ट है मोहनदास करमचंद गांधी, जिन्हें देश ही नहीं विश्व के राष्ट्रपिता (प्रथम बार सुभाष चंद्र बोस) व महात्मा रविन्द्रनाथ टैगोर ने कहा था ‘‘उपाधी’’ के नाम से समस्त विचारों व मतभेद के बावजूद मानता चला आ रहा है। वह बिहार जहां के जयप्रकाश नारायण को जो संपूर्ण क्रांति के जनक, ‘‘लोकनायक’’ कहलाए, वह देश जिसने ‘‘दूसरे गांधी’’ सीमांत गांधी, खान अब्दुल गफ्फार खान (बादशाह खान), पश्तून (पाकिस्तानी) स्वतंत्रता सेनानी के रूप में उन्हें भारत रत्न दिया गया हो। ऐसी स्थिति रहने के बावजूद ऐसे देश में ‘‘अल्लाह’’ शब्द पर आपत्ति हो जाए, यह अकल्पनीय है। यह और कुछ नहीं केवल टट्टी की ओर से शिकार खेलना है। प्रश्न यह है कि इस देश में लगभग 18 करोड़ मुसलमान रहते है, जिनके इष्ट ‘‘अल्लाह’’ है। बिना अल्लाह की जय-जयकार किये बिना ‘‘अल्लाह हो अकबर’’ का नारा लगाए बिना, जिस प्रकार भगवान श्री राम के नारे लगाये गये है, उस परिस्थिति में सिर्फ ‘‘अल्लाह’’ शब्द से इस देश में आपत्ति हो सकती है, तो मैं यह जानना चाहता हूं हम हिन्दू इन 18 करोड़ मुसलमान के साथ किस प्रकार रहेंगे? जिनके भगवान अल्लाह है। हमारा जीवन उनके ‘‘साथ’’ व्यतीत होगा या उनके ‘‘बगैर’’ (शायद बाहर करके) यह रास्ता भी अल्लाह शब्द पर आपत्ति करने वाले बतलाये? तलवार का खेत कभी हरा नहीं होता, इसे ध्यान में रखते हुए ढाई आंखर प्रेम का मंत्र सहृदय स्वीकार कर रोज-रोज की हिन्दू-मुस्लिम की कट-कट से छुटकारा मिल, कलह समाप्त होकर हिन्दू-मुस्लिम मिलकर देश के विकास के लिए समस्त समावेश शक्ति को लगा सके, मेरी उनसे यही विनती है।
सरसंघचालक के कथनों के संदर्भ में देखिए!
माननीय सरसंघचालक के हालियां जो बयान आए हैं कि ‘‘हर मंदिर के नीचे मस्जिद ढूढ़ना बंद होना चाहिए’’ तथा ‘‘कुछ नेता मंदिर-मस्जिद का मसला उठाकर हिन्दूओें का बड़ा नेता बनना चाहते हो’’ के द्वारा शायद वे संघ की छवि धर्मनिरपेक्ष बनाने की दिशा में बढ़ाये कदम के संदर्भ में क्या यह असहिष्णुता बाधक तो नहीं है? ‘‘अल्लाह’’ शब्द का विरोध करके हिन्दू नेता बनने की लालसा तो नहीं है?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें