सोमवार, 8 अगस्त 2022

देश को ‘‘56 इंच के सीने’’ के साथ ‘‘एकलव्य’’ जैसी ‘‘निशाने’’(दृष्टि) की आवश्यकता है!

विषय लेख लम्बा होने से इसे दो भागों में लिया जा रहा है प्रथम भाग:-

अमेरिका ने काबुल शहर के शेरपुर इलाके में रह रहे ‘अल कायदा’ के (ओसामा बिन लादेन के बाद बने) सरगना अयमान अल जवाहिरी को अपनी ही जमीन से ‘‘सीआईए ड्रोन’’ हमले द्वारा अचूक निशाने से मारकर 9/11 आतंकवादी हमले का बदला अंततः पूरा कर यह दिखा दिया कि ‘‘बाज के बच्चे मुंडेरों पर नहीं उड़ते’’। अलकायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन व उसका ‘‘दिमाग’’ (सहयोगी) अल जवाहरी के नेतृत्व में 9/11/2001 को अमेरिका के इतिहास का सबसे बड़ा आतंकवादी हमला हुआ था। तब न्यूयॉर्क के वल्र्ड ट्रेड़ सेंटर व पेंटागन के टावरों पर दो अपहृत विमानों से 17 आत्मधाती आतंकवादियों द्वारा किये हमलों में लगभग 3 हजार (2977) नागरिक मारे गये थे। यह हमला 9/11 के रूप में पूरे विश्व में प्रसिद्ध हुआ। 

11 साल बाद वर्ष 2011 में अमेरिका ने ‘‘ऑपरेशन नेप्ट्यून स्पीयर’’ के तहत नेवी ‘‘सील कमांडो’’ पाकिस्तान के शहर एबटाबाद भेजकर वहां रह रहे अलकायदा के प्रमुख, सरगना ओसामा बिन लादेन को  मृत्यु के घाट उतार दिया। इसके 11 साल बाद और बेहतर तरीके से बिना कमांडो भेजे ड्रोन से अचूक निशाना लगाकर परिवार व रहवासी भवन को सुरक्षित रखते हुए अल जवाहिरी का खात्मा कर ठीक ही किया, ‘‘तत्र दोषम् न पश्यामि, शठे शाठ्यम् समाचरेत’’। अल जवाहिरी के मारे जाने के बाद अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन का यह कथन महत्वपूर्ण है कि ‘‘न्याय कर दिया गया हैं, चाहे कितना भी समय लगे, चाहे आप कहीं भी छिप जाएं, अगर आप हमारे लोगों के लिए खतरा हैं तो अमेरिका आपको ढूंढेगा और आपको बाहर निकालेगा’’। इसे कहते हैं संप्रभुता और प्रभुसत्ता। भारत के लिए यह सबक है, जब गाहे-बगाहे, मीडिया अवसर ढूढ़कर अमेरिका से भारत की तुलना करने का कोई अवसर जाने नहीं देती है। 

स्पष्ट है उक्त दोनों खूंखार आतंकी सरगनाओं को मारने की कार्रवाई में अमेरिका ने कोई अंतरराष्ट्रीय कानून का न तो पालन किया और संयुक्त राष्ट्र संघ अथवा सुरक्षा परिषद से दूसरे देश में घुसकर हमला करने की न तो गुहार की और न ही अनुमति ली और न ही एक क्षण के लिए शायद सोचा भी होगा। भारत में भी 26/11/2008 को ‘‘लश्कर ए तोयबा’’ के सरगना जकीउर रहमान लखवी, संस्थापक हाफिज सईद, साजिद मीर व जैश-ए-मोहम्मद प्रमुख मौलाना मसूद अजहर ने मिलकर जैश-ए-मोहम्मद के अजमल कसाब सहित 10 आतंकवादियों द्वारा मुंबई के 7 विभिन्न जगहों में बम्ब ब्लास्ट करवाया, जिसमें लगभग 160 से ज्यादा निर्दोष नागरिक मारे गये व 300 से ज्यादा घायल हुए। यह आतंकवादी घटना 26/11 के रूप में प्रसिद्ध हुई। यद्यपि इसके पूर्व इसी मुंबई में जब उसे बम्बई (बाम्बे) कहा जाता था, 12 मार्च 1993 (11 के अगले दिन) 11 जगह बम ब्लास्ट हुए, जिसमें 257 लोग मारे गए और 713 घायल हुए, जिसका मास्टमांइड़ दाऊद इब्राहिम था।

अमेरिका व भारत सहित विश्व में ‘‘आतंकवाद’’ को लेकर शायद 11 अंक का बड़ा महत्व लगता है। अमेरिका ने तो 11 वे महीने में हुई आतंकी घटना का 11-11 साल के अंतराल में इस ‘11’ अंक का पूर्ण बदला ले लिया। परन्तु भारत लगभग 14 साल गुजर जाने के बाद भी मसूद अजहर व हाफिज सईद का कुछ नहीं बिगाड़ पाया। उल्लेखनीय बात यह है कि उक्त आतंकी घटना में शामिल मसूद अजहर वही है, जिसे भारत सरकार ने कंधार विमान अपहरण घटना (वर्ष 1999) में 176 यात्रियों व 11 क्रू सदस्यों की जान के बदले तीन खूंखार आतंकी जिसमें मसूद अजहर भी शामिल था, को अपहरणकर्ताओं से हुई सौदेबाजी के तहत भारतीय जेल से छोड़ा गया था। भारतीय संसद, पठानकोट एयर बेस व पुलवामा आतंकी हमलों का मास्टरमाइंड मसूर अहमद ही माना जाता है। दाऊद इब्राहिम कासकर, हाफिज सईद, मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित किया है व तब देर किस बात की?      

एक क्रूरतम अपराधी को सबक सिखाने के लिए, अमेरिकन कानून या अंतरराष्ट्रीय अदालत में मुकदमा चलाये बिना और उसे कानूनी अपराधी घोषित कराये बिना, सिर्फ और सिर्फ देश की अस्मिता की रक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय कानून का बेखौफ मजाक उड़ाकर उल्लंघन कर, अमेरिकन राष्ट्रपति ने पहले अल कायदा के सरगना नंबर एक लादेन व बाद में नंबर दो जवाहिरी को समाप्त कर दिया।

उक्त घटनाओं में हुई खूंखार आतंकवादियों की मृत्यु के कारण आतंकवादी गतिविधियों में कमी होने की आशा में शायद विश्व ने राहत महसूस की होगी। तभी शायद अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन होने के बावजूद संबंधित देशों ने न तो कोई विरोध प्रकट किया और न ही सुरक्षा परिषद में अमेरिका की इस कार्रवाई के विरुद्ध कोई दुस्साहस दिखाया गया। तालिबान के प्रवक्ता ने सख्त लहजे में नहीं, बल्कि ट्वीट कर हमले की निंदा करते हुए यह कहा कि यह अंतर्राष्ट्रीय सिद्धांत व दोहा समझौता का स्पष्ट उल्लंघन है। जिस पर अमेरिका ने पलटवार कर ‘‘मियां की जूती मियां के सर’’ पर मारते हुए यह जवाब दिया कि आतंकवाद को समर्थन देने के कारण तालिबान ने ही दोहा संधि का उल्लंघन किया है।

मतलब साफ है। देश की आन-बान और शान पर कोई आतंकवादी संगठन प्रश्न चिन्ह खड़ा कर दे, देश के निर्दोष नागरिकों को आतंकवादी घटनाओं में मृत्यु के घाट उतार दिया जाए, तब उस देश के शासक का यह कर्तव्य हो जाता है कि वह बजाय ‘‘अंधे के आगे रो कर अपने दीदे खोने के’’, ऐसी आतंकवादी घटनाओं को अंजाम तक पहुंचाने वाले को इस तरह का भुगतयमान परिणाम दे, ताकि भविष्य में इस तरह की आतंकवादी घटनाओं की पुनरावृति करने का दुस्साहस फिर न हो सके। क्योंकि ‘‘अपनी करनी ही पार उतरनी’’ साबित होती है। 

शेष क्रमशः अगले अंक में ------------------

4 टिप्‍पणियां:

  1. Sundar samsamyik vichar.sahi hai niti aur niyat dono chahiye.

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  2. Ukt vichar mere niji hai. Vijay Kumar pathak

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  3. भारतीय राजनीतिज्ञों में प्रबल इच्छाशक्ति और निस्वार्थ देशभक्ति ?

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  4. सटीक 👌टिप्पणी....

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