बुधवार, 19 अगस्त 2020

’आमिर व तुर्की की प्रथम महिला’ के बीच सौजन्य भेंट!एक विश्लेषण!

   
इस्लामिक देश तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन की धर्मपत्नी श्रीमती एमीन अर्दोआन से आमिर खान की ‘‘इस्ताबुंल’’ में हुई औंपचारिक ‘सौजन्य भेंट‘ की ‘‘सौजन्यता‘‘ ‘छुद्र‘ राजनीति के चलते मीडिया व ‘‘राजनीति‘‘ के हत्थे चढ़ गयी। प्रसिद्ध सुपरस्टार फिल्मी कलाकार आमिर खान अपनी फिल्म ‘‘लाल सिंह चड्ढा‘‘ की शूटिंग के लिए पेशेवर दौरे पर तुर्की गए हुए हैं। वहां के राष्ट्रपति की पत्नी से आमिर खान की मुलाकात को ‘‘कतिपय कुछ भारतीय क्षेत्रों’’ को रास न आने के कारण (उनके द्वारा) हंगामा खड़ा कर दिया गया है। 
प्रधानमंत्री अब्दुल्ला गुल के समय तक वर्ष 1990 से 2002 के बीच भारत, तुर्की के परस्पर संबंध सौहार्द पूर्ण रहे। परंतु वर्त्तमान राष्ट्रपति अर्दोआन के विश्व मुस्लिम समुदाय के ‘‘नेता’’ बनने के चक्कर (लालच) में हर किसी मौके बे मौके पर पाकिस्तान के साथ पूर्ण एकजुटता (सॉलिडिटी) के साथ खड़े दिखना चाहते हैं। ताकि विश्व का मुस्लिम समुदाय एक स्वर से उन्हें अपना नेता स्वीकार कर लें। उक्त उद्देश्य के चलते जुलाई 2020 में ‘‘हागिया सोफिया’’ चर्च को मस्जिद में बदलने के कारण भी वे काफी चर्चित हुये। साथ ही ‘अर्दोआन’ परमाणु शक्ति सम्पन्न बनने के लिये भारत से आवश्यक तकनीकि चाहते थे, जिसके लिए उन्होनें दो बार भारत का दौरा भी किया था। लेकिन भारत के सीधे इंकार कर देने से वे अब पूरी तरह से पाकिस्तान के साथ खड़े हो गये है। 
मामला चाहे कश्मीर में धारा 370 समाप्त करने का हो, या ‘‘उरी हमले’’ का, भारत के प्रति पाकिस्तान के अंध विरोध का उन्होंने लगातार समर्थन ही किया है। ‘‘राम मंदिर’’, ‘‘सीएए’’ कानून  विरोध के मामले में भी उन्होंने अनावश्यक हस्तक्षेप दिखाया था। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ‘‘आईएमएफ’’ में पाकिस्तान को ‘‘ब्लैक लिस्ट’’ न होने देने में भी तुर्की का बड़ा योगदान रहा है। इसी रुख के चलते उनके द्वारा संयुक्त राष्ट्र संघ की आमसभा (अक्टूबर 2019) में दिये उद्दबोधन में कश्मीर मुद्दे को उठाये जाने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी तुर्की के निर्धारित दौरे को रद्द कर तगड़ा विरोध दर्शाया था। इस प्रकार लगातार भारत विरोधी कदम उठाए जाने के कारण ही भारत देश व जनता की नजरों में फिलहाल तुर्किस्तान ‘‘निशाने’’ पर है। ये किसी सीमा तक, सही भी है। ऐसे उत्पन्न दुर्भाग्यपूर्ण संदर्भ में आमिर खान की हुई उक्त मुलाकात का विरोध कुछ हलकों में हो रहा है। परन्तु यह विरोध कितना जायज या उचित है, इस पर आपने गंभीरता से विचार किया है? आश्चर्य की बात तो यह है कि आमिर खान का यह पहला तुर्की दौरा या मुलाकात नहीं थी। बल्कि वर्ष 2017 में फिल्म ‘‘सीक्रेट सुपरस्टार’’ के प्रमोशन (प्रचार) के सिलसिले में जब वे तुर्की जा चुके है। तब उन्होनें स्वयं राष्ट्रपति अर्दोआन (पत्नि से नहीं) से ही मुलाकत की थी। तब ‘‘राष्ट्रप्रेम’’ को परिभाषित करने वाले इस ‘वर्ग’ की राष्ट्रभक्ति कहां सुप्त व लुप्त हो गई थी?
सुखद स्थिति यह है कि आमिर खान के तुर्की ‘‘जाने‘‘ (यात्रा) को लेकर कोई ‘‘विरोध‘‘ व्यक्त नहीं किया गया है। सिर्फ तुर्की के राष्ट्रपति की पत्नी से हुई उनकी मुलाकात पर गहरी आपत्ति अवश्य की गई है। इसका मतलब साफ है! भारत और तुर्की परस्पर दुश्मन देश तो नहीं है। यहां पर एक प्रश्न अवश्य यह उठता होता है कि क्या दो देशों की सरकारों के समय-समय पर परस्पर बदलते रुख व रवैयों के चलते, उन देशों की जनता के बीच भी संबंधों में तदनुसार बदलाव (तनाव/प्रेम) हो जाना चाहिए? दूसरा भारत सरकार ने अभी तक भारतीय नागरिकों के पाकिस्तान जो (दुश्मन नंबर एक) आने जाने पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया है। परस्पर हाई कमीशन कार्यरत है। तुर्की में भी दूतावास बंद नहीं किया गया है। अर्थात राजनैतिक संबंध विच्छेद नहीं किए गए हैं। आखिर कार सरकार भी तो ‘‘शत्रु’’ देशों से संबंध सुधारना ही चाहती है। इसी भावना के चलते हमारे नेपाल से संबंध जो वर्त्तमान में अत्यंत खराब होकर ऐतिहासिक रूप से बहुत ही निम्न स्तर पर चल रहे हैं, इसके बावजूद भारत नेपाल के बीच नेपाल में भारत द्वारा दिए गए फंड के प्रॉजेक्ट को लेकर 17 अगस्त को ही काठमांडू में बातचीत हुई है। तब तुर्की में एक भारतीय नागरिक की व्यक्तिगत मुलाकात को राष्ट्रविरोधी कैसे ठहराया जा सकता है? जब तक कि यह बात सामने नहीं आ जाए कि उस मुलाकात में कोई राष्ट्र विरोधी चर्चा भी की गई? ऐसा कोई ‘‘आरोप’’ मुलाकात विरोधी लॉबी लगा भी नहीं रही हैं। तुर्की में रहे भारतीय राजदूत एम के भद्रकुमार ने तो उक्त मुलाकात की प्रशंसा की है। 
फिर यहाँ प्रश्न उत्पन्न होता है कि, क्या आमिर खान दोनों देशों के बीच एक ‘‘दूत‘‘ बनकर परस्पर संबंधों को ठीक करने में सहायक सिद्ध नहीं हो सकतें? स्वयं राजनयिक भद्रकुमार ने ऐसी आशा भी व्यक्त की है। आमिर खान की दो बार की मुलाकतों से यह आशा और ज्यादा बलवती हो जाती है। यहाँ मुझे याद आतें है, कि विदेशी मामलों के विशेषज्ञ प्रसिद्ध पत्रकार स्तंभकार डॉ वेद प्रताप वैदिक जिनके पाकिस्तान हुकुमरानों सहित अधिकांश पड़ोसी देशों श्रीलंका, बंग्लादेश, भूटान, अफगानिस्तान आदि के शासकों के साथ अच्छे प्रगाढ़ व्यक्तिगत संबंध रहे हैं, का भी इसी तरह का उपयोग करने के प्रयास भारत सरकार ने समय समय पर किया था। यह बात डॉ. वैदिक ने स्वयं मुझसे हुई व्यक्तिगत बातचीत में स्वीकार की थी। 
इस बात को भी आप को ध्यान में रखना ही होगा कि आमिर खान ने तुर्की के राष्ट्रपति से मुलाकात नहीं की है, बल्कि उनकी पत्नी से, जो वहां पर सरकार में किसी पद पर सुशोभित नहीं है। सिवाय इस विशेषाधिकार के कि वे देश की ‘‘प्रथम महिला‘‘ है। क्या मुलाकात के विरोधी लोगों का यह तर्क है कि भारतीय नागरिकों को तुर्की या पाकिस्तान जाना ही नहीं चाहिए? तब वे इस तरह के प्रतिबंध की मांग भारत सरकार से क्यों नहीं करते हैं? आमिर खान अपनी फिल्म की शूटिंग के लिए प्रोफेशनल दौरे पर तुर्की जाना गलत है तो उसका ‘‘वीसा‘‘‘ भारत सरकार द्वारा निरस्त क्यों नहीं कर दिया गया? यदि मुलाकात विरोधियों का यह कहना है कि एक भारतीय नागरिक को देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी का एहसास करते हुए स्वविवेक का उपयोग कर विवेक पूर्ण व्यवहार का पालन करना चाहिए। तब क्या यह ‘‘लॉबी‘‘ स्वयं विवेक पूर्ण व्यवहार कर रही है? ‘‘एक मुलाकात‘‘ एक ‘‘कदम‘‘ एक ‘‘कथन‘‘ एक ‘‘बयान‘‘ एक ‘‘फोटो सेशन’’ (सब कुछ जो फिलहाल सामान्य सा हैं) पर एक भारतीय नागरिक राष्ट्रभक्त से राष्ट्रद्रोही हो जाता है। परंतु उसकी ‘‘नागरिकता‘‘ हमेशा विद्यमान रहती है। क्या एक राजद्रोही व्यक्ति भारतीय नागरिक बना रह सकता है? ऐसे व्यक्ति की नागरिकता समाप्त करने के लिए कभी कोई प्रश्न उक्त लाबी द्वारा क्यों नहीं उठाया जाता है? मतलब साफ है, सिर्फ यह कोरी राजनीति ही है। 
‘‘राष्ट्रभक्त’’ और ‘‘राष्ट्रद्रोह’’ क्या इतने सस्ते सुलभ शब्द हो गए हैं की हर कभी इनका सुविधानुसार उपयोग कर लिया जाए? देशभक्ति से देशद्रोह तक का एक सफर होकर पड़ाव होता है। यदि आपने कोलकाता का प्रसिद्ध हावड़ा ब्रिज देखा होगा, या उस बाबत पढ़ा होगा, सुना होगा तो वह मात्र दो खम्बों पर टिका हुआ बीच के बिना किसी सहारे के खड़ा है। और एक सिरे से दूसरे सिरे तक लगभग एक किमी चलकर जाना होता है। यदि दोनों कालमों को परस्पर चिपका दिया जाए तो उनकी बीच की दूरी समाप्त हो जाएगी। ठीक इसी प्रकार हमारे देश में ‘‘राष्ट्रप्रेमी लॉबी’’ ने राष्ट्र प्रेम और राष्ट्रों द्रोहियों की बीच की दूरी को समाप्त कर दिया है। अर्थात यदि कोई 100 प्रतिशत राष्ट्र प्रेमी नहीं है, तो देशद्रोही हो जायेगा। राष्ट्र प्रेम के तनिक अभाव में निश्चित रूप से आप राजद्रोही ही ठहराये जायेगें। बीच का कोई सफर अब आपके लिए बचा ही नहीं है। वैसे भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए में परिभाषित देशद्रोह देश विरोध की उच्चतम न्यायालय ने अपने कई निर्णय में विस्तृत रूप से व्याख्या की है। कृपया चलते चलते उसको भी देख लीजियेगा। 
अतः यह स्थिति वास्तव में बहुत खतरनाक है, जो राष्ट्र प्रेम, देश भक्ति व देश के प्रति निष्ठा को मजबूत करने के बजाए और कमजोर करती है। इसलिए राष्ट्र द्रोही वह व्यक्ति नहीं है, जिस पर यह लॉबी प्रश्न-उंगली उठाती रही है (क्योंकि यह पहली बार नहीं हो रहा है) बल्कि अपने तुच्छ, संक्रीण दृष्टिकोण के चलते वह स्वयं राष्ट्र विरोधी जैसा कार्य कर रही है। ऐसे व्यक्ति की राष्ट्र के प्रति निष्ठा पर बेवजह उंगली उठाकर उसे कहीं ‘‘उसी दिशा‘‘ की ओर आप जाने अनजाने मंे ढ़केल तो नहीं रहें हैं? वर्त्तमान में सबसे बड़ी चिंता का विषय यही है।
एक और संयोग देखिए! 15 अगस्त को भारतीय स्वतंत्रता दिवस के दिन ही एक भारतीय नागरिक की व्यक्तिगत मुलाकात पर आपत्ति कर स्वतंत्रता पर ‘प्रतिबंध का आशय‘ प्रदर्शित करना, कितना औचित्य पूर्ण है? 
अंत में आमिर खान ने देशभक्ति व देश का सम्मान लिये हुये कई फिल्में बनाई हैं। जैसे ‘लगान’, ‘मंगल पांडे’, ‘सरफरोश’, ‘तारे जमीं पर’ आदि आदि। आमिर इनकेडि़बल इंडिया (अतिथी देवों भवः) के ब्राड़ ऐबसेड़र भी बनाये गये थे। तथापि उनके द्वारा दिये गये ‘‘असहिष्णुता’’ वाले बयान पर सरकार ने वर्ष 2017 में उन्हें उक्त पद से हटा दिया था। समाज की बुराइयों के खिलाफ समाज में बदलाव लाने की लड़ाई में एक मजबूत संदेश देने के लिए दूरदर्शन व स्टार टीवी नेटवर्क पर प्रसारित ‘‘सत्यमेव जयते’’ कार्यक्रम को बहुत सराहा गया। 88 प्रतिशत लोगों ने उसे क्रांतिकारी कार्यक्रम मानकर आमिर खान को बेहद सकरात्मक समीक्षा मिली थी। ‘‘लातुर’’ (महाराष्ट्र) में पानी की किल्लत को दूर करने में लगभग 100 करोड़ रूपये लोगो की सेवा में खर्च किये है। यद्यपि आमिर खान के पूर्व में कुछ बयान व कार्यवही ऐसी रहे है। जैसे (इजराइल प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू से न मिलना) जिस पर कुछ लोगों की जायज आपत्ति हुई है। ऐसे आमिर खान की उक्त व्यक्तिगत शिष्टाचार वश मुलाकात पर अनावश्यक रूप से इतना हाई तोबा क्यों? 

3 टिप्‍पणियां:

  1. मैं इस बात से सहमत हूं कि यदि आमिर खान और तुर्क प्रथम महिला के बीच हुई बातचीत का ब्योरा ही उपलब्ध नहीं है तो इस प्रकार हाहाकार मचाकर लोगों को भ्रमित करने का प्रयास नहीं करना चाहिये

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  2. प्रधानमंत्री स्वयं कईबार घटना को अवसर में बदलने का मंत्र देते रहे हैं तो...आमिर खान का भी उपयोग बढ़ रही खीई को पाटकर रिश्तों की एक नई इबारत लिखि जा सकती है..हां निश्चय ही उसके पहले आमिर खान की मंशा जानना जरूरी है और नकारात्मक को सकारात्मक कर अपने पक्ष में करने के प्रधानमंत्री जी के गुण को कौन नहीं जानता ?

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  3. उपरोक्त दोनों टिप्णियां मेरे द्वारा की गई हैं-स्वदेश बिन्जू,उज्जैन

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